अपने एक लेख में एक विदेशी अमेरिकी नागरिक मार्क मैनसन लिखता है कि जैसे ही आप का प्लेन दिल्ली हवाई अड्डे पर उतरता है, एक हलकी नारंगी सी हवा आप को घेर लेती है. (यह नारंगी हवा भगवा सरकार की भगवा बातें कतई नहीं हैं. मार्क बात गंदी और बदबूदार हवा की कर रहा है. यह बात दूसरी कि वह नहीं जानता कि पिछले 40 वर्षों से यह हवा भगवा गैंग ने शहरों में ही नहीं, शहरियों के दिमागों में भी भर दी है).
मार्क मैनसन ‘अ डस्ट ओवर इंडिया’ शीर्षक से प्रकाशित अपने लेख में लिखता है, ‘‘प्लेन के नीचे शैंटी टाउन दिखते हैं जिन का ट्रैफिक बिखराव पूरे लैंडस्केप को भर देता है. पूरे माहौल में स्मौग, स्मोक, कैमिकल भरा पौल्यूशन, डस्ट इस तरह फैला रहता है कि आप कहीं जाओ, ये आप का पीछा नहीं छोड़ेंगे.’’ मार्क मैनसन आगे लिखता है कि उस ने 40 से ज्यादा देश देखे हैं, गलत वजह से भारत सब से गहरा असर छोड़ता है, सही वजह से नहीं.
जो भी विदेशी पर्यटक इस बारे में अगर कुछ और कहता है तो समझ उस की आंखों पर पट्टी बंधी हुई है. भारत विरोधाभासों का देश है. एक ही शहर की एक सड़क पर आप को उपलब्धियां दिख जाएंगी, मौन्यूमैंट्स दिख जाएंगे, भयंकर अवसाद पैदा करने वाली गरीबी दिख जाएगी, क्रूरता दिख जाएगी. आप कहीं चले जाओ, दिल्ली से कितनी ही दूर चले जाओ, यह गैस, यह बदबू आप को सवाल पूछने पर मजबूर कर देती है कि यहां के लोग असल में करते क्या हैं कि स्थिति इस कदर बेकाबू है.