कुछ किशोरों के चेहरे पर हमेशा तनाव, उदासी व निराशा के भाव ही दिखते हैं. कई बार तो यह निराशा उन पर इतनी हावी हो जाती है कि देखते ही लगता है कि रो पड़ेंगे. आखिर ऐसा क्यों होता है  अगर उन से इस का कारण पूछा जाए तो वे खीज कर कहते हैं, ‘क्या करूं मेरे हिस्से में जब उदास रहना ही लिखा है, तो मैं प्रसन्न कैसे रहूं  जिस भी काम में हाथ डालता हूं, असफलता ही मिलती है.’ इतना ही नहीं, निराश व्यक्ति जरा सी भी परेशानी या बाधा आने पर घबरा उठता है और उस के निदान हेतु ज्योतिषियों तथा फकीरों के पास चक्कर काटने लगता है. उसे ऐसा लगने लगता है कि मानो निराशा उस के सिर पर बोझ बन गई हो.

निराश व्यक्ति की व्यथा

निराश व्यक्ति हमेशा भाग्य पर विश्वास करने वाला होता है. लेकिन वह यह नहीं समझता कि व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माता स्वयं होता है. निराश व्यक्ति सदैव भाग्य का रोना रोता रहता है. निराशा के चलते वह बहुत जल्द ही अपने बहुमूल्य जीवन को निरर्थक बना लेता है. वह सदैव ज्योतिषियों तथा फकीरों द्वारा बताए गए रास्ते पर चल कर अपने भाग्य के चमत्कार को देखना चाहता है. इस प्रकार हम देखते हैं कि निराशा की मांद में घुस कर व्यक्ति कोई काम नहीं कर सकता, क्योंकि वहां आशा की एक भी किरण नहीं घुस सकती. बड़ेबड़े वैज्ञानिकों, जिन के द्वारा आविष्कृत वस्तुओं को देख कर हम चमत्कृत हो उठते हैं, को अपने आविष्कारों में एक बार में सफलता नहीं मिली. उन्हें असफलताओं को ही अधिक झेलना पड़ा. मगर वे निराश नहीं हुए, अनवरत अपनी साधना में लगे रहे और अंतत: उन्हें सफलता मिली.

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