पूरी दुनिया की आबादी का आधा हिस्सा महिलाओं का है. कुल काम का दो तिहाई हिस्सा महिलाएं ही करती हैं. मगर आय का केवल दसवां भाग उनके हिस्से आता है, तो सम्पत्ति का सौवां भाग उनके हिस्से में पड़ता है. संयुक्त राष्ट्र संघ का तथ्यों पर आधारित यह कथन दुनियाभर में महिलाओं के साथ हो रही आर्थिक हिंसा का एक आईना है. दफ्तर हो या घर, महिलाओं को आर्थिक भेदभाव का सामना करना ही पड़ता है. कानून बनाकर कई कानूनी अधिकार महिलाओं को दिये गये हैं, मगर समाज में भी इन्हें मंजूरी मिले, महिलाओं में भी हक पाने का साहस जागे, इसके लिए प्रशासनिक और सरकारी स्तर पर बड़ी मुहिम चलायी जानी जरूरी है, वरना उन्हें उनका हक कभी भी हासिल नहीं होगा.

भारत में औरत का मायका हो या ससुराल, जब प्रापर्टी बंटवारे की बात आती है तो पुरुषों को ही प्रापर्टी में हिस्सा मिलता है. कानून कितने ही बना लो, मगर सामाजिक मान्यताओं का क्या करेंगे? पिता की सम्पत्ति में बेटियों को बेटों के बराबर हक मिलने की बातें कानून की किताबों में तो जरूर दर्ज हो गयी हैं, मगर समाज इस पर अमल करने को आज भी तैयार नहीं है. हक मांगने पर न सिर्फ बेटियों की मुसीबतें बढ़ जाती हैं, बल्कि उन्हें घर, परिवार और समाज में बदनामी, उपेक्षा और हिंसा का सामना भी करना पड़ता है. कई बार तो हक मांगना उनकी जान पर भारी पड़ जाता है.

औरतें ‘बेवफा’ होने के लिए मजबूर क्यों हो जाती हैं?

लखनऊ के बंथरा थाने में पड़ने वाले रतौली खटोला गांव में सम्पत्ति के लिए एक भाई ने अपनी दो सगी बहनों की हत्या करवा दी. 20 साल की रेखा और 18 साल की सविता का दोष केवल इतना ही था कि वे दोनों पैतृक सम्पत्ति में हिस्सा चाहती थीं, ताकि अपनी पढ़ाई जारी रख सकें. सम्पत्ति में बहनों की दावेदारी भाई को नागवार गुजरी. उसको डर था कि पिता बहनों की बातों में आकर सम्पत्ति का आधा हिस्सा उन्हें दे देंगे. लिहाजा जमीन-जायदाद बचाने के लिए उसने बहनों को ही मौत के घाट उतार दिया. यह घटना बीते वर्ष दिसम्बर माह की है, जब रात दो बजे चार लोग घर में घुसे और सीधे लड़कियों के कमरे में पहुंच गये. मां उषा भी अपनी बेटियों के कमरे में सोई थी. हत्यारों ने पहले बड़ी बहन और फिर छोटी बहन की धारदार हथियार से हत्या कर दी. मां ने किसी तरह वहां से भाग कर अपनी जान बचायी. पुलिस जांच के बाद हालांकि साजिशकर्ता भाई संतोष और सुपारी लेने वाले दोनों हत्यारे पुलिस की गिरफ्त में आ गये, मगर अपने हक के लिए आवाज उठाने वाली दोनों बहनें अब कभी वापिस नहीं आएंगी.

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