तीन तलाक को ले कर भारत की मुसलिम महिलाएं लामबंद हुई हैं. खासतौर पर तालीमयाफ्ता मुसलिम महिलाएं. उत्तराखंड की सायरा बानो, जो समाजशास्त्र की स्नातक है, ने मुसलिम समाज में तलाक और मुसलिम महिलाओं के अधिकार को ले कर अदालत का दरवाजा खटखटाया. सायरा खुद तलाक की आकस्मिक ‘पीडि़त’ है. पिछले साल अक्तूबर में सायरा बहुत ही लंबे समय के बाद अपने मायके गई थी बीमार पिता को देखने के लिए. 15 सालों तक दांपत्य जीवन गुजार चुकी, 2 बच्चों की मां सायरा को मायके में एक दिन अचानक तलाकनामा मिला. हैरानपरेशान सायरा ने शौहर से संपर्क करने की बारबार कोशिश की. पर नाकाम रही. आखिरकार फरवरी में उस ने अपने अधिकार के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. इसी तरह इसी साल 29 जुलाई को इशरत जहां नाम की महिला ने भी तीन बार मौखिक तौर पर तलाक को ले कर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की. इशरत ने अपनी याचिका में तीन तलाक की इसलामी प्रथा को संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार का हनन कहते हुए इसे खत्म करने का अर्ज सुप्रीम कोर्ट में किया.
सुप्रीम कोर्ट ने मुसलिम महिलाओं के अधिकार के सवाल पर कोई फैसला सुनाने के बजाय खुली बहस में जाने का फैसला किया. इसी कड़ी में सुप्रीम कोर्ट ने मुसलिम पर्सनल ला में सुधार के लिए तमाम कानूनी पक्षों को खंगालने का मन बनाया. इसी संदर्भ में औल इंडिया मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड यानी एआईएमपीएलबी से अपना पक्ष रखने को कहा था.
अपना पक्ष रखते हुए एआईएमपीएलबी ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा पेश करते हुए कहा कि समाज सुधार के नाम पर शरीयत कानून को नए सिरे से नहीं बनाया जा सकता है, न ही इस तर्क को तरजीह दी जा सकती है कि शरीयत कानून संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकार के लिए चुनौती है. उलटे, इस से छेड़छाड़ करना संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार का हनन है.