20 दिसंबर 2020 को मैं पूरा दिन टीकरी बोर्डर के किसान आंदोलन में था. मैंने अपनी अब तक की जिंदगी में सैकड़ों छोटे बड़े किसान आंदोलन देखें हैं. एक पत्रकार के रूप में भी और आम आदमी के रूप में भी. दो साल पहले का नासिक से किसानों का मुंबई मार्च भी देखा है, इसके पहले भी देश के कई हिस्सों में किसान आंदोलनों को देखा है. टिकैत के किसान आंदोलन को शामली जाकर कवर किया है. लेकिन जैसा किसान आंदोलन इस समय दिल्ली की सीमाओं में चल रहा है, वैसा आंदोलन मैंने कभी देखा तो है ही नहीं, शायद कल्पना भी नहीं की. लोग इतने दृढ़ और आत्मविश्वास से भरे हैं कि थकान, निराशा और किसी भी तरह की कोई परेशानी दूर दूर तक उनके चेहरे में नहीं दिखती.
हो सकता है इसके लिए इनके विरोधी यह कह दें कि यह खाये पीये पंजाब के किसानों का आंदोलन है, इसलिए यहां कोई समस्या नहीं दिखती. लेकिन यह बात पूरी तरह से गलत है. टीकरी बोर्डर में मैंने जो करीब 8 से 10 किलोमीटर तक लंबे आंदोलनकारी पड़ाव को घूम घूमकर देखा है, उसमें कहीं पर भी मुझे 30-35 पर्सेंट से ज्यादा सरदार नहीं दिखे. हां, बड़ी संख्या में इस आंदोलन का नेतृत्व जरूर सरदार किसान संभाल रहे हैं. नेताओं के रूप में ही नहीं आंदोलनस्थल में भाषणा देने वालों में भी और भाषणों को बैठकर सुनने वालों में भी सरदारों की संख्या बाकियों से ज्यादा दिखती है. लेकिन ओवर आल संख्या गैरसरदारों की ही ज्यादा है. जहां तक खाने पीने की किसी समस्या के न होने की बात है, तो कल मैंने पूरे आंदोलनस्थल में करीब 110 से ज्यादा जगहों पर खाना पीना बनते और बंटते देखा. इसका साफ मतलब है कि किसान अपने साथ खूब सारा राशन पानी खुद लेकर आये हैं और अलग अलग जगहों पर जहां उनके गांव या इलाके का पड़ाव पड़ा है, वहीं उनका खाना बन रहा है.
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