यही हालात आज “नोटबंदी” की बरसी पर देखने को मिलते हैं.

वह काला दिन 8 नवंबर 2016 का रात 8 बजे का समय भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में एक काले दिवस के रूप में सदैव याद किया जाएगा. उस दिन संचार माध्यमों में एक ही चर्चा थी कि रात को 8 बजे प्रधानमंत्री महाशय देश को संबोधित करने जा रहे हैं. और जैसा कि होता है लोगों ने इसे सहज भाव से लिया था मगर जब रात को प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी टीवी पर अवतरित हुए और उन्होंने यह घोषणा कर दी कि काले धन पर चोट करने के लिए देश में नोटबंदी की जा रही है तो देश में एक सनाका सा खींच गया.

देश में आनन-फानन में नोटबंदी कर दी गई. मानव मानो भारत में छापे जाने वाले नोट करेंसी भारत सरकार के नहीं, किसी पड़ोसी दुश्मन देश के हो नोट करेंसी हैं.रूपय पैसे घर-घर में होते है, और अचानक उसे बंद कर दिया जाना कई प्रश्न खड़े कर गया. दूसरे दिन जब देशभर में अफरा-तफरी मच गई और हालात धीरे-धीरे बेकाबू होने लगे यह संदेश जाने लगा कि यह तो गलत हो रहा है. ऐसे में प्रधानमंत्री  महाशय  टीवी पर अवतरित हुए और कहा – मुझे सिर्फ 50 दिन का समय दीजिए, देश से काला धन समाप्त हो जाएगा.

यही नहीं उन्होंने डंके की चोट पर कहा – नोट बंदी के क़दम से आतंकवाद समाप्त हो जाएगा.  देश की सारी समस्याओं का हल सिर्फ नोटबंदी ही है. अगरचे ऐसा नहीं होगा तो मुझे देश के किसी भी चौराहे पर खड़ा करके जो दंड देना चाहे दीजिएगा. देश के प्रधानमंत्री के मुंह से निकली इन बातों से बड़ी बात और क्या हो सकती थी, देश का विपक्ष मीडिया सब यह सुनकर के मौन हो गए.

लोकतांत्रिक व्यवस्था में यही उसका गुण है और यही दोष भी की एक बार जब आप किसी को अपना प्रधानमंत्री निर्वाचित कर देते हैं तो वह 5 साल के लिए आपका भाग्य विधाता बन जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह दिखा दिया कि किस तरह प्रधानमंत्री पद पर रखते हुए उन्होंने “एकाधिकार” की सारी हद पार कर दी. नोटबंदी के बारे में उन्होंने ना तो अपने कैबिनेट को विश्वास में लिया और नहीं देश की दूसरी महत्वपूर्ण संवैधानिक संस्थाओं के प्रमुखों को. उन्होंने अकेले ही यह फैसला ले लिया कि नोटबंदी देश हित में है और अगर इसे दूसरों को बताया  जाएगा तो नोटबंदी  की सफलता संदिग्ध हो जाएगी. मगर इस सब के बावजूद जाने कितने लोगों की बर्बादी और मौत के बाद भी नोटबंदी का सिक्का खोटा निकला. आज 5 साल की बरसी के बाद यह सच्चाई सामने आ चुकी है कि नोटबंदी एक काला ऐतिहासिक फैसला था.

मोदी चुप सरकार चुप!

नोटबंदी की पांचवी बरसी के अवसर पर जहां  विपक्ष, आवाम और मीडिया ने इस दिन को याद किया और इसके दुष्परिणामों पर चर्चा की और बताया कि किस तरह काले धन को के नाम पर नोटबंदी की गई थी उसके क्या दुष्परिणाम हुए थे.

मगर जैसा कि होना था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस ऐतिहासिक समय पर मौन हो गए. हर एक छोटी बात पर मन की बात करने वाले नरेंद्र मोदी इस अपने ही ऐतिहासिक गलती पर कुछ भी बोलने से बचते रहे. वहीं उनकी “कवच” बनी हुई भारतीय जनता पार्टी और उसके नेता भी इस विषय पर खामोश हो गए. यह इस बात को इंगित करता है कि नोट बंदी का फैसला देश हित में नहीं था और जो जो वादे किए गए थे वह कसौटी पर खरे नहीं उतरे. काला धन आज भी देश में उसी तरह है जैसे पहले था. आतंकवाद आज भी है बल्कि पहले से और भी ज्यादा मजबूत होकर के सामने चुनौती दे रहा है मगर देश की सरकार असहाय हो चुकी है. ऐसे में नोटबंदी का यह दिन इस बात के लिए चिंतन करने हेतु विवश करता है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में कोई भी फैसला एक व्यक्ति द्वारा नहीं लिया जाना चाहिए, मिल बैठकर के सभी की भावना के साथ लिया जाने वाला फैसला ही देश हित में होता है.

यहां यह भी आपको जानना समझना जरूरी है कि जब नोट बंदी के फैसले पर प्रधानमंत्री रहते हुए 5 साल बाद यह हालात है तो आने वाले समय में मोदी को नोटबंदी के खलनायक के रूप में इतिहास में दज दर्ज किया जाएगा यह तय है. और इस कटघरे में नरेंद्र दामोदरदास मोदी को जवाब देना मुश्किल पड़ जाएगा.

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