रामपुर गांव के रहने वाले रामकुमार की पत्नी सीमा पेट से थी. रामकुमार गरीब परिवार का था. बहुत कोशिशों के बाद भी उस का बीपीएल कार्ड नहीं बना था. इस वजह से गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों को मिलने वाले सरकारी फायदे भी नहीं मिल रहे थे. दलित जाति का होने के चलते उस के पास जमीन का कोई पट्टा भी नहीं था. उस की पत्नी पेट से हुई, तो गांव की स्वास्थ्यकर्मी ‘आशा बहू’ ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में ले जा कर दवाएं दिलवा दी थीं. सीमा कमजोर थी. यह उस का तीसरा बच्चा था. बच्चा जनने के दिन उसे बहुत दर्द हो रहा था. गांव में पहले वह स्वास्थ्य केंद्र गई. वहां डिलिवरी कराने की अच्छी सुविधा नहीं थी, तो डाक्टर ने उसे जिला अस्पताल, लखनऊ भेज दिया. रास्ते में ही उसे दर्द शुरू हो गया. कमजोर होने के चलते वह डिलिवरी नहीं कर पाई और उस की सांसें समय से पहले ही थम गईं.
दहिला गांव की रहने वाली सुभावती भी बच्चा जनने के दौरान गुजर गई. उसे जब दर्द उठा, तो सब से पहले गांव की कुछ औरतों ने घर में ही बच्चा पैदा कराने की कोशिश की. इस दौरान बच्चे का सिर अंग से बाहर आ गया, पर आगे का हिस्सा बाहर नहीं आ पाया. सुभावती को खून बहने लगा. उस का पति ब्रजेश और गांव के लोग अस्पताल ले जाने लगे, तभी रास्ते में उस की मौत हो गई. ब्रजेश अतिपिछड़ी मल्लाह जाति का था. गांव से सड़क तक आने में 2 किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ता है. आसपास कोई डाक्टर या दूसरी स्वास्थ्य सेवाएं न होने के चलते ऐसी घटनाएं कई बार घट जाती हैं. गांव में रहने वाली गरीब औरतों के मामलों में सब से ज्यादा बच्चा जनने के दौरान मौत होती है. ये लोग गरीब और नासमझ दोनों होते हैं. ऐसे में इन को किसी तरह की सरकारी मदद भी नहीं मिल पाती है.