अधिकतर किशोर छोटीछोटी बातों पर क्रोध कर बैठते हैं, भले ही इस से उन्हें नुकसान हो. प्राचीन यूनानी दार्शनिक पैथागोरस का कहना है, ‘क्रोध मूर्खता से शुरू होता है और पश्चात्ताप पर खत्म होता है.’ क्रोध एक पागलपन का नाम है, जिस की लपटों से शिक्षित या अशिक्षित कोई भी व्यक्ति झुलसने से नहीं बच सकता. क्रोध जहां बुद्धि को निगल जाता है, वहीं यह मनुष्य के विवेक को भी नष्ट कर के उसे पशु की श्रेणी में ला खड़ा करता है. कई बार किशोर छोटीछोटी बातों पर अपने भाईबहनों, मातापिता, अध्यापक आदि पर क्रोधित हो जाते हैं. भाईबहन आपस में बिना पूछे एकदूसरे की वस्तु की अदलाबदली करने पर क्रोधित हो कर मारपीट तक कर बैठते हैं.

कुछ किशोर मातापिता द्वारा घर में झाड़ू लगाने, पानी भरने आदि काम के लिए कहे जाने पर क्रोधित हो कर बड़बड़ाने लगते हैं. छात्र द्वारा होमवर्क कर के न लाने, विलंब से विद्यालय पहुंचने का कारण अध्यापक द्वारा पूछने पर छात्र क्रोधित हो जाते हैं. किशोरों के क्रोधित होने के कई अन्य कारण भी हैं, मसलन, निरंतर अभ्यास करने से मस्तिष्क का अधिक थक जाना, बुरी संगति, मादक पदार्थों के सेवन की लत लगना, किसी आवश्यकता की पूर्ति होना, आत्मसम्मान को ठेस पहुंचना, हठी स्वभाव, शारीरिक रूप से अस्वस्थ होना, पारिवारिक उपेक्षा का शिकार होना आदि.

यूनानी इतिहासकार प्लुटार्क का कहना है, ‘क्रोध समझदारी को घर से बाहर निकाल कर दरवाजे पर सिटकिनी लगा देता है.’ इतिहास ऐसे कई उदाहरणों से भरा पड़ा है जिन में क्रोध प्रचंड अग्नि सिद्ध हुआ है. स्तालिन व हिटलर जैसे कई योद्धा क्रोध के कारण ही पराजय के शिकार हुए. क्रोध जब किशोरों के चेतन मन पर हावी हो जाता है तो वह उन के स्वभाव को विद्रोही और चिड़चिड़ा बना देता है. मानसिक कुंठा उन के मन में घर कर जाती है. स्मृति नष्ट हो जाती है. जीवन के प्रति रुचि, उत्साह समाप्त हो जाता है. मुखमंडल की चमक फीकी पड़ जाती है. क्रोध मस्तिष्क के दीपक को बुझा देता है. किशोरों को चाहिए कि वे क्रोध आने पर धैर्य से काम लें. जब क्रोध नम्रता का रूप धारण कर लेता है तो अभिमानी भी सिर झुका लेता है. कहा भी गया है कि जो क्रोध करने से बचता है वह महान विवेक से संपन्न है.

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