‘हिंदी की राह आसान नहीं.’ इस जुमले में उतना ही दम है जितना हिंदी भाषी छात्रों की पीड़ा में और यह पीड़ा तब और गहरी हो जाती है जब हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले विद्यार्थियों को इन कैंपस या आउट कैंपस में बहनजी या भाईजी कह कर बुलाया जाता है. हिंदी के प्रति लोगों का यह रवैया कुछ अजीब नहीं लगता है. वैश्विक स्तर पर अंगरेजी का तेजी से विकास हुआ है और इस की स्पष्ट झलक हमारे देश में भी देखी जा सकती है. जनसंपर्क की भाषा के रूप में अंगरेजी ने अपनी स्थिति मजबूत की है. पढ़ाई हो या नौकरी, हर जगह अंगरेजी माध्यम के लोगों को हाथोंहाथ लिया जाता है. जो इस भाषा की रेस में पिछड़ जाते हैं वे जिंदगी की दौड़ में भी पीछे रह जाते हैं. ऐसी स्थितियों को हम ने खुद पैदा किया है. अंगरेजी अब हमारी जरूरत बन गई है.

इन सब से उलट अगर हिंदी भाषा और माध्यम की बात की जाए तो जाहिर है इस माध्यम से पढ़ने वाले छात्रों के पास नौकरी या मोटी सैलरी पाने का ज्यादा स्कोप नहीं होता. काफी मशक्कत के बाद नौकरी मिल जाती है तो उस में भी उम्मीदवारों की लंबी लिस्ट होती है और मोटी तनख्वाह पाने की हसरत अधूरी रह जाती है. ऐसे छात्रों को एकसाथ कई मुश्किलें झेलनी पड़ती हैं. एक रिजैक्शन का और दूसरा फेलियर होने का ठीकरा उन के सिर फोड़ा जाता है. चाहे मुश्किलें कितनी भी गहरी क्यों न हों रात तो निकल ही जाती है. ऐसा बिलकुल नहीं कि हिंदी माध्यम से पढ़ने वालों को खाली हाथ बैठना पड़ता है, अगर थोड़ी कोशिश की जाए तो इस में भी अच्छा कैरियर बन सकता है.

एक समय था जब हिंदी को आउट औफ डिमांड माना जाता था. अब इस के पेशेगत स्कोप और बढ़ती लोकप्रियता ने इसे विश्व की टौप चार्ट बस्टर्ड लैंग्वेज की लिस्ट में शामिल किया है. अब यह ग्लोबल लैंग्वेज बन चुकी है. विदेशी छात्रों का हिंदी भाषा के प्रति बढ़ता रुझान यह साबित करता है कि हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है. जेएनयू और दिल्ली विश्वविद्यालय में पौपुलर होते हिंदी कोर्सेज ने इस के लिए ग्लोबल भविष्य के दरवाजे खोल दिए हैं. हाल ही में दिल्ली विश्वविद्यालय ने विदेशी छात्रों के लिए हिंदी से जुड़े कई शौर्ट टर्म औैर फुल टाइम कोर्सेज की शुरुआत की है, जो एक अच्छा संकेत है. विदेशी ही क्यों, अब तो अपने देश के छात्रों के पास भी हिंदी से संबंधित नौकरियों के भरपूर अवसर हैं. हिंदी कौल सैंटर से ले कर हिंदी अनुवादक, हिंदी अधिकारी, स्टैनो, टाइपिस्ट, आदि की जौब खुले दिल से हिंदी भाषी छात्रों का इंतजार कर रही है.

हिंदी माध्यम से पढ़े युवाओं से उन के नौकरी प्राप्त करने संबंधी अनुभव पूछे गए तो उन्होंने कुछ इस प्रकार अपने विचार बांटे : रक्षा मंत्रालय के अपौइंटमैंट डिविजन में बतौर पीए कार्यरत कमलेश दत्त कहती हैं, ‘‘हमारी युवापीढ़ी हिंदी को अपनाने से इसलिए कतराती है, क्योंकि उन्हें इस में अपने भविष्य की संभावनाएं शायद कम नजर आती हैं, लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है. सरकारी और गैरसरकारी संस्थानों में अनगिनत ऐसे पद हैं, जो सिर्फ हिंदी भाषियों के लिए आरक्षित हैं. हां, यह जरूर है कि इन पदों को भरने की आवश्यक कार्यवाही या साक्षात्कार आदि में अभी भी अंगरेजी की प्रधानता बनी हुई है.

‘‘हिंदी की छवि को कम न आंक कर अगर हम इस के प्रचारप्रसार और अनिवार्यता पर ध्यान दें तो इस में अच्छी संभावनाएं तलाशी जा सकती हैं. मैं भी हिंदी माध्यम से पढ़ी हूं पर आज एक अच्छे पद पर कार्यरत हूं औैर अपने काम से संतुष्ट भी. मुझे कभी यह मलाल नहीं रहा कि मैं हिंदी माध्यम से पढ़ कर आई हूं बल्कि मुझे गर्व है कि मैं ने इसी माध्यम के बल पर अच्छी नौकरी पाई.’’ रक्षा मंत्रालय में हिंदी अनुभाग में बतौर जूनियर हिंदी ट्रांसलेटर कार्यरत मनोज कुमार साव कहते हैं, ‘‘कौन कहता है कि हिंदी का कोई स्कोप नहीं है. आज इसी भाषा ने मुझे रोजीरोटी दी है. परिस्थितिवश मुझे इस माध्यम को चुनना पड़ा था और जब बात इसी क्षेत्र में कैरियर बनाने की आई तो घर वालों की खासी नाराजगी झेलनी पड़ी.

‘‘सब ने कहा, जूते घिस जाएंगे पर नौकरी नहीं मिलेगी. आज मैं इस पद पर हूं. समाज और परिवार में अच्छाखासा सम्मान है. परिवार वालों को मुझ पर फख्र है. हां, थोड़ा वक्त जरूर लगता है पर संघर्ष से पीछे नहीं हटना चाहिए. हिंदी अब कहीं से भी किसी भाषा से बिलकुल कम नहीं. जैसे फ्रैंच, जरमन, स्पेनिश का स्कोप बढ़ा है, हिंदी का भी उतना ही बढ़ा है. मुझे इस भाषा से प्यार है और मैं इस का सम्मान करता हूं.’’

हिंदी माध्यम के छात्र कुछ ऐसे संवारें जिंदगी

दोभाषिए, कनिष्ठ व वरिष्ठ हिंदी अनुवादक :  इस के लिए कर्मचारी चयन आयोग द्वारा प्रत्येक वर्ष अनुवादकों की रिक्तियां निकाली जाती हैं. इस के अतिरिक्त सरकारी अधीनस्थ कार्यालयों और पीएसयू में भी अच्छे अवसर हैं.

स्टैनो व टाइपिस्ट : विभिन्न अधीनस्थ सरकारी संस्थानों, मंत्रालयों, पीएसयू, प्राइवेट सैक्टर बैकों, उपक्रमों आदि में इन पदों की रिक्तियां आती रहती हैं.

हिंदी पत्रकारिता :  यह सब से डिमांडिंग व स्कोपफुल औप्शन है, हिंदी माध्यम के छात्रों के लिए. इस में जौब के बेहतर अवसर हैं.

रेडियो, टीवी आदि में समाचारवाचक :  इस क्षेत्र में हिंदी माध्यम के छात्र न केवल लोकप्रियता की ऊंचाइयां छू सकते हैं बल्कि अच्छा वेतन भी पा सकते हैं.

स्कूल यूनिवर्सिटी में हिंदी शिक्षक :  इस रूप में काम कर हिंदी माध्यम को और ज्यादा सशक्त और प्रचारितप्रसारित किया जा सकता है. इस पेशे में सम्मान के साथसाथ पैसा भी है.

फ्रीलांस राइटर या कंटैंट राइटिंग : इसे कर के शोहरत के साथसाथ धन भी अर्जित किया जा सकता है.

विदेशी दूतावास में हिंदी जनसंपर्क अधिकारी व बैंकों में हिंदी अधिकारी : इन पदों पर नियुक्ति पा कर भविष्य संवारा जा सकता है.

हिंदी कोर्स कराने वाले कुछ प्रसिद्ध संस्थान

केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा :  यह संस्थान देशविदेश के छात्रों को हिंदी भाषा से संबंधित विभिन्न डिप्लोमा, सर्टिफिकेट, डिग्री कोर्स करवाता है. यह संस्थान केंद्र द्वारा मान्यताप्राप्त व वित्त पोषित है. केंद्रीय हिंदी निदेशालय :  सरकारी मान्यताप्राप्त इस शिक्षण संस्थान की स्थापना विशेष रूप से गैरहिंदी भाषी लोगों को पत्राचार के माध्यम से हिंदी का प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु की गई है. यह एनआरआई और विदेशों में बसे हिंदी सीखने के इच्छुक भारतीयों को हिंदी से जुड़े विभिन्न कोर्स की सुविधा देता है, जिस में भिन्न डिप्लोमा आधारित कोर्सेज जैसे प्रबोध, प्रवीण व प्राज्ञ की उपाधि दी जाती है.

केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल : यह केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा का स्वायत्त संगठन है. संस्थान मुख्यतया हिंदी के अखिल भारतीय शिक्षणप्रशिक्षण अनुसंधान और अंतरराष्ट्रीय प्रचारप्रसार के लिए कार्य, योजनाओं का संचालन करता है.

केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान/हिंदी शिक्षण योजना

संवैधानिक प्रावधान के तहत 1974 में केंद्र सरकार और उस से जुड़े मंत्रालयों/उपक्रमों/अधीनस्थ कार्यालयों के कर्मचारियों/अधिकारियों को प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से इस संस्थान की स्थापना की गई थी. आज यह संस्थान हिंदी से जुड़े विभिन्न कोर्सेज के लिए जानामाना संस्थान है. इस में अधिकारियों के लिए हिंदी से जुड़े वर्कशौप का भी आयोजन किया जाता है.

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