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सराहनीय अंक

नवंबर (प्रथम) 2025 अंक पढ़ा. इस में प्रकाशित सभी लेख सामान्य थे परंतु कहानियां एक से बढ़ कर एक थीं. स्थायी स्तंभ ‘इन्हें आजमाइए’, ‘पाठकों की समस्याएं’ दिल पर अमिट छाप छोड़ गए. इतने अच्छे अंक के लिए संपादन मंडल को साधुवाद.

                हरज्ञान सिंह सुथार हमसफर 

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निठारी कांड का दोषी कौन?

निठारी कांड के दोनों अभियुक्त मनिंदर सिंह पंढेर और उस का नौकर सुरेंद्र कोली देश की अदालत द्वारा रिहा कर दिए गए हैं और देश के वे लोग जो निठारी कांड की कू्ररता, भयावहता को याद कर आज भी सिहर उठते हैं, वे समझ ही नहीं पा रहे हैं कि यह कैसी जांच और यह कैसा न्याय है?

क्या ये सब सिर्फ इसलिए तो नहीं हो रहा कि वे सब बच्चे, जिन की हड्डियां, कंकाल पंढेर के घर के नाले में मिले थे, गरीब बस्ती वालों के बच्चे थे और पंढेर एक बहुत बड़ा आदमी है जो अपने रसूख से छूट गया और उस ने अपने साथी को भी छुड़वा लिया. वरना जब सुरेंद्र कोली अपना अपराध कुबूल कर चुका था तो न्यायालय उसे सुबूतों के अभाव की बात कर कैसे बरी कर सकता है?

यह सब बहुत ही दुखद है और भारतीय न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर भयंकर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है. सवाल यह भी है कि यदि कोली और पंढेर दोनों ही निर्दोष थे तो निठारी कांड का दोषी कौन था और सीबीआई इतने वर्षों से कौन सी छानबीन कर रही थी, पर यहां तो प्रश्न करना ऐसा है जैसे भैंस के आगे बीन बजाना. ‘अंधेर नगरी और चौपट राजा’ वाली व्यवस्था में बस चुनाव होते हैं, वोट डलते हैं, सरकारें बनतीबिगड़ती हैं और लोकतंत्र की जयजयकार होती है. - गीता यादवेंदु

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