कोरोना के वक़्त ने बहुत से अकेले लोगों को और भी ज़्यादा अकेला कर दिया है. शाइस्ता बेगम उनसठ बरस की हैं. पति को गुज़रे बीस साल हो गए. एक बेटा है जो जॉर्डन जा कर बस गया है. उसकी अपनी गृहस्थी है. अपने बाल-बच्चे हैं. इंडिया आना बहुत कम होता है. दो बेटियां हैं जो इसी शहर में ब्याही हैं. वे कभी कभी माँ से मिलने अपने बच्चो और पति के साथ आती थीं, मगर जब से कोरोना का खौफ फैला है बस फ़ोन पर ही हाल चाल ले लेती हैं.
शाइस्ता बेगम अपनी कोठी में एक नौकरानी के साथ रहती हैं. पैसे की कमी नहीं है, लेकिन पैसा हर कमी पूरी नहीं करता है. अकेलेपन की कमी तो कोई अपना ही दूर कर सकता है. इस वक़्त उन्हें किसी हमसफ़र की ज़रूरत बड़ी शिद्दत से महसूस हो रही है. सारा दिन नौकरानी से क्या बात करें? टीवी भी कितना देखें? शाइस्ता बेगम साहित्य का कीड़ा हैं, शेरो शायरी का शौक भी रखती हैं, काफी कुछ लिखा भी है, एक ज़माने में गला भी अच्छा था, कुछ गुनगुना भी लेती थीं, लेकिन ये सब बस उन तक ही सिमट के रह गया, किसी के साथ शेयर नहीं कर पाईं. किसी की दाद नहीं ले पाईं.
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बेटियों की शादी के बाद एक बार ख्याल आया था कि नूर मोहम्मद से निकाह कर लें. वे भी अपनी पत्नी की मौत के बाद तनहा ज़िन्दगी काट रहे हैं. उनके भी दोनों बेटे अमेरिका में सेटल हैं. नूर मोहम्मद शाइस्ता बेगम के मियाँ के बचपन के दोस्त हैं. एकाध बार मिलने आये तो बातों बातों में दिल की बात भी कह गए थे. तब शाइस्ता बेगम बच्चो का ख्याल करके खामोश रहीं. बाद में जब बच्चे अपने अपने घरों के हो गए तब अक्सर उनके बारे में सोचने लगती थी. एक बार हिम्मत करके शाइस्ता बेगम ने अपने दिल की बात छोटी बेटी से कही, लेकिन वह तो सुनते ही बिदक गयी. बोली – ‘अम्मा, कुछ तो लाज शर्म करें. इस उम्र में दूसरा निकाह? मेरी ससुराल वालों की इज़्ज़त का तो कुछ ख़याल करें. क्या मुँह दिखाऊंगी मैं उन लोगों को? मज़ाक बना देंगे मेरी ज़िन्दगी का और आपका. आखिर आपको कमी किस बात की है? कोठी है, नौकर हैं, आने जाने के लिए गाडी है, फिर दूसरा निकाह किस लिए?’
शाइस्ता बेगम बेटी की बात का जवाब नहीं दे पाईं. नहीं कह पाईं कि मुझे अकेलेपन का दर्द बांटने के लिए भी कोई चाहिए. दूसरे दिन जॉर्डन से बेटे का फ़ोन भी आ गया. बोला, ‘अम्मी ये क्या सुन रहा हूँ? आप दूसरा निकाह करना चाहती हैं? आपने ये सोचा भी कैसे? जन्नत में अब्बा की रूह को कितनी तकलीफ पहुंचेगी इस बात का इल्म है आपको?’
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शाइस्ता बेगम बच्चों की डांट खा कर खामोश हो गयीं. फिर कभी उन्होंने वह बात नहीं उठाई. लेकिन कोरोना के वक़्त में वह सचमुच बहुत अकेला फील कर रही हैं. पहले हफ्ते दो हफ्ते में कुछ देर को बेटियां आ जाती थी तो दिल बहल जाता था, लेकिन बीते आठ महीने से किसी ने शक्ल नहीं दिखाई. कोरोना के डर से वो भी इन आठ महीनों में घर से बाहर नहीं निकलीं. टीवी पर दिल दहलाने वाली खबरे सुनती हैं, लोगों का चीखना चिल्लाना, रोना देख कर अवसाद में डूब जाती हैं. कभी-कभी तो अकेलेपन से घबरा कर रोने लगती हैं.
शाइस्ता बेगम सचमुच बहुत अकेली हैं और एक दिन इसी अकेलेपन के बोझ तले दब कर मर जाएंगी. हाँ, अगर वे हिम्मत करें और नूर मोहम्मद से निकाह कर लें तो जिंदगी फिर से सांस लेने लगेगी. वे जी उठेंगी. कितना कुछ है दिल में किसी से कहने के लिए. कितना कुछ है लिखने के लिए. कितना कुछ है शेयर करने के लिए.
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कोमला ने हिम्मत दिखाई, बच्चों के तिरस्कार की परवाह नहीं की और पचास की उम्र में दूसरी शादी करके वे एक नया जीवन शुरू कर चुकी हैं.
कोमला बताती हैं, ‘मैं 25 साल की थी, जब ‘उनका’ इंतकाल हुआ. हम गरीब थे, कोई नातेदार मदद को नहीं आया. कफन-दफन के लिए भी पैसों का इंतजाम नहीं था. तब मैंने अपनी सोने की चूड़ियां बेच दीं. वो मेरी शादी की पहली और आखिरी निशानी थीं. जब पति नहीं रहा तो चूड़ियां रखकर क्या करती?
वो तकलीफों की शुरुआत थी. मेरे तीन बच्चे दिनों तक एक वक्त खाना खाते रहे . उनके जिंदा रहते मैं कभी काम के लिए घर से बाहर नहीं निकली थी लेकिन अब कोई रास्ता नहीं बचा था. मैंने सड़क किनारे ब्रेड बेचना शुरू कर दिया. घर पर सुबह खाना बनाकर बच्चों को खिलाती और अपना डिब्बा लेकर ठेले पर ब्रेड, अंडे सजाकर सड़क के किनारे खड़ी हो जाती. अक्सर लोग ग्राहकों को बुलाने के लिए जोर-जोर से आवाज लगाते हैं . मैं वो नहीं कर पाती थी . खड़ी रहती और जो थोड़ी-बहुत कमाई होती, लेकर घर लौट आती . उसी से बच्चों और अपना पेट भरती. थोड़े-बहुत पैसे बचने लगे तो लगभग 20 सालों बाद मैंने एक छोटा कमरा लिया और चावल-मछली बेचने लगी. कमरे को धीरे-धीरे रेस्तरां की शक्ल दे दी. वक्त और गरीबी ने कितना कुछ सिखा दिया था. इन्हीं पैसों से बेटों की गृहस्थी बसाई. वे दूसरे शहर में अपना काम-धंधा करने लगे. मैं एक बार फिर अकेली हो गई.
एक दिन रेस्तरां में काम करते हुए ध्यान गया कि एक आदमी लगातार मेरी ओर देख रहा है . वो लगभग रोज लंच के वक्त आया करता . धीरे-धीरे लंच करता और खाना खत्म होने के बाद भी देर तक बैठा रहता. इस पूरे वक्त उसकी आंखें लगातार मुझपर टिकी रहतीं. उन आंखों में गजब की मासूमियत थी.
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धीरे-धीरे वो काम में हाथ बंटाने लगा. कभी प्लेट धोता तो कभी रेस्तरां में ज्यादा भीड़ होती तो ग्राहकों की टेबल पर खाना पहुंचाता. मुझे वो बेहद भला सा लगता और अकेले में अब मैं उसके बारे में सोचने लगी थी. एक दिन उसने मुझसे शादी की बात की. ये सब एकदम अचानक था लेकिन महीनों से उसके बारे में सोचते हुए मुझे कुछ अजीब नहीं लगा. लगा मानो बीते 25 सालों से उसी का इंतजार कर रही थी.
अब हम बात करने लगे, वक्त बिताने लगे लेकिन मैंने शादी के लिए अब भी हामी नहीं भरी थी. बच्चों के बारे में सोचती तो डर जाती कि वे क्या कहेंगे. उन्हें कैसा लगेगा कि उनकी मां इतनी उम्र में शादी कर रही है. आसपड़ोस के बारे में सोचती तो और बुरा लगता.
हर दिन उस नेकदिन इंसान का सामना मुश्किल होता जा रहा था जिसकी आंखों में मेरी हां का इंतजार था.
मैं और सह नहीं सकी. रेस्तरां पर ताला डालकर बेटों के पास चली आयी. वहां भी बेचैनी हरपल मेरे साथ रहती. मैं उसके बारे में सोचती रहती. एक रोज अचानक वो मेरे सामने खड़ा था. वो मेरे लिए आया था लेकिन इस बार उसकी तैयारी पक्की थी. उसने मेरी बजाए मेरे बच्चों से बात की. मुझे यकीन था कि बच्चे हां नहीं करेंगे, लेकिन उन्होंने सिर्फ मना नहीं किया, बल्कि उसके साथ मारपीट भी की. उसका हाल देखकर मैंने अपना वास्ता देकर उसे वापस लौटने को कहा. वो चला गया.
इसके बाद मेरे बच्चे मुझसे बुरा व्यवहार करने लगे. मुझसे कोई बात नहीं करता था और करता भी तो बुरे शब्द बोलता. वे भूल गए कि उनकी मां 25 सालों तक उनके लिए अकेली रही और सारे काम किए. मैं अपनी जगह वापस लौट आई. वापस अपने रेस्तरां और उस इंसान के पास जो मुझे प्यार करता है. पिछले 5 सालों से हम शादीशुदा हैं. हम मिलकर रेस्तरां चलाते हैं. मैं खाना पकाती हूं और वो खाना सर्व करता है, थालियां धोता है.
कुछ लोग मेरा मजाक उड़ाते हैं कि 50 की उम्र में मैंने दोबारा शादी की. कुछ तो मुँह पर भी बोल चुके हैं, लेकिन मुझे किसी की परवाह नहीं. उसके साथ ने मेरे उम्र भर के अकेलेपन को भर दिया है. मैं उससे शादी करके बहुत खुश हूँ. नया जीवन दिया है उसने मुझे.
बुढ़ापे का ब्याह समाज को हज़म नहीं होता है. जबकि जीवनसाथी की सबसे ज़्यादा ज़रूरत इसी उम्र में पड़ती है. जवानी में तो दुनियाभर के काम होते हैं. नौकरी है, बच्चे हैं, उनकी पढ़ाई है, उनकी शादियां हैं, उनको सेटल करने की जद्दोजहद है, फिर अन्य रिश्तेदारियां हैं, घूमना फिरना, दोस्त, पार्टी और ना जाने क्या क्या. मगर बुढ़ापे में आप अकेले होते हैं और बच्चे अपनी अपनी गृहस्थियों में सेटल हो चुके होते हैं. उनके पास आपके लिए वक़्त नहीं होता है. ऐसे में अगर जीवनसाथी भी साथ छोड़ गया तो अकेला जीवन पहाड़ सा महसूस होता है. ऐसे में अगर कोई अपना सा मिले तो लोक लाज और ‘दूसरे क्या सोचेंगे’ इस भय से निकल कर उसे अपना बना लेने में ही समझदारी है. जब जागो तभी सवेरा. जिंदगी तो कहीं से भी फिर से शुरू हो सकती है.
हाल ही में कुछ नामचीन लोगों की बुढ़ापे की शादियों ने भारतीय समाज में आ रहे बदलाव को उजागर किया है.
65 बरस के हरीश साल्वे ने रचाया ब्याह
सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील और देश के पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे ने बीते अक्टूबर माह में 65 साल की उम्र में दूसरी शादी रचाई है. ब्रिटिश मूल की कलाकार कैरोलिन से शादी से पहले साल्वे ने धर्म परिवर्तन भी किया और अब वे हिन्दू से क्रिश्चियन बन गए हैं. साल की शुरुआत में साल्वे ने 38 साल तक जीवनसाथी रहीं मीनाक्षी साल्वे को तलाक देकर अक्टूबर अंत में अपनी ब्रिटिश मित्र कैरोलिन ब्रॉसर्ड से शादी की. वैसे साल्वे अकेले ऐसे शख्स नहीं हैं, जिन्होंने उम्र के इस पड़ाव पर नया जीवन शुरू किया है. कई राजनेता और अभिनेता भी 60 पार शादी रचा चुके हैं.
नारायण दत्त तिवारी ने 88 की उम्र में शादी की
पूर्व मुख्यमंत्री (स्वर्गीय) नारायण दत्त तिवारी का नाम कौन नहीं जानता. नब्बे के दशक तक ये नाम उत्तरप्रदेश की राजनीति में काफी बड़ा हुआ करता था. हालांकि बाद के समय में वे अपने निजी जीवन के कारण ज्यादा जाने गए. दरअसल जब इस राजनेता की उम्र 80 पार जा चुकी थी, तभी एक युवक रोहित ने उन पर अपना जैविक पिता होने का दावा किया. तिवारी पहले तो आनाकानी करते रहे लेकिन डीएनए जांच में युवक का दावा सही निकला. इसके बाद लगभग 88 साल की उम्र में उन्होंने युवक यानी रोहित की मां उज्ज्वला से शादी कर ली.
चर्चा में रही कबीर बेदी की शादी
बॉलीवुड अभिनेता कबीर बेदी को उनके अभिनय से ज्यादा उनकी निजी जिंदगी के लिए जाना जाता है. 70 साल की उम्र में चौथी शादी करने वाले इस अभिनेता ने साल 1969 में ओडिसी डांसर प्रोतिमा बेदी से पहली शादी की थी, जो जल्द ही उनकी रंगीनमिजाजी की खबरों के साथ टूट गई. इसके तुरंत बाद ही बेदी ब्रिटिश मूल की फैशन डिजाइनर सुजेन हम्प्रेज से जुड़ गए और रिश्ते को शादी का जामा पहला दिया. यहां भी जल्द ही अलगाव की खबरें सामने आ गईं. इसके बाद नब्बे की शुरुआत में टीवी प्रेजेंटर निकी रिड्स से बेदी की तीसरी शादी भी कुछ ही समय तक चल सकी. आखिरकार बेदी ने चौथी शादी भी की. ये शादी अभिनेता ने मॉडल परवीन दुसांज से एक दशक तक डेट करने के बाद की. शादी के दौरान बेदी की उम्र 70 साल थी, जबकि चौथी पत्नी उनसे लगभग 30 साल छोटी है. बता दें कि कबीर बेदी की एक्ट्रेस बेटी पूजा बेदी और उनकी चौथी पत्नी परवीन में सिर्फ 5 साल का अंतर है. उनकी पत्नी उनकी बेटी से भी छोटी हैं.परवीन अभी 42 साल की हैं, जबकि पूजा बेदी की उम्र 47 साल है.
दिग्विजय सिंह की शादी का किस्सा
वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने टीवी पत्रकार अमृता राय से 68 साल की उम्र में शादी की. साल 2013 में सिंह की पहली पत्नी आशा सिंह के कैंसर से निधन के तुरंत बाद ही इस कांग्रेसी नेता की पत्रकार अमृता राय के साथ कई तस्वीरें सार्वजनिक हुई. इसके बाद ही उन्होंने अपने संबंधों को स्वीकारा और साल 2015 के अगस्त माह में दोनों शादी के बंधन में बंध गए. पत्नी अमृता की उम्र दिग्विजय सिंह से लगभग 24 साल कम है.
सुहासिनी मुले ने साठ में रचाया ब्याह
बॉलीवुड अभिनेत्री सुहासिनी मुले ने भी 60 की उम्र में शादी की, हालांकि ये मुले की पहली शादी है. अपने सशक्त अभिनय के लिए कई बार राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी इस अभिनेत्री ने करियर के लिए शादी को प्राथमिकता नहीं दी. काफी कम उम्र में मॉडलिंग से शुरुआत करने वाली सुहासिनी ने 16 साल की उम्र में मृणाल सेन की भुवन शोम से फिल्मों में कदम रखा और यहीं की होकर रह गईं. बाद में भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर अतुल गुर्तु ने उन्होंने साल 2011 में शादी की और स्वीकारा कि इस इंसान को पाने के बाद उन्हें लगा कि शादी की जानी चाहिए. प्रोफेसर गुर्टु की ये दूसरी शादी थी. उनकी पहली पत्नी प्रोमिला बवा का साल 2006 में निधन हो गया था. उस शादी से जन्मी संतान भी विकलांगता से हुई कमजोरी के कारण नब्बे के दशक में ही चल बसी थी.