सुप्रीम कोर्ट ने केवल कुछ समय के लिये दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर रोक लगाई है. इससे पूरी तरह से वायु प्रदूषण को नहीं रोका जा सकता. जब तक पटाखों के चलाने पर रोक नहीं लगेगी तब तक अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आयेगे. सुप्रीम कोर्ट की पहल स्वागत के योग्य है, जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं वह धार्मिक लाभ के लिये यह कर रहे हैं.
ढाई साल के अर्जुन गोपाल, आरव भंडारी और साढे तीन साल की जोया भसीन की अर्जी पर फैसला सुनाते सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली-एनसीआर में दीवाली के मौके पर पटाखे नहीं बिकेंगे. कोर्ट ने कहा कि इस आदेश से यह देखना चाहते हैं कि दीवाली के मौके पर दिल्ली एनसीआर की आबोहवा कैसी रहती है. दिल्ली एनसीआर में बढते प्रदूषण को रोकने की दिशा में यह एक बड़ा कदम माना जा रहा है.
3 बच्चों की अर्जी पर आया यह फैसला जहां पर्यावरण संगठनों के लिये खुशी लेकर आया, वहीं कुछ धार्मिक संगठनों ने इसका विरोध भी शुरू कर दिया है. ऐसे लोग 1 हजार करोड़ से अधिक कारोबार के नुकसान की बात भी करने लगे हैं. दीवाली में केवल दिल्ली में ही नहीं पूरे देश के शहरों में प्रदूषण फैल जाता है. रिकार्ड देखें तो दीवाली में वायु प्रदूषण दोगुने से अधिक हो जाता है.
हिन्दू वादी संगठन इस फैसले के खिलाफ खड़े हो गए हैं. कई लोगों ने इस फैसले पर सवाल उठाते कहा कि हिंदुओं के त्योहारों के साथ ही ऐसा क्यों होता है? स्वदेशी जागरण मंच अब इस फैसले से होने वाले नुकसान की बात करने लगा है. उसका कहना है कि इससे पटाखा कारोबार में लगे लोग बेरोजगार हो जायेंगे. उनकी रोजीरोटी छिन जायेगी. कई दूसरे लोग इसके खिलाफ रिट याचिका करने जा रहे हैं. असल में पटाखा बिकने पर लगी रोक को हिंदूवादी संगठन अपने धर्म के अधिकार से जोड़ कर देख रहे हैं. ऐसे लोग जनता में यह फैलाना चाहते हैं कि यह आदेश उनके धार्मिक आधिकारों में चोट है. पटाखों की बिक्री पर यह अस्थाई रोक लगी है. सुप्रीम कोर्ट भी यह देखना चाहता है कि इससे प्रदूषण पर क्या फर्क पड़ेगा?
इन आदेशों का कितना पालन होगा यह देखने वाली बात है? इस तरह की रोक नदियों में मूर्तियों के विसर्जन पर भी लगी है. इसके बाद भी नदियों में मूर्तियों का विसर्जन होता है. सरकार ने नदियों के विर्सजन में रोक के लिये नदियों के किनारे ही गड्डे बना कर मूर्तियों का विर्सजन करने लगी. ज्यादातर मूर्तियां हानिकारकर रंगों से तैयार होती हैं, जो मिट्टी में घुलकर वापस पानी में मिल जाती हैं. पटाखों से जीवन को नुकसान होता है. कई बच्चों के फेफडे विकसित नहीं हो पाते हैं. केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पहले भी माना था कि इस तरह के वायु प्रदूषण से बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.
आदेश में पटाखा फोड़ने पर कोई रोक नहीं है. जिसके चलते बाहर से पटाखे लाकर कोई भी फोड़ सकता है. ऐसे में पटाखों से होने वाले नुकसान का सही आकलन नहीं हो पायेगा. पटाखों की केवल बिक्री बंद होने से आंशिक नुकसान को रोका जा सकता है. जब तक पटाखा फोड़ने पर रोक नहीं लगेगी. तब तक सही आकलन संभव नहीं है. जरूरत इस बात की है कि पटाखों के नुकसान को समझ कर पूरा देश पटाखों के फोड़ने से खुद को रोके. केवल बिक्री रोकने से यह संभव नहीं होगा.