14 साल की बीना एक बहुत ही सुलझी और समझदार लड़की थी. उस का एक गरीब परिवार में जन्म हुआ और अपने मां, बाबा और बड़े भाई टीकू के साथ शहर के कोने में बसी एक छोटी सी झुग्गी में रहती थी.

बीना के बाबा और भाई टीकू कोई काम नहीं करते. बीना अपनी मां के साथ घरों में साफसफाई का काम कर कुछ पैसे कमा लाती और जैसेतैसे घर का गुजारा होता.

मां टीकू को काम करने के लिए बहुत समझाती, पर उस के कानों पर जूं तक न रेंगती. सारा दिन झुग्गी के आवारा लड़कों के साथ टाइमपास कर के रात को घर आ कर मां पर धौंस जमाता. बाबा का तो महीनों कुछ पता ही नहीं रहता था.

झुग्गी के पीछे की तरफ सरकारी फ्लैट्स बने थे. उन्हीं फ्लैटों में रहने वाली अनीता के यहां बीना काम करने जाती थी. काम करने के बाद बीना अनीता की छोटी बेटी नीला के साथ थोड़ीबहुत बातचीत करती और उस से नईनई बातें सीखती.

नीला को देख बीना का मन भी पढ़ने के लिए करता था. वह भी दूसरी लड़कियों की तरह हंसीखुशी रहना चाहती थी. पढ़लिख कर अपनी मां के लिए कुछ करना चाहती थी, पर घर के हालात और गरीबी इन सब के बीच में सब से बड़ा रोड़ा थी.

अनीता का घर छोटा सा ही था. घर में रसोई, बाथरूम और 2 ही कमरे थे. पूरा घर साफसुथरा और करीने से सजा था. एक बालकनी थी, जिस में अनीता ने गमले लगा रखे थे. इन गमलों में छोटेछोटे पौधे थे. दोचार कटोरों में चिड़ियों के लिए दानापानी रखा था. चिड़िया भी बड़े मजे से इन कटोरों से चुगने आतीं और पानी पीतीं. बालकनी की दीवार पर अनीता की बेटी नीला के हाथ की बनी दोचार पेंटिंग्स लगी थीं.

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