तकरीबन 4 साल पहले की बात है जब शिफाली की शादी मेरठ के अवनीश के साथ हुई थी. ससुराल में ससुर के साथ जेठजेठानी और उन के 3 बच्चे भी थे. सास नहीं रही थीं. अवनीश और उन के बड़े भाई अपने पिता द्वारा स्थापित एक दवा की दुकान चलाते थे. पैसे का सारा हिसाब शिफाली के ससुरजी रखते थे. दुकान अच्छी चलती थी. परिवार में कोई आर्थिक समस्या नहीं थी.

शिफाली तब एलएलबी कर रही थी. ससुराल वालों ने उस की पढ़ाई में कोई रुकावट नहीं डाली. लेकिन, शिफाली को लगता था कि दुकान से होने वाली कमाई में से उस के जेठ के परिवार पर ज्यादा पैसा खर्च होता है, क्योंकि उन के दोनों बच्चे शहर के महंगे स्कूलों में पढ़ते हैं. शिफाली का सोचना था कि जब दुकान में दोनों भाई बराबर की मेहनत करते हैं तो पैसे का बंटवारा भी बराबर होना चाहिए.

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शिफाली की ये भी मांग थी कि ससुरजी को हर महीने दुकान की आधी कमाई उस के पति अवनीश को देनी चाहिए, ताकि वे भी अपनी मरजी से कुछ खर्च कर पाएं. हर छोटीछोटी चीज के लिए ससुरजी के आगे हाथ फैलाना उस को अच्छा नहीं लग रहा था. आखिर औरतों की भी कुछ निजी जरूरतें होती हैं. अब जो फेसक्रीम पूरा परिवार लगाता हो, वो उस को भी लगानी पड़े, ये तो जबरदस्ती वाली बात हो गई. बस, शिफाली की इन्हीं कुंठाओं ने धीरेधीरे घर में झगड़े करवाने शुरू कर दिए.

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