रूबीना एक कसबे में महीनाभर पहले विधवा हुई. उस की उम्र 30-32 साल है. शादी के 10 साल हो गए थे. सास बहुत तेज है. बहू से अकसर तूतूमैंमैं करती रहती है. महल्लेवाले सासबहू को ले कर चटखारे लेते रहते हैं.
पति बस का ड्राइवर था, जिस की रोड ऐक्सिडैंट में मौत हो गई. फिर क्या था, अब तो सास को रूबीना और भी फूटी आंख न सुहाती. तरहतरह के विभूषणों से बहू नवाजी जाने लगी. ‘करमजली, डायन, पति को खा कर चैन पड़ गया सीने में ‘कुलक्षिणी’. अब जाने क्याक्या उस के कुलक्षण थे.
रूबीना बच्चों के एक क्रेच में आया है. हाथ में कुछ पैसे आते हैं तो घरखर्च चलाने के बाद अपनी मरजी खर्चती है, सास से बिना पूछे. सजनासंवरना, ठेले पर चाटपानीपुरी खाना या फिर शाम के शो में कभी पिक्चर ही चले जाना. और एक गलती उस की यह भी है कि उसे बच्चा नहीं था. चाहे पतिपत्नी दोनों में से किसी में कमी हो, बच्चा न हुआ, तो हो गई वह कुलक्षिणी.
अब पति का श्राद्ध निबटा कर फिर से वह अपनी दिनचर्या में आ गई, यानी क्रेच में काम पर जाना, दिनभर शाम तक घर का काम करना और फिर शाम को दुकानों में ठेलों पर घूमना, खरीदना, खाना, ठहलना और साजश्रृंगार की चीजें खरीदनापहनना. मगर न घर में चैन था, न बाहर. टोकने वाले टोकते या उस की छीछी करते, तो वह बिफर पड़ती.
‘क्या किसी के खसम का खा रही हूं मैं? अपना कमाती हूं, दिनभर घरबाहर खटती हूं, बुढ़िया को बैठा कर खिलाती हूं फिर क्यों न पहनूं? पति था भी तो कौन सा सोहाग करता था मुझ से? चारछह महीने में घर आ कर 5 हजार रुपए कर जाता तो अगले तीनचार महीने फिर खबर ही नहीं. जाने कहांकहां मुंह मार चुका था. मैं ने तो कई बार खुद पकड़ा. तो, अब उस के लिए रोने बैठी रहूं.’