‘सुनो सब की, करो मन की’ उक्ति  से कोई भी अपरिचित न होगा.  मन का करना सही होता है पर केवल तभी जब वह वैज्ञानिक सोच से बुद्धिमत्तापूर्वक किया जाए और जरूरी नहीं कि विवेक या वैज्ञानिक सोच सभी में हो क्योंकि प्रत्येक इंसान को सभी क्षेत्रों का ज्ञान नहीं होता. और अज्ञानता होने पर सिर्फ विशेषज्ञ की सलाह पर चलना ही सही कदम होगा.

सामाजिक परिवेश में जीवन में आने वाली विविध प्रकार की परेशानियों के उदाहरणों से हम रूबरू होते ही रहते हैं. लेकिन कुछ परेशानियों के लिए हम स्वयं ही जिम्मेदार होते हैं. आइए, कुछ उदाहरणों से रूबरू होते हैं जो समाज में आसपास ही देखे गए हैं.

सर्वप्रथम मैं अपना स्वयं का अनुभव ही बताना चाहूंगी. कुछ समय पूर्व चिकनगुनिया नामक बीमारी फैली थी. इस बीमारी की चपेट में मैं भी आ गई. मुझे हाथपैरों के जोड़ों में जकड़न के साथ बुखार था. डाक्टर द्वारा लिखित दवाओं का निश्चित डोज लेने के पश्चात भी कुछ लक्षण यथावत थे. एक परिचित ने सलाह दी कि पैरों का व्यायाम करें. मैं ने व्यायाम शुरू किया. नतीजा नकारात्मक रहा. जब इस संबंध में चिकित्सक से परामर्श लिया तो उन्होंने बताया कि इस बीमारी में व्यायाम नहीं करना चाहिए. इस अनुभव से मैं ने जाना कि बीमारी में विशेषज्ञ की सलाह के बगैर कुछ नहीं करना चाहिए.

स्वास्थ्य संबंधी घरेलू नुस्खे समाचार- पत्रों व पत्रिकाओं में छपते रहते हैं. वैसा ही एक नुस्खा एक महिला, जो कि एक प्राइवेट फर्म में अच्छे पद पर कार्यरत हैं, ने पढ़ा. नुस्खे के अनुसार, उन्होंने ककड़ी की स्लाइस आंखों पर रखी और नतीजा यह हुआ कि आंखों पर सूजन आ गई, शायद कुछ रस आंखों में चला गया. नतीजतन, उक्त महिला को चिकित्सक की सलाह लेनी पड़ी.

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