पिछले अंक में हमने पढ़ा - 1947 के बाद कानूनों से रेंगती सामाजिक बदलाव की हवाएं
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नेहरू काल में बने कानूनों ने भारतीय समाज में कई सामाजिक बदलाव किए. इन में वोट देने के अधिकार से ले कर अस्पृश्यता उन्मूलन और इम्मोरल ट्रैफिक जैसे कई जरूरी कानून शामिल हैं. इन सुधारों के बारे में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मांगें बड़े ही दबे शब्दों में उठाई जा रही थीं. इन्होंने ही असल में आधुनिक यानी स्वतंत्र समाज वाले भारत की नींव रखी.
नेहरू काल में बने कानूनों से सामाजिक बदलावों के प्रयास पिछले अंक में प्रकाशित हुए थे पर वे पूरे नहीं थे. नेहरू की कांग्रेस ने जो और कानून बनाए उन की मांग न तो स्वतंत्रता संग्राम के दौरान की गई थी और न ही कानून बनाते समय की जा रही थी. स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने विचारों और सहयोगियों के सु?ावों पर जो किया उस ने आधुनिक भारत की आधुनिक सोच के निर्माण की अमिट छाप छोड़ी है.
वैसे तो समाज की डोर पंडेपुजारियों के हाथों में होती है पर भारतीय जनसंघ और उस के जैसे दूसरे दल, जो पुरातनवादी सोच से घिरे थे और एक खास वर्ग की ठेकेदारी कर रहे थे, उस समय कानून के जरिए किसी बदलाव की मांग नहीं कर रहे थे. उन की मुख्य मांग गौपूजन को ले कर थी या फिर हिंदूमुसलिम विवाद की.
नेहरू ने न केवल हिंदू औरतों को बराबरी का स्थान देते हुए हिंदू पर्सनल कानूनों में भारी हेरफेर किया और बड़ा जोखिम लिया, गांधी के प्रिय क्षेत्र छुआछूत पर भी कानून बनवाया जिस से चाहे जमीनी तौर पर अंतर दशकों बाद भी पूरी तरह नहीं आया, फिर भी कानूनन कोई अछूत नहीं रह गया.