विज्ञान ने इनसान को धर्म के नाम पर स्थापित ऐसी कई प्रथाओं व अंधविश्वासों से छुटकारा दिलाने का काम किया है जिन्हें समाज के परंपरावादी लोग तर्कहीन ढंग से मानते आ रहे थे. इन में कुछ अंधविश्वास तो बर्बरता एवं उन्माद का परिचय देते हैं. सदियों से बेटे की इच्छा में ढोंगी तांत्रिकों, बाबाओं के कहने पर मातापिता द्वारा अबोध बच्चों की बलि व डायन बता कर निर्दोष महिलाओं की खुद महिलाओं द्वारा हत्या या निर्मम प्रताड़ना, अंधविश्वास के क्रूर उदाहरण हैं. अनपढ़, कूपमंडूक सोच वाले ग्रामीण इलाकों में ऐसे अंधविश्वास व्याप्त हैं पर अति आधुनिक शहरी लोग भी इस के कम शिकार नहीं हैं.

इस का बहुत सटीक प्रमाण एकाएक गणेश प्रतिमाओं को दूध पिलाने की घटना से देखने को मिला था. केवल प्रचार मात्र से गणेश प्रतिमाओं को दूध पिलाने उमड़ी भीड़ में महज अति धार्मिक सोच वाले ही नहीं, आधुनिक दंपती भी शामिल थे. अंधविश्वास में फंसे इन लोगों में स्कूलकालिजों के वे छात्रछात्राएं भी शामिल थे जिन्हें पहनावे में जींस, टौपलेस और बातचीत में सिर्फ अंगरेजी का प्रयोग अच्छा लगता है. हालांकि बाद में अंधश्रद्धा निर्मूलन व ज्ञानविज्ञान समिति के सदस्यों ने इस अंधविश्वास को दूर कर इस का वैज्ञानिक कारण सिद्ध किया. ये वे लोग हैं जिन्होंने परीक्षा में पास होने या नौकरी पाने के उद्देश्य से केवल पढ़नेलिखने के लिए वैज्ञानिक पुस्तकें नहीं पढ़ीं बल्कि तर्क व विवेक से विज्ञान को स्वीकार किया.

यह सच है कि अंधविश्वास की गहरी जडे़ं, ईश्वर में लोगों के विश्वास के कारण जमी हैं. यह भी सच है कि धार्मिक लोग ही अंधविश्वास से प्रभावित होते हैं. इसलिए वे ही अंधविश्वास का प्रचारप्रसार अधिक करते हैं. जिन चमत्कारों को धार्मिक लोग बाबाओं, महात्माओं की ईश्वरीय सिद्धि मान बैठते हैं, वास्तव में वह कोई देवीदेवता की देन न हो कर मनुष्य द्वारा विकसित विज्ञान ही है.

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