संविधान और कानून भले ही खानपान के मामले में कोई भेदभाव न करते हों, पर सरकारी एजेंसियों पर किसी का जोर नहीं चलता, जो तरहतरह के नियम की बिना पर आएदिन हैरान कर देने वाले न केवल फरमान जारी करती हैं, बल्कि उन पर अमल करते हुए यह भी जता देती हैं कि आम लोगों को खाना बेचने और खाने की भी उतनी आजादी नहीं है, जितनी वे संवैधानिक तौर पर समझते हैं.

देश के किसी भी शहर में फुटपाथ और सड़कों पर खोमचे, चाट या चाय बेचने वालों का दिखना आम है. इन में से ज्यादातर नाजायज तरीके से सामान बेचते हैं. आएदिन सरकारी लोग इन पर कार्यवाही करते हुए इन्हें खदेड़ते हैं, लेकिन हैरतअंगेज के तरीके से ये खोमचे, ठेले, गुमटी वाले 2-4 दिन बाद फिर उसी जगह पर दिखाई देने लगते हैं. यानी ये लोग धार्मिक जगहों की तरह पसरे हैं. इन के बगैर आम लोगों का भी काम नहीं चलता. करोड़ों लोगों को खिलानेपिलाने वाले इन गुमटियों, खोमचे वालों की बसावट के लिए सभी शहरों में हौकर्स कौर्नर खोल दिए गए हैं, लेकिन इस के बाद भी समस्या जस की तस है, क्योंकि सभी को हौकर्स कौर्नर में जगह नहीं मिल पाती और इस का खर्च भी सभी दुकानदार उठा नहीं पाते हैं.

एक मुहिम ऐसी भी

मध्य प्रदेश में भोपाल नगरनिगम ने एक अनूठा और भेदभाव भरा फरमान जारी कर कार्यवाही करने की बात कही है, लेकिन यह सिर्फ चिकन कौर्नरों के खिलाफ है. नगरनिगम ने उन्हीं चिकन कौर्नरों को हटाने का फैसला लिया है, जो रात 8 बजे से 12 बजे के बीच लगते हैं. फरमान तानाशाही न लगे, इस बाबत नगरनिगम की दलीलें ये हैं कि चिकन का बिकना रात को शुरू होता है और इन के खिलाफ आएदिन शिकायतें मिलती रहती हैं. मतलब यह है कि चिकन कौर्नर लगने से रात में लोगों खासतौर पर औरतों का निकलना दूभर हो जाता है, क्योंकि चिकन कौर्नरों पर शराबियों की भरमार रहती है, इन से गंदगी होती है और ये किसी घर के पास हों, तो बदबू भी आती है.

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