कई बार अच्छे कदम भी जल्दबाजी में परेशानी का सबब बन जाते हैं. नीट इस की मुफीद मिसाल है. नीट यानी एनईईटी को ‘नैशनल एलिजिबिलिटी कम ऐंट्रैंस टैस्ट’ के नाम से जाना जाता है. केंद्र सरकार चाहती है कि मैडिकल ग्रेजुएशन करने वाले सभी छात्र एक कौमन टैस्ट पास करने के बाद अपनी पढ़ाई करें. केंद्र ने इस को राज्यों में भी लागू किया है, जिस से सभी राज्य अलग से ऐंट्रैंस टैस्ट न ले कर नीट के जरिए ही छात्रों को मैडिकल की पढ़ाई में प्रवेश दें. केंद्र ने नीट को लागू किया तो कई राज्यों में इस का विरोध हुआ. कई राज्य सरकारें इस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी गईं पर उन को वहां से राहत नहीं मिली. केंद्र सरकार ने जिस तरह से हड़बड़ी में नीट को लागू किया उस से केवल राज्य सरकारें ही परेशान नहीं हुईं, बल्कि टैस्ट देने वाले छात्र भी प्रभावित हुए. बदले पैटर्न में छात्रों को प्रवेश परीक्षा देने में परेशानी हुई. तमाम छात्रों ने परीक्षा छोड़ भी दी.

नीट के पहले पूरे देश में मैडिकल कोर्स में प्रवेश के लिए अलगअलग

90 परीक्षाएं आयोजित की जाती थीं. सीबीएसई बोर्ड, एआईपीएमटी यानी औल इंडिया प्री मैडिकल टैस्ट का आयोजन करता था. इस के अलावा

हर राज्य में अलगअलग मैडिकल प्रवेश परीक्षाओं का आयोजन होता था. यही नहीं, कुछ प्राइवेट कालेज अलग से अपने लिए टैस्ट आयोजित कराते थे. उत्तर प्रदेश सरकार सीपीएमटी टैस्ट अलग से कराती है. अब सभी तरह की परीक्षाओं की जगह केवल एक ही परीक्षा का आयोजन होना है. राज्य सरकारें और प्राइवेट कालेज नीट के लिए अभी तैयार नहीं थे. उत्तर प्रदेश में मैडिकल ऐंट्रैंस टैस्ट देने वाले बच्चे सीपीएमटी की तैयारी कर रहे थे. केंद्र सरकार के फैसले के बाद इन बच्चों को नीट में शामिल होना पड़ा जिस की तैयारी का उन को पूरा समय नहीं मिला था.

हड़बड़ी से बिगड़ी बात

नीट का सब से अधिक नकारात्मक प्रभाव उन बच्चों पर पडे़गा जिन्होंने सीबीएसई से पढ़ाई नहीं की है. नीट का आयोजन केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड यानी सीबीएसई द्वारा किया जाएगा. वह अपने पाठ्यक्रम के आधार पर टैस्ट का पेपर तैयार करता है. देश में शिक्षा का समान स्तर नहीं है. सीबीएसई के अलावा आईसीएसई और अलगअलग प्रदेशों के बोर्ड हैं. पढ़ाई के स्तर की बात करें, तो प्रदेश बोर्ड्स की हालत बहुत खराब है. उन का पाठ्यक्रम सीबीएसई से अलग है. ऐसे में प्रदेश बोर्ड से पढ़ाई करने वाले बच्चे सीबीएसई के पाठ्यक्रम का मुकाबला कैसे कर पाएंगे, यह सवाल उठ रहा है. अभी तक प्रदेश बोर्ड से पढ़ाई करने वाले बच्चे स्टेट मैडिकल टैस्ट में हिस्सा ले रहे थे. अब ऐसे बच्चों के सामने केवल नीट का ही विकल्प है. केंद्र सरकार को इस असमानता का आभास है, इसीलिए उस ने छात्रों को इस साल ‘नीट वन’ और ‘नीट टू’ नाम से 2 बार नीट का मौका दिया.

केंद्र सरकार का कहना है कि इस साल जो परेशानियां छात्रों के सामने आईं वे अगले साल काफी हद तक सुलझ जाएंगी. इस से छात्रों का भला होगा. अब नीट देने के बाद छात्रों को अलगअलग राज्यों के लिए अलगअलग स्थानों पर परीक्षा देने के लिए नहीं जाना पडे़गा. इस से छात्रों की परेशानी के साथसाथ, परीक्षा देने के खर्चे में भी बचत होगी.

नीट देने वाले छात्र प्रभात कुमार कहता है, ‘‘केंद्र सरकार नीट को ले कर छात्रों की परेशानियों को अगले साल दूर करने की बात कर रही है, तो अच्छा यह होता कि अगले साल से ही इस को लागू किया जाता. इस साल नीट देने वाले छात्रों के सामने बहुत तरह की उलझने आईं जिन से उन की परीक्षा प्रभावित हुई.’’

उत्तर प्रदेश शिक्षा बोर्ड से पढ़ाई कर चुकी श्रद्धा सिंह कहती है, ‘‘हमारे देश में शिक्षा का समान स्तर नहीं है. ऐसे में एक कौमन टैस्ट होने से छात्रों को परेशानी होगी. स्टेट बोर्ड के माध्यम से अपनी पढ़ाई करने वाले छात्र इस में सीबीएसई पैटर्न के बच्चों का मुकाबला नहीं कर पाएंगे. ऐसे में बड़ी संख्या में छात्र मैडिकल की पढ़ाई नहीं कर पाएंगे. ऐसे छात्र नीट के लिए कोचिंग पर निर्भर होंगे. इस से कोचिंग का बिजनैस बेतहाशा बढ़ेगा. सरकार यह दावा कर रही है कि एक परीक्षा लागू होने से ऐंट्रैंस टैस्ट देने का खर्च घटेगा जबकि बात यह है कि बच्चों को अब कोचिंग पर ज्यादा निर्भर रहना पडे़गा जिस से पढ़ाई का खर्च बढ़ेगा. ग्रामीण इलाकों के बच्चे अब पहले के मुकाबले कम संख्या में मैडिकलकी पढ़ाई कर पाएंगे, क्योंकि ज्यादातर ग्रामीण इलाकों के स्कूल स्टेट बोर्ड के माध्यम से ही पढ़ाई कराते हैं.’’

प्राइवेट कालेजों की फीस में कमी

नीट के संबंध में केंद्र सरकार का बड़ा तर्क यह है कि इस के जरिए प्रवेश पाने पर प्राइवेट मैडिकल कालेजों को सरकार द्वारा तय की गई फीस ही छात्रों से लेनी होगी. देश में करीबकरीब 600 प्राइवेट कालेज हैं. ये सभी मनमानी फीस वसूलने के लिए बदनाम रहे हैं. नीट के जरिए प्रवेश लेने से मनमानी फीस वसूलने की परेशानी से छुटकारा मिल सकेगा. इस के साथ सीटों की खरीदफरोख्त भी बंद हो सकेगी. इस साल कई राज्य सरकारों को नीट से बाहर रखा गया है. सरकार ने प्राइवेट स्कूलों से कहा है कि वे अपनी सीटें नीट के जरिए ही भरें. प्राइवेट कालेजों की मनमानी को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार की बात को सही ठहरा भी चुका है.

उत्तर प्रदेश में प्राइवेट कालेजों ने अपनी फीस बढ़वाने में सफलता हासिल कर ली है. ये अब 2 लाख रुपए अधिक फीस वसूल कर सकेंगे. उत्तर प्रदेश सरकार ने एमबीबीएस के लिए 11 लाख30 हजार रुपए, बीडीएस के लिए 3 लाख 25 हजार रुपए अंतरिम फीस की घोषणा की है. उत्तर प्रदेश में एमबीबीएस की 31,00 सीटें और बीडीएसकी 23,00 सीटें हैं. यहां पढ़ने वाले छात्र नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताते हैं कि कालेज सरकार द्वारा तय फीस से कहीं अधिक पैसा वसूलते हैं. इस के अलावा फाइन और होस्टल फीस के जरिए बडे़ पैमाने पर कमाई की जाती है. सरकार ने इस साल नीट के मामले को इतना उलझा कर रखा कि छात्र कालेज में प्रवेश लेने के बाद समझ नहीं पा रहे कि कितनी फीस देनी है. नीट का लाभ छात्रों को सही से तभी मिलेगा जब प्राइवेट कालेज सरकार की बात मानें और अलग से कोई फीस न लें. छात्र कालेज में पढ़ने के नाते कालेज की शिकायत नहीं कर पाते जिस से कालेज मनमानी करने से नहीं चूकते हैं.

इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद भी जिस तरह से बच्चे बेरोजगार घूम रहे हैं उस से मैडिकल कालेजों की मांग बढ़ गई है. ऐसे में अब सभी कालेजों ने मैडिकल की पढ़ाई शुरू कर दी है. प्राइवेट कालेजों को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने मैडिकल की सीटें बढ़ा दी हैं. ऐसे में भविष्य में ज्यादा छात्र मैडिकल की पढ़ाई कर सकेंगे. सरकार अगर छात्रों को सही माने में राहत देना चाहती है, तो इन कालेजों की मनमानी को रोकने के साथ वहां की पढ़ाई को अपनी निगरानी में रखे वरना इंजीनियरिंग की पढ़ाई की ही तरह मैडिकल की पढ़ाई भी अपना असर खो देगी. 

विरोध में तर्क

पहली नजर में नीट का सिस्टम जितना सुलझा और पारदर्शी लगता है, उतना है नहीं. कई राज्य हैं, जो अपने तर्कों से इस सिस्टम की खामियों पर रोशनी डाल रहे हैं और अपनेअपने अंदाज में असहमति भी जाहिर कर रहे हैं. गौरतलब है कि ग्रैजुएशन के लैवल पर मैडिकल कोर्स

में दाखिला केवल एनईईटी के जरिए लेने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जो राज्य खुश नहीं हैं उन में महाराष्ट्र, गुजरात, जम्मूकश्मीर और पश्चिम बंगाल प्रमुख हैं. जाहिर है विरोध की इन की अपनी वजहें और तर्क भी हैं.

इन राज्यों ने मुख्य रूप से 3 सवाल उठाए हैं. इन का पहला तर्क है कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड नीट केवल अंगरेजी और हिंदी माध्यम में कराएगी, जिस से प्रवेश के लिए परीक्षा में बैठने वाले उन छात्रों की राह मुश्किल हो जाएगी जो ऐसी परीक्षाएं क्षेत्रीय भाषाओं में देते आए हैं. आसान भाषा में समझने के लिए मान कर चलते हैं कि महाराष्ट्र का कोई स्टूडैंट अपने राज्य में मराठी भाषा में मैडिकल ऐंट्रैंस टैस्ट दे सकता है या फिर कर्नाटक का छात्र कन्नड़ में मैडिकल ऐंट्रैंस टैस्ट देने का विकल्प रखता है लेकिन अगर उन्हें केवल अंगरेजी या हिंदी में टैस्ट देने को कहा जाए तो जाहिर है वे कभी भी प्रवेश परीक्षा में उतना अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकेंगे, जितना हिंदी या अंगरेजी स्कूलों से पढ़ कर आए छात्र करेंगे. ऐसे में उन के लिए मुश्किलें हैं.

इस के इतर, अन्य तर्क यह भी है कि कई राज्यों की परीक्षा का पाठ्यक्रम सीबीएसई से अलग होता है. लेकिन नीट की परीक्षा सीबीएसई पाठ्यक्रम के आधार पर ही होती है, इसलिए दूसरे पाठ्यक्रम वाले छात्रों को इस से परेशानी हो सकती है, क्योंकि वे राज्य के बोर्ड द्वारा तय पाठ्यक्रम से पढ़ाई करते हैं. तीसरा तर्क है कि कई राज्यों में अन्य प्रवेश परीक्षाएं भी कराई जा रही हैं. ऐसे में एनईईटी को स्वीकार करना फिलहाल संभव नहीं होगा.

हालांकि इन तर्कों के सामने 15 राज्यों ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा से नीट को एक साल तक के लिए रोकने को कहा था. इस के बाद सरकार एक अध्यादेश ले कर आई जिस में राज्यों को एक साल तक नीट से छूट दी गई. अब इस अध्यादेश को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी है. अध्यादेश के मुताबिक, अब राज्यों को यह छूट मिलेगी कि वे इस साल एमबीबीएस और बीडीएस के लिए खुद टैस्ट करवाएं या नीट का हिस्सा बनें. हालांकि अगले वर्ष से नीट सभी राज्यों के लिए जरूरी होगी.

पाठ्यक्रम पर बहस

तमाम विवादों और बयानबाजी के बीच नीट 2016 की परीक्षा हुई. मैडिकल की इस प्रवेश परीक्षा में हेत शाह ने प्रथम स्थान पा कर नीट के पहले टौपर का खिताब अपने नाम किया.

गुजरात के शहर नाडियाड के रहने वाले हेत शाह फिलहाल एम्स दिल्ली में एमबीबीएस प्रथम वर्ष के छात्र हैं. अपनी तैयारी को ले कर हेत शाह कहते हैं कि परीक्षा में सफल होने के इच्छुक छात्रों को एनसीईआरटी की किताबों को पढ़ना चाहिए.

2014 में हेत शाह ने मैडिकल ऐंट्रैंस परीक्षा पास करने के लिए कोटा के एक इंस्टिट्यूट से कोचिंग ली. हालांकि जिस तरह से हेत शाह परीक्षा में सफल होने के लिए छात्रों को एनसीईआरटी की किताबों को पढ़ने का सुझाव देते हैं, उस से उस बहस को हवा मिल जाती है जिस में चिंता जताई गई है कि अलगअलग बोर्ड व पाठ्यक्रम से जुड़े छात्र नीट में समान व स्वस्थ प्रतिस्पर्धा कैसे करेंगे? इस लिहाज से तो एनसीईआरटी की किताबों से तैयारी करने वाले छात्र नीट परीक्षा के योग्य हैं.

किस ने क्या कहा

नीट को ले कर सियासी और शैक्षिक गतिविधियां जोरों पर हैं. जहां कई राज्य व सरकारें इस सिस्टम के खिलाफ हैं, तो वहीं दिल्ली सरकार समेत कई राज्य सरकारें नीट परीक्षा पैटर्न को सार्थक कदम मानती हैं.

दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन का कहना है, ‘‘मैडिकल की पढ़ाई आज एक व्यवसाय बन चुकी है. कई सांसदों समेत कई राजनेताओं की मैडिकल कालेजों की मिलीभगत में भागीदारी है. हैरत की बात है कि एक ओर कई राज्य कह रहे हैं कि वे अदालत के आदेश का समर्थन करते हैं. लेकिन दूसरी ओर वे इसे लागू नहीं होने देना चाहते. सुप्रीम कोर्ट का फैसला जितनी जल्दी हो सके लागू किया जाना चाहिए.’’

इंडियन मैडिकल ऐसोसिएशन के निर्वाचित अध्यक्ष डा. के के अग्रवाल का कहना है, ‘‘इस में किसी तरह का विरोध या परेशानी नहीं होनी चाहिए. सभी राज्य अपनी हुकूमत चलाएं, यह संभव नहीं है. एक तरफ आप कह रहे हैं कि अच्छे डाक्टर नहीं निकल रहे हैं और दूसरी तरफ यह कह रहे हैं कि जिसे कुछ नहीं आता उसे डाक्टर बना दो, यह कैसे संभव है? इस के लिए एक यूनिफौर्म या फिर एक स्टैंडर्ड तो लागू करना ही पड़ेगा.

‘‘यदि भारत को एक बनाना है, तो इस के लिए एक भाषा तो लानी ही पड़ेगी और एमबीबीएस की पढ़ाई का माध्यम अंगरेजी है, तो इस के लिए आप को अंगरेजी तो जाननी ही पड़ेगी. जब आप ने यूनिफौर्म सिस्टम निकाल दिया है, तो उसे मानने में हर्ज क्या है?

‘‘इस के लिए सभी राज्यों को पढ़ाई के स्तर को बढ़ाना होगा. यदि लगता है कि मैडिकल लाइन में जाने के लिए सीबीएसई पैटर्न होना जरूरी है, तो उस पैटर्न की पढ़ाई की जाए. अगर कोई विरोध करता है कि नीट की प्रवेश परीक्षा हम क्षेत्रीय भाषा में देंगे और एमबीबीएस की पढ़ाई अंगरेजी में करेंगे, तो फिर प्रवेश परीक्षा क्षेत्रीय भाषा में क्यों? ऐसा संभव नहीं है. अच्छे डाक्टर बनने के लिए अंगरेजी के साथसाथ एक यूनिफौर्म को लागू करना जरूरी है.’’

मैडिकल शिक्षा को बढ़ावा देने की कोशिश में लगे रघुवंशी कैंपस के डायरैक्टर अशोक सिंह रघुवंशी कहते हैं, ‘‘नीट के लागू होने का सब से अधिक लाभ यह होगा कि इस से ज्यादा बच्चे डाक्टरी पढ़ सकेंगे. सरकार ने मैडिकल की सीटें बढ़ा दी हैं. सीटें कम होने से अभी तक बहुत सारे छात्रों को मायूस होना पड़ता था. यह सच है कि सरकार ने पूरी तैयारी के साथ इसे लागू नहीं किया. मैडिकल टैस्ट देने वाले छात्रों को कम ही समय मिल सका. आने वाले समय में ये कमियां दूर हो सकेंगी. जिस का लाभ छात्रों को मिल सकेगा. सरकार को सभी छात्रों को समान अवसर देने के लिए समान पाठ्यक्रम भी लागू करना चाहिए. मैडिकल में प्रवेश चाहने वाले छात्रों के लिए अच्छी बात यह है कि अब उन को अलगअलग परीक्षा की तैयारी नहीं करनी होगी. वे अब ज्यादा फोकस हो कर मेहनत कर सकते हैं. तमाम तरह की परीक्षाएं देने में लगने वाला समय और पैसा भी बच सकेगा.’’

सरकार को अगर एकजैसे डाक्टर तैयार करने हैं, तो केवल एक प्रवेश परीक्षा कराने मात्र से काम नहीं चलेगा. सरकार को देश में समान शिक्षा पद्धति भी लागू करनी होगी.

पसीना छुड़ाए मैडिकल स्टडी का खर्च

–       देशभर में प्राइवेट मैडिकल कालेजों में दाखिले के लिए प्रतिवर्ष करीब 100 से ज्यादा परीक्षाएं होती हैं.

–       प्रवेश परीक्षाओं की फीस 1,200 रुपए से 6,000 रुपए तक है.

–       कोई छात्र अगर 4-5 परीक्षाएं भी देता है, तो उसे करीब 20 हजार रुपए तो केवल इस मद में खर्चने ही पड़ेंगे.

–       बेंगलुरु जैसे कुछ इलाकों के निजी कालेज तो एकएक सीट के लिए छात्रों से एक करोड़ रुपए तक की कैपिटेशन फीस लेते हैं.

–       उत्तर प्रदेश में कथित तौर पर 25 से 35 लाख रुपए में मैडिकल कालेज की सीट कैपिटेशन बेची जाती है.

–       रेडियोलौजी और डर्मेटोलौजी में एमबीबीएस के बाद एमडी की सीट के लिए तो 3-3 करोड़ रुपए तक लिए जाते हैं.

–       देशभर के निजी मैडिकल कालेजों में एमबीबीएस की सीट की कीमत अनुमानित तौर पर 58 लाख रुपए है. स्वाभाविक है कि इतना पैसा केवल अमीरों के बच्चे खर्च कर सकते हैं. ऐसे में गरीब ही नहीं, दलित व पिछड़ी जातियों के लिए चिकित्सा क्षेत्र के दरवाजे बंद ही हैं.

मैडिकल की पढ़ाई में देशीविदेशी पैटर्न

–       अमेरिका और कनाडा में छात्रों को मैडिकल कालेज में प्रवेश के लिए एमकैट यानी एमसीएटी परीक्षा देनी होती है और इस परीक्षा के अंकों के आधार पर भारत के छात्र वहां के किसी मैडिकल कालेज में प्रवेश पा सकते हैं.

–       इंगलैंड में मैडिकल कालेज में दाखिले के लिए एक ही प्रवेश परीक्षा होती है. वहां यूके क्लीनिकल ऐप्टीट्यूड टैस्ट होता है, जिसे यूके यूनिवर्सिटी मैडिकल ऐंड डैंटल स्कूल का कंसोर्टियम यानी संकाय आयोजित करता है.

–       आस्ट्रेलिया में यूमैट यानी यूएमटी नाम से मैडिकल प्रवेश परीक्षा होती है. वहां भी देशभर के मैडिकल कालेजों में दाखिले के लिए एक ही प्रवेश परीक्षा का चलन है.

–       विदेशों से मैडिकल डिगरी हासिल करने वाले छात्रों की पहली पसंद आजकल चीन, यूक्रेन और रूस जैसे देश होते हैं, क्योंकि वहां डाक्टरी की पढ़ाई हमारे देश के निजी कालेजों के मुकाबले काफी सस्ती है.

–       विदेशों से मैडिकल डिगरी हासिल करने वाले छात्रों को भारत आ कर एक स्क्रीनिंग टैस्ट देना पड़ता है.

ऐसे आया नीट

–       साल 2012 से पहले सीबीएसई, औल इंडिया प्री मैडिकल टैस्ट यानी एआईपीएमटी की परीक्षा होती थी. जैसे ही नीट परीक्षा की घोषणा हुई, इस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की गईं.

–       दिलचस्प बात यह है कि जुलाई 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने नीट परीक्षा को खारिज कर दिया और आदेश दिया कि निजी मैडिकल संस्थानों को नीट परीक्षा के आधार पर ऐडमिशन नहीं करने चाहिए.

–       इस के बाद मैडिकल काउंसिल औफ इंडिया ने दोबारा सुप्रीम कोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका दाखिल की, जिस पर कोर्ट ने अप्रैल 2016 में सुनवाई की.

–       इन सब के बीच केंद्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट से नीट परीक्षा करवाने की मांग की थी, जिस के बाद 28 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में नीट को लागू करने का फैसला सुना दिया.

नीट से जुड़ी महत्त्वपूर्ण बातें

–       सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि देशभर के मैडिकल कालेजों में दाखिले एक कौमन ऐंट्रैंस टैस्ट के जरिए होंगे. इसे एनईईटी नाम दिया गया.

–       इस के तहत पहला टैस्ट 1 मई को, दूसरे दौर का टैस्ट 24 जुलाई को हो चुका है.

–       राज्यों का कहना कि एनईईटी से क्षेत्रीय भाषाओं में तैयारी करने वालों को नुकसान होगा.

–       राज्यों में मैडिकल प्रवेश परीक्षा का पाठ्यक्रम भी अलग है.

–       केंद्र का कहना है कि उसे उस राज्य की बात भी सुननी है, जो एनईईटी से चिंतित है.

–       दिल्ली के सीएम का कहना है कि इस से मैडिकल ऐंट्रैंस में करप्शन रुकेगा.

–       सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कई राज्य सहमत नहीं थे. इन राज्यों में महाराष्ट्र, गुजरात, जम्मूकश्मीर और पश्चिम बंगाल समेत कई अन्य शामिल हैं.

शानदार है डाक्टरी का कैरियर

युवाओं में डाक्टर बनने का जबरदस्त क्रेज है. लड़कियों को घरपरिवार के लोग खासकर डाक्टर बनाना चाहे हैं. ऐलोपैथी दुनिया में चिकित्सा की तमाम लोकप्रिय पद्धतियों में से एक है.

ऐलोपैथिक डाक्टर बनने के लिए 12वीं बायोलौजी के बाद एमबीबीएस यानी बैचलर औफ मैडिसिन एवं बैचलर औफ सर्जरी की पढ़ाई करनी होती है. सामान्यतया एमबीबीएस का कोर्स साढ़े 4 वर्ष की अवधि का होता है. इस के पूरा करने के बाद अनिवार्य रूप से किसी मैडिकल कालेज में एक साल की इंटर्नशिप भी करनी होती है. इस तरह एमबीबीएस का कोर्स कुल साढ़े 5 साल में पूरा होता है. कोर्स पूरा करने के बाद एमसीआई यानी मैडिकल काउंसिल औफ इंडिया द्वारा क्वालिफाइड डाक्टर के रूप में एमबीबीएस की डिगरी प्रदान कर दी जाती है.

अब साधारण एमबीबीएस का जमाना नहीं है. अगर इस फील्ड में आगे निकलना है, तो एमबीबीएस करने के बाद अपनी रुचि के क्षेत्रों, जैसे प्लास्टिक सर्जरी, नैफ्रोलौजी, मैडिसिन, सर्जरी, और्थो आदि में से किसी एक में पोस्टग्रैजुएशन और उस के बाद रिसर्च कर के अपना ज्ञान बढ़ाना चाहिए. इस का लाभ प्रोफैशन में लगातार मिल सकता है.

डाक्टर के रूप में लगातार आगे बढ़ने के लिए खुद को अपटूडेट रखने की जरूरत होती है. ऐसा इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि आज मैडिकल साइंस में हर दिन नई टैक्नोलौजी सामने आ रही है. सही डायग्नोसिस एवं ट्रीटमैंट के लिए भी यह बहुत आवश्यक है. ऐंट्रैंस टैस्ट में सफल होने के बाद स्टूडैंट की रैंकिंग के आधार पर मैडिकल कालेज अलौट किया जाता है, तो होम स्टेट के मैडिकल कालेज को प्राथमिकता देनी चाहिए. इस से भाषा या इस से संबंधित क्षेत्रीय समस्याएं सामने नहीं आतीं. इस के अलावा वहां काम करना भी आसान होता है.

अगर कोई डाक्टर ईमानदारी और सेवाभाव से प्रैक्टिस करता है, तो वह आरंभ में मासिक 25-30 हजार रुपए आसानी से कमा सकता है. 7वें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद केंद्र सरकार के अस्पतालों में अब डाक्टर का आरंभिक वेतन 60-80 हजार रुपए तक पहुंच गया है. इस के अलावा कुछ लोग अपना क्लीनिक खोल कर या फिर प्राइवेट मल्टीस्पैश्यलिटी हौस्पिटल में काम कर के भी अपने कैरियर को सुखद बना सकते हैं. अच्छे डाक्टरों की आय लाखों में होती है और अपना क्लीनिक खोल लें, तो करोड़ों की संपत्ति बन सकती है.

– साथ में राजेश कुमार

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