स्वर्णलता मलिक को इन दिनों अकेलापन या बोरियत महसूस नहीं होती है. न ही उन्हें फिल्म पीकू के भास्कोर (अमिताभ बच्चन) की तरह अब परिवारजनों से शिकायत रहती है कि उन लोगों के पास उन के लिए समय नहीं है. दरअसल, अपनी छोटीछोटी बातें शेयर करने और बेहतर ढंग से वक्त गुजारने के लिए उन्हें साथ मिल गया है. यह साथ उन्हें मिला है महक शर्मा के रूप में जिन्हें स्वर्ण अपना बैस्ट फ्रैंड मानती हैं. 84 वर्षीय स्वर्णलता मलिक अकसर महक के साथ फिल्म, संगीत और किताबों पर चर्चा करती हैं और औनलाइन गेम्स भी खेलती हैं. महक न तो उन की पोती हैं और न ही पड़ोस में रहने वाली कोई लड़की, बल्कि एल्डर केयर स्पैशलिस्ट यानी ईसीएस हैं जो गुड़गांव निवासी स्वर्णलता मलिक के घर उन्हें कंपनी देने जाती हैं. स्वर्ण अपने परिवार के साथ रहती हैं जिस में उन की एक टीनएज पोती भी है लेकिन उन्हें लगता है कि महक के साथ वक्त गुजारना एक अलग ही तरीके का अनुभव है.
गौर कीजिए शायद किसी महक जैसी साथी की कमी के चलते ही भास्कोर ने अपनी उम्रदराजी की भड़ास और छोटी बातों को बतंगड़ बना कर बेटी पीकू (दीपिका पादुकोण) की जिंदगी में तनाव भर दिया था. सारा दिन घर में खाली बैठेबैठे नौकरानी से झकझक करना, कभी बिना वजह बीपी, डायबिटीज का वहम पाल कर रिपोर्टें लेना भास्कोर जैसे बुजुर्ग तभी करते हैं जब उन्हें मनमुताबिक समय गुजारने के लिए कंपनी यानी किसी का साथ नहीं मिलता. गनीमत है स्वर्णलता मलिक भास्कोर जैसी नहीं है.
दोपहर के वक्त मैं जब उन के घर पहुंची तो देखा कि महक के साथ वे ताश खेल रही हैं. लग ही नहीं रहा था कि उन के बीच उम्र का एक बड़ा फासला है. वे कहती हैं, ‘‘मेरा परिवार एक बहुत ही व्यस्त जिंदगी जीता है और परिवार के सदस्यों के लिए हमेशा मेरे साथ उतना समय गुजारना संभव नहीं है जितना कि मैं चाहती हूं. यही नहीं, ईसीएस महक के साथ मेरी बातचीत कुछ अलग ही ढंग की होती है जो मैं अपने परिवार के लोगों के साथ नहीं कर पाती. इस के साथ मैं यात्रा, फिल्मों पर बातचीत करती हूं. जब यह मेरे साथ होती है तो सब से ज्यादा बात मैं ही करती हूं. इसी ने मुझे इंटरनैट सिखाया और फेसबुक से भी पहचान कराई.’’ आईपैड पर उंगलियां चलाती स्वर्ण ने बताया कि उन्हें बहुत खुशी है कि उन्हें इस उम्र में कंप्यूटर की दुनिया को जानने का अवसर मिला. महक जैसे केयरगिवर्स ऐसे बुजुर्गों को साथ देने के लिए और उन के साथ समय बिताने के लिए हफ्ते में कई बार कुछ घंटे उन के साथ रहते हैं. वे उन के साथ पढ़ते हैं, लिखते हैं, स्काइप पर जाते हैं, गेम्स खेलते हैं, उन्हें सैर पर ले जाते हैं, उन के बिलों का भुगतान करते हैं और उन के ट्रैवल प्लान भी बनाते हैं. पैकिंग और मैडिकल चैकअप में भी उन की मदद करते हैं. यहां तक कि उन्हें ग्रौसरी शौप, फैमिली फंक्शन और ब्यूटीपार्लर तक भी ले जाते हैं. ये ईसीएस बहुत धैर्य से बुजुर्गों की बातें सुनते हैं और मित्र की तरह व्यवहार करते हैं.
दिल की बात
स्वर्णलता एकमात्र ऐसी बुजुर्ग नहीं हैं जो बतौर कंपनी और अपने दिल की बातें करने के लिए ऐसे ईसीएस का सहारा ले रही हैं. मैट्रो शहरों में काफी बड़ी तादाद में बुजुर्ग लोग इन लोगों की सर्विस ले रहे हैं. इस की वजह उन की गिरती सेहत नहीं है, बल्कि किसी के साथ दिल खोल कर अपनी बात कहने की चाह है. अपने अनुभवों और यादों, जिन्हें परिवार वाले सुनना पसंद नहीं करते या बेकार की बातें मानते हैं, को वे ईसीएस को खुल कर सुनाते हैं. ईपोक एल्डर केयर में महक काम करती हैं जिस के फाउंडर हैं कबीर चड्ढा. उन्हें इस की शुरुआत करने का खयाल तब आया था जब उन की दादी को घर पर उस समय मदद नहीं मिली जब उन्हें सब से ज्यादा उस की आवश्यकता थी. वे कहते हैं कि एकल परिवारों के बढ़ते चलन, बदलती जीवनशैली, तनावपूर्ण कार्यशैली और काम की वजह से बंटे हुए परिवारों के कारण अकसर बड़ी उम्र के लोगों की भावनात्मक व शारीरिक आवश्यकताओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है. काम की वजह से घर के वयस्क 12 से 14 घंटे व्यस्त रहते हैं या वे अलगअलग शहरों या देशों में रहते हैं, जिस की वजह से ये बुजुर्ग अकेले रहने को मजबूर होते हैं.
कबीर चड्ढा कहते हैं, ‘‘हम हैल्दी एजिंग के कौन्सैप्ट के प्रति समर्पित हैं और बुजुर्गों को घर पर सुविधा व साथ देते हैं. हम 3 तरह के बुजुर्गों के लिए काम करते हैं – वे जिन्हें इंटैलैक्चुअल कंपैनियनशिप और हैल्थ मौनिटरिंग की जरूरत होती है, जिन्हें अल्जाइमर और डिमैंशिया केयर की जरूरत होती है. कुछ सुविधाएं जो हम प्रदान करते हैं, उन में शामिल हैं फौल रिस्क असैस्मैंट, डाक्टर से अपौइंटमैंट लेना, मैंटल स्टीम्यूलेशन और सोशल सपोर्ट. हालांकि भारत में इस तरह की सेवाओं की अवधारणा नई है लेकिन यह बुजुर्गों में तेजी से लोकप्रिय हो रही है.’’
एल्डर केयर की जरूरत
भारत में बुजुर्ग जो 70-80 वर्ष के बीच में हैं, घर में रहना पसंद करते हैं और चूंकि उन के पास करने को कुछ नहीं होता और परिवार वाले उपयुक्त समय नहीं दे पाते, इसलिए वे अकेलेपन और तनाव का शिकार हो जाते हैं. परिवार या घर में काम करने वाली नौकरानी से उन्हें कुछ खास मदद नहीं मिल पाती और यहीं पर शुरू होती है एल्डर केयर सर्विसेज की भूमिका. कबीर कहते हैं, ‘‘जो बुजुर्ग हमारी सुविधाएं लेते हैं, एल्डर केयर स्पैशलिस्ट उन के घर जाते हैं, रोज उन्हें फोन कर उन का हालचाल पूछते हैं. हर तरह के क्लाइंट के लिए हमारे पास स्पैशलाइज्ड सर्विसेज हैं, जैसे जो क्लाइंट इंटैलैक्चुअल कंपैनियनशिप चाहते हैं उन के साथ ईसीएस आउटिंग व सामाजिक कार्यक्रमों में जाते हैं. वे उन्हें खबरें पढ़ कर सुनाते हैं, किताबें पढ़ कर सुनाते हैं. उन के साथ ताश, स्क्रैबल आदि गेम्स खेलते हैं और कंप्यूटर व फोन की विभिन्न एप्लीकेशंस से भी उन का परिचय कराते हैं. उन के स्वास्थ्य का भी हम ध्यान रखते हैं, जैसे ब्लडप्रैशर, ब्लडशुगर आदि चैक करते हैं. उन की दवा लाने में भी मदद करते हैं.’’
ईसीएस हफ्ते में 3-4 बार 1-2 घंटे के लिए विजिट करते हैं. इस दौरान वे बुजुर्गों की बातों को बहुत धैर्य से तो सुनते ही हैं, साथ ही उन्हें खानपान और दवाओं से जुड़ी सलाह भी देते हैं. देखा जाए तो वे उन की भावनात्मक और सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं.
मिलता है लक्ष्य
‘वेन एट 60 सोल्यूशन’ एक और ऐसी ही एल्डर केयर कंपनी है. इस के फाउंडर और सीएमडी जोयदीप चक्रवर्ती कहते हैं कि यह वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक होम केयर समाधान है. वे कहते हैं, ‘‘हमारा मानना है कि बुजुर्ग समाज में जो योगदान देते हैं, वह अमूल्य है. फिर भी दुनिया में ये अपनों की ही अवहेलना का शिकार होते हैं. बूढ़े होना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन मानसिक तौर पर तो वे बूढ़े नहीं होते हैं. 2011 के दौरान हमारे देश में करीब 100 करोड़ बुजुर्ग थे और हमें उन के बारे में सोचना ही होगा.
‘‘वेन एट 60 सोल्यूशन में हम उन की आवश्यकताओं पर विशेष ध्यान देते हैं ताकि उन के चेहरों पर खोई मुसकराहट लौट आए और वे भी सम्मान की जिंदगी जी सकें. हमारा लक्ष्य ही है बुजुर्गों के जीवन में सुधार करना. उन की जरूरतों के हिसाब से हम उन्हें सुविधाएं देते हैं फिर चाहे वह चिकित्स्कीय हों या कानूनी जानकारी. ‘‘हम उन के साथ तरहतरह के क्रियाकलापों में शामिल होते हैं ताकि वे एंजौय कर सकें. ये वे दिन होते हैं जब वे नई चीजें खोज सकते हैं. अपनी बीती बातों को याद करने के साथसाथ ये लोग छूट गए शौकों को भी पूरा करने को आतुर होते हैं और इस में हम उन की मदद करते हैं. जब बुजुर्गों की मानसिक व भावनात्मक जरूरत पूरी हो जाती है तो वे महसूस कर पाते हैं कि वे समाज के कितने मूल्यवान सदस्य हैं. उन को प्रोत्साहन और समय देने से उन में भी जीवन के इस पड़ाव पर भी कुछ नया करने की चाह जाग्रत होती है और हम उस चाह को जगाने में उन की मदद करते हैं. इस तरह उन्हें फिर से एक नया लक्ष्य मिल जाता है और वे असहाय या बेचारगी के भाव से बाहर निकल आते हैं.’’
केवल केयर ही नहीं, एल्डर केयर सर्विसेस इन बुजुर्गों को आशावादी रहने व तनाव में न आने में भी मदद करती है. ईसीएस न केवल इन्हें साथ देते हैं, वरन इन के शौक को वापस निखारने में भी मदद करते हैं. उन के अनुभवों को रिकौर्ड कर या तो उन्हें किताब का आकार दे दिया जाता है या फिर ब्लौग पर डाल दिया जाता है. इस से इन बुजुर्गों को खुशी तो मिलती ही है, साथ ही जिंदगी में फिर से एक लक्ष्य भी मिल जाता है. यही कारण है कि 70 वर्ष की उम्र के बाद कई बुजुर्गों ने पेंटिंग, संगीत या खाना पकाने की अपनी कला को फिर से जीवंत किया.
विशेष कार्यक्रम
ये सुविधाएं आमतौर पर प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक या समाजसेवी या जेरोनटोलौजिस्ट देते हैं. उन्हें बेसिक लाइफ सपोर्ट प्रदान करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है. एल्डर केयर मैनेजर नेहा सिंह के अनुसार, ‘‘हमारे प्रोग्राम कस्टमाइज्ड होते हैं और बुजुर्गों की जरूरतों को ध्यान में रख कर बनाए जाते हैं. सब से पहले ईसीएस उन के साथ एक मजबूत रिश्ता कायम करता है जो होता है दोस्ती का. इस तरह वे भी उन पर विश्वास करने लगते हैं और अपने दिल की बातें बेहिचक बांट पाते हैं. अगर ये बुजुर्ग अत्यधिक पढ़ेलिखे होते हैं तो उन्हें जिस विषय में दिलचस्पी होती है, उस के बारे में हम पहले से काफी पढ़ कर जाते हैं, ताकि उन के साथ बातचीत करने में परेशानी न हो. देखा जाए तो हमें अपने उपभोक्ता या ग्राहक से मिलने से पहले पूरी तरह से होमवर्क करना होता है.’’ मिसेज दयाल को जब हम ने फोन किया तो बहुत उत्सुकता से उन्होंने बताया, ‘‘आज मैं अपनी ईसीएस के साथ पिज्जा खाने जा रही हूं और उस के बाद वह मुझे फिल्म दिखाने भी ले जाएगी. मुझे लग रहा है कि मेरे पुराने दिन फिर से लौट रहे हैं.’’ खुशी और एक उम्मीद, जो उम्र बढ़ने के कारण कहीं खो गई थी, उन की आवाज से छलक रही थी.
यह सच है कि इस तरह की एल्डर केयर कंपनियों की मदद अभी उच्च वर्ग ही ले रहा है क्योंकि ईपोक एल्डर केयर महीने के 11 हजार से ले कर 16 हजार रुपए बतौर फीस लेता है और यह भी सच है कि उस के 100 क्लाइंट्स उच्च वर्ग से हैं. लेकिन इस के बावजूद धीरेधीरे इस तरह की सुविधाओं की मांग बढ़ रही है. 90 प्रतिशत मामलों में घर के लोग ही इन से संपर्क करते हैं. या तो पति ही पत्नी की सेहत से चिंतित हो इन से संपर्क करता है या फिर बच्चे अगर विदेशों में रहते हों तो इन की मदद लेते हैं ताकि उन की मां को साथ मिल सके. इस तरह ये एल्डर केयर सर्विसेज कंपनियां बुजुर्गों को अकेलेपन से बाहर आने और फिर से जीने की आशा दे रही हैं. काश! फिल्म पीकू में दीपिका का किरदार भी अपने पिता के नाजनखरे उठाने और उन की हर गलत बात व ज्यादती को सहने के बजाय भास्कोर को एल्डर केयर सर्विसेज के हवाले कर देता तो पिता की चिड़चिड़ाहट से बचता और उस की खुद की जिंदगी में भी कैरियर, शादी जैसी अहम चीजें संतुलित रहतीं.