‘‘आधार अपने मकसद में फेल हो चुका है, आज आधार के बिना भारत में रहना असंभव हो गया है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है.’’

‘‘आधार का डेटा संवदेनशील है. किसी थर्ड पार्टी या किसी वैंडर की तरफ से इस का दुरुपयोग होने का खतरा है.’’

‘‘निजी कंपनियों को आप आधार के डेटा का इस्तेमाल नहीं करने देंगे तो वे नागरिकों को प्रोफाइल करेंगी और उन के राजनीतिक विचार जानने की कोशिश करेंगी यह निजता का उल्लंघन है.’’

‘‘क्या आप यह मान कर चल रहे हैं कि बैंक में खाता खुलवाने वाला हर शख्स संभावित आतंकी या मनी लौंडरर है.’’

‘‘आधार एक्ट को मनी बिल के तौर पर संसद से पारित कराना संविधान के साथ धोखा है.’’

उपरोक्त टिप्पणियां जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की हैं जो 5 जजों की उस संविधान पीठ में से एक हैं जिस ने बीती 26 सितंबर को आधार की वैधता पर अदालत की मुहर लगाई. जस्टिस चंद्रचूड़ की इन टिप्पणियों के हालफिलहाल भले ही कोई माने न रह गए हों लेकिन आने वाले दिनों में इन की गूंज सुनाई देगी जिस की अपनी वजहें भी हैं.

क्या है फैसला

सुप्रीम कोर्ट का फैसला राहत कम आफत ज्यादा है जिस के तहत लगता है कि आम लोगों की पीठ पर अब 100 नहीं, 98 कोड़े बरसाए जाएंगे जबकि मुद्दा या मांग यह थी कि बेगुनाहों को कोड़ों की सजा न दी जाए.

मुद्दा यह नहीं था कि आधार कार्ड कहां अनिवार्य है और कहां नहीं, बल्कि यह था कि आधार संवैधानिक रूप से अनिवार्य क्यों. इस से बचते सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड कहांकहां जरूरी और कहांकहां जरूरी नहीं की तख्ती लगा दी. इस से लोगों का ध्यान मुद्दे की बात से हटा रहा. दोटूक कहा जाए तो सुप्रीम कोर्ट सरकार पर नकेल कसने में नाकाम रहा है. उलटे, उस ने आधार के नाम पर उसे मनमानी करने की शह दे दी है.

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