China : चीन के शिनजियांग इलाके में बसने वाले उइगर मुसलमानों को ले कर बहुत सी खबरें पढ़ने को मिलती हैं. इस मामले में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन की बहुत आलोचना होती है. कहा जाता है कि चीन की सरकार ने बड़े स्तर पर उइगर मुसलमानों का नरसंहार किया, उन्हें बेवजह जेलों में ठूंसा. इन बातों में कितना सच है और कितना प्रोपगंडा, जानें आप भी.
चाइना यानी चीन घोषिततौर पर एक नास्तिक देश है. धर्म या ईश्वर की किसी फिलौसफी को चीन की सरकार नहीं मानती. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी यह तय करती है कि उस की पार्टी का प्राथमिक सदस्य भी नास्तिक हो. चीन की एक बड़ी आबादी बुद्धिस्ट है. इस के बावजूद चीन की सरकार बुद्धिज्म के खिलाफ भी मोरचा खोले हुए नजर आती है. चीन ने पिछले कुछ दशकों में बड़ी संख्या में बुद्धिस्ट गुरुओं को जेलों में ठूंसा, बौद्धमठों को ध्वस्त किया और आसपास के बौद्ध देशों से आने वाले भिक्षुओं पर प्रतिबंध लगाया है. बहुसंख्यक आबादी बुद्धिस्ट होने के बावजूद चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने धर्म को राजनीति का हथियार नहीं बनने दिया बल्कि हर वह कोशिश की जिस से धर्म की उद्दंडता को काबू में किया जा सके.
पिछले 10 सालों में चीन ने 80 हजार से ज्यादा बौद्धमठों को खत्म किया. 2 हजार से ज्यादा गिरजाघरों को मिट्टी में मिला दिया और तकरीबन 16 हजार मसजिदों को रातोंरात गायब कर दिया. इस से यह बात तो स्पष्ट हो जाती है कि सभी धर्मों को ले कर चीन का रवैया एक सा है. यही कारण है कि और देशों की तरह चीन की सड़कों पर धर्म का नंगा नाच नहीं होता और चीन में कभी सांप्रदायिक दंगे या बम विस्फोट की घटनाएं भी घटित नहीं होतीं.
सैक्युलरिज्म किसी भी डैमोक्रेसी की रीढ़ की हड्डी होती है लेकिन यह तभी सफल होता है जब सत्ता और धर्मों के बीच दूरी बनी रहे. धर्म और राजनीति दोनों का गठजोड़ किसी भी लोकतंत्र को तबाही की ओर ही ले जाता है. सियासत में मजहब की घुसपैठ न हो, यह डैमोक्रेसी की पहली शर्त है लेकिन इस शर्त पर दुनिया के बड़ेबड़े लोकतंत्र भी फेल होते नजर आते हैं. भारत, रूस, यूरोप और अमेरिका भी डैमोक्रेसी की इस बुनियादी शर्त पर खरे न उतर सके. वहीं चीन इस मामले में दुनिया के लिए एक मिसाल बन कर उभरा है. सैकुलरिज्म के नाम पर मजहबों को मनमानी करने की छूट देने के बुरे नतीजे आज दुनिया झेलने को मजबूर है. चीन ने धर्मों की उस भयानक उद्दंडता से तो छुटकारा पा ही लिया है.
लेकिन जैसा कि हम देखते हैं कि तिब्बत के साथ चीन का बरताव इंसानियत के खिलाफ रहा है तो भारत के साथ भी चीन ने हमेशा धोखे की नीति अपनाए रखी है. इतना ही नहीं, श्रीलंका, म्यांमार, ताइवान या दूसरे पड़ोसी देशों के साथ भी चीन का षड्यंत्रपूर्ण व्यवहार रहा है. इन सब के अलावा और भी कई ऐसे कारण हैं जिन की वजह से चीन की जम कर आलोचना होनी चाहिए लेकिन धर्मों की उद्दंडता को काबू में रखने की चीन की काबिलीयत पर तो उस की तारीफ होनी ही चाहिए.
उइगर मुसलमानों की पृष्ठभूमि
कौन हैं उइगर मुसलमान? चीन उन पर जुल्म क्यों ढा रहा है? इसे समझने के लिए पहले उइगर मुसलमानों की पृष्ठभूमि को सम झना जरूरी है. तुर्कमेनिस्तान, उजबेकिस्तान, काजाखस्तान, किर्गिजिस्तान, तजाकिस्तान और चीन का शिनजियांग. यह पूरा इलाका कभी तुर्किस्तान के नाम से जाना जाता था. उइगर इसी तुर्किस्तान के मूल निवासी हैं और आज भी इस पूरे इलाके में फैले हुए हैं.
1912 में चीन की राजशाही खत्म हुई और यह एक लोकतांत्रिक देश बना लेकिन कई ऐसे कबीले थे जिन्हें यह बदलाव पसंद नहीं आया और वे चीन की इस लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ खड़े हो गए. इन में उइगर भी शामिल थे. उइगरों ने चीनी शासन के खिलाफ कई विद्रोह किए जिन में सब से बड़ा विद्रोह था 1931 का कुमुल विद्रोह.
उइगरों का यह रिवोल्ट सफल रहा जिस के कारण 1932 में फर्स्ट ईस्ट तुर्किस्तान रिपब्लिक की स्थापना हुई. इसे इसलामिक रिपब्लिक औफ तुर्की भी कहा गया. उइगर मुसलमानों ने इस इलाके में रहने वाले दूसरे कबीलों उज्बेक, कजाख और किर्गिज को साथ मिला कर 12 नवंबर, 1933 को अपने अलग देश की घोषणा कर दी लेकिन यह नया देश ज्यादा समय तक टिक नहीं पाया और इस के ज्यादातर इलाकों पर चीन का कब्जा हो गया.
अप्रैल 1937 में ईस्ट तुर्किस्तान रिपब्लिक को फिर से स्थापित करने के नाम पर उइगर एकजुट हुए और उइगरों ने कई दूसरे कबीलों के साथ मिल कर विद्रोह कर दिया. इसे ‘इली विद्रोह’ के रूप में जाना जाता है. इली विद्रोह के कारण 12 नवंबर, 1944 को ‘सैकंड ईस्ट तुर्किस्तान रिपब्लिक’ की स्थापना हुई लेकिन यह देश अपना वजूद बनाए रखने में दूसरी बार भी नाकामयाब हो गया.
‘सैकंड ईस्ट तुर्किस्तान रिपब्लिक’ बनने के सिर्फ 5 साल के अंदर ही 13 अक्तूबर, 1949 को पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने इस नए देश पर कब्जा कर लिया और 22 दिसंबर, 1949 को ‘सैकंड ईस्ट तुर्किस्तान रिपब्लिक’ का वजूद हमेशा के लिए धरती के नकशे से मिट गया.
माओत्से तुंग ने 1 अक्तूबर, 1949 को पीपल्स रिपब्लिक औफ चाइना की स्थापना की. उन्होंने ‘सैकंड ईस्ट तुर्किस्तान रिपब्लिक’ को चीन का हिस्सा घोषित कर इसे इली कजाख प्रांत बना दिया. जल्द ही तुर्किस्तान रिपब्लिक का समर्थन करने वाले लोगों का सफाया कर दिया गया और इलाके का नाम बदल कर ‘शिनजियांग’ कर दिया गया.
उइगर मुसलमानों से चीन की क्या दुश्मनी है
उइगर मुसलमानों को ले कर चीन हमेशा विवादों में क्यों रहता है? क्या सच में चीन उइगर मुसलमानों के साथ ज्यादती कर रहा है? आइए इस विषय पर भी थोड़ी पड़ताल कर लेते हैं.
1949 से ले कर 2009 के बीच उइगर मुसलमानों के कई छोटेबड़े आंदोलन हुए. चीन से आजाद हो कर तुर्किस्तान रिपब्लिक बनाने के नाम पर कई उइगर नेता उभरे लेकिन वे नेतागीरी से ज्यादा कुछ न कर सके. 2009 में रेबिया कदिर नाम के एक अलगाववादी नेता ने भी ऐसा ही एक आंदोलन खड़ा कर दिया.
इस आंदोलन के दौरान लोग बड़ी तादाद में सड़कों पर उतर गए लेकिन चीन की सरकार ने बड़ी आसानी से इस आंदोलन को भी शांत कर दिया और रेबिया कदिर को नजरबंद कर दिया. इसी घटना के बाद चीन ने उइगर मुसलमानों को चीन के समाजवादी उसूलों के अनुसार ढालने की नीति पर काम करना शुरू कर दिया.
चीन की सरकार ने तय किया कि उइगर मुसलमानों की धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक पहचान चीन के समाजवादी ढांचे के अनुसार हो और उइगर मुसलमानों की ओर से फिर कोई धार्मिक अतिवाद न हो. चीन सरकार ने 2014 से उइगर मुसलमानों के लिए धार्मिक किताबों को घर में रखना, दाढ़ी बढ़ाना, मसजिदों की तामीर, जमात, अजान और नमाज पर रोक लगा दी और इस रोक को सख्ती से लागू भी कर दिया. नियम तोड़ने वालों को सुधारने के लिए सुधार कैंप बनाए गए जहां लोगों को हिरासत में रख कर उन्हें मजहबी कुंए से बाहर निकालने की कवायदें शुरू हो गईं.
इन सुधार कैंपों में कुछ बंदियों को चौबीसों घंटे हिरासत में रखा जाता तो कुछ को रात में घर लौटने के लिए छोड़ दिया जाता. जल्द ही उइगर मुसलमानों के साथ चीन के इस बरताव की आलोचना दुनियाभर में होने लगी.
दुनियाभर का मीडिया चीन के विरुद्ध
2017 में ह्यूमन राइट्स वाच ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि ‘‘चीन की सरकार झिंजियांग के डिटैंशन कैंपों में बंद लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार कर रही है. इस के बाद कई अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने उइगरों के साथ चीन के व्यवहार को मानवाधिकारों के हनन का मामला बता दिया. इतना ही नहीं, जापान और अमेरिका के मीडिया ने तो उइगर मुसलमानों के नरसंहार की खबरें भी जारी कर दीं. जवाब में चीन की सरकार ने शिनजियांग में दुनियाभर के मीडिया को चैलेंज किया कि वे आएं और आ कर खुद से उस के सुधार कैंपों का मुआयना करें. चीन के बुलावे के बावजूद तब कोई भी अंतर्राष्ट्रीय न्यूज एजेंसी शिनजियांग जाने की जहमत न उठा पाई.
अक्तूबर 2018 में कुछ सालों के सैटेलाइट डेटा की एनालिसिस के आधार पर बीबीसी ने दावा किया कि चीन में डिटैंशन कैंपों की संख्या बढ़ रही है और तेजी से बढ़ते इन शिविरों में सैकड़ों हजारों उइगरों को नजरबंद किए जाने की संभावना है. इस इमेजनरी डाटा के जारी होने के एक साल बाद 2019 में बीबीसी ने यह दावा किया कि उइगर मुसलमानों के बीच से सैकड़ों लेखकों, कलाकारों और इंटेलैक्चुअल्स को भी डिटैंशन कैंपों में रखा गया है.
2019 में न्यूयौर्क टाइम्स ने लिखा कि चीनी सरकार उइगर लोगों का डीएनए इकट्ठा कर रही है और इस बड़े प्रोजैक्ट को पूरा करने के लिए चीन की सरकार ने कई अमेरिकी कंपनियों को अप्रोच किया है. जुलाई 2019 में आस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, फ्रांस, जरमनी और जापान सहित दुनिया के 22 ताकतवर देशों ने उइगर मुसलमानों के खिलाफ चीन के बरताव पर चिंता जताई और चीन के इस रवैए के खिलाफ सा झा दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए.
12 जुलाई, 2019 को 50 देशों के राजदूतों ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के अध्यक्ष और संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त को एक संयुक्त पत्र जारी किया जिस में कहा गया कि चीन ने मानवाधिकारों की परवा न करते हुए तकरीबन 20 लाख लोगों को डिटैंशन कैंपों में जबरन बंद कर रखा है.
जून 2020 में जरमन मानवविज्ञानी एड्रियन जेंज ने एक रिपोर्ट जारी की जिस में उन्होंने चीन पर आरोप लगाया कि चीन उइगर महिलाओं की जबरन नसबंदी कर रहा है जिस से इस इलाके में उइगरों की जन्मदर में 60 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है. एड्रियन जेंज ने शिनजियांग में मुसलमानों की जन्मदर में हुई गिरावट को चीन द्वारा किया गया उइगरों का नरसंहार घोषित कर दिया लेकिन एड्रियन जेन्ज की इस रिपोर्ट को इसलामिक देश पाकिस्तान के प्रतिष्ठित अखबार ‘औब्जर्वर’ ने गलत बताया. औब्जर्वर की रिसर्च एड्रियन जेन्ज के आरोपों से बिलकुल उलट थी. ‘औब्जर्वर’ के अनुसार शिनजियांग में उइगर मुसलमानों की जन्मदर पहले के मुकाबले बढ़ी थी.
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन के खिलाफ लगातार हो रहे इस दुष्प्रचार में अमेरिका और जापान ने सब से बढ़चढ़ कर भूमिका निभाई. नतीजतन, 13 जुलाई, 2020 को चीन ने शिनजियांग में अमेरिका और जापान के नेताओं के आने पर रोक लगा दी.
जनवरी 2021 में ब्रिटिश विदेश सचिव डोमिनिक रैब ने कहा कि उइगरों के साथ चीन यातना की सीमाओं को पार कर चुका है. उन के इस बयान के बाद अमेरिकी सरकार ने उइगरों के साथ चीन के बरताव को नरसंहार घोषित कर दिया.
अगस्त 2022 में जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि शिनजियांग में उइगर मुसलमानों को चीन की सरकार द्वारा जबरन नजरबंद रखना मानवता के खिलाफ जघन्य अपराध है. चीन ने इस रिपोर्ट को ‘चीन विरोधी तत्त्वों का कृत्य’ करार दिया और कहा कि यह गलत जानकारी व झूठ पर आधारित है, जिस का उद्देश्य चीन की छवि धूमिल करना है.
मुसलिम देशों का रवैया
पिछले 20 सालों के दौरान हजारों की तादाद में उइगर मुसलमान चीन से भाग कर मुसलिम देशों में पलायन कर गए. उन्हें यकीन था कि मुसलिम होने के कारण उन्हें मुसलिम देशों में शरण मिल जाएगी लेकिन संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, दुबई और मिस्र जैसे मुसलिम देशों ने उइगर मुसलमानों को वापस चीन भेज दिया. इतना ही नहीं, जब अमेरिका और अमेरिका के पिट्ठू देश उइगरों के साथ चीन के बरताव को ‘नरसंहार’ कह रहे थे तब ज्यादातर अरब देश चीन का समर्थन कर रहे थे.
अक्तूबर 2020 में अमेरिका के नेतृत्व में 39 देशों ने चीन की नीतियों को मानवता के खिलाफ एक जघन्यतम अपराध घोषित किया. इस के तुरंत बाद ही 54 देशों ने इस मामले में चीन का समर्थन किया. हैरानी की बात है कि उइगर के मामले में चीन का समर्थन करने वालों में ज्यादातर मुसलिम देश थे.
उइगर मुसलमानों के खिलाफ चीन के बरताव पर अमेरिकी मीडिया दुनियाभर में भ्रम पैदा करता रहा जिस का नतीजा भी दिखाई देने लगा. दुनियाभर में चीन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन होने लगे. मुसलिम ही नहीं बल्कि दूसरे समुदाय के लोग भी बड़ी तादाद में चीन के खिलाफ इस प्रोटैस्ट में शामिल हुए लेकिन मुसलमानों के सब से बड़े संगठन ‘और्गेनाइजेशन औफ इसलामिक कोऔपरेशन’ ने उइगर मुसलमानों के साथ चीन के बरताव को सही ठहराया और चीन के इस काम की तारीफ भी की.
सऊदी अरब ने भी इस मामले में चीन की सरकार का समर्थन किया. इतना ही नहीं, तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने चीन का समर्थन करते हुए कहा कि ‘‘अपनी शिनजियांग यात्रा के दौरान मैं ने खुद देखा कि चीन की सरकार सभी जातीय समुदाय के विकास और समृद्धि के लिए बहुत बेहतर काम कर रही है.’’
धर्म की उद्दंडता पर रोक क्यों जरूरी
धर्म व्यक्ति के विश्वास तक ही सीमित रहे तो यह समाज और राष्ट्र के लिए नुकसानदेह नहीं होता लेकिन जब मजहब, समाज पर हावी हो जाता है तब यह उद्दंड हो कर समाज की गति को रोक देता है. समाज भीड़ में बदल जाता है और लोकतंत्र भीड़तंत्र बन जाता है. समाज के भीड़ बनते ही धर्म तांडव करने लगता है. इस तरह न डैमोक्रेसी जिंदा रहती है न समाज.
चीन की सरकार इस बात को बखूबी सम झती है, इसलिए वह जहालत के कुंए में फंसे मेढकों को सभ्य समाज का हिस्सा बनाने का प्रयास करती है. सो, इस में गलत क्या है?
चीन में इसलाम कैसा होना चाहिए, चीन के राष्ट्रपति के हाल ही में दिए एक बयान से आप इस बात को बखूबी सम झ सकते हैं. अगस्त 2022 में शिनजियांग की यात्रा पर गए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा, ‘‘इसलाम को चीन के अनुकूल बनना चाहिए और समाजवादी ढांचे को अपनाना चाहिए और इस समाज को चीन के दूसरे समाजों के साथ भी अपने भरोसे को बढ़ाने के लिए काम करना चाहिए.’’
जरूरी नहीं कि मीडिया द्वारा परोसी गई हर बात झूठी हो लेकिन आज के दौर में मीडिया की खबरों में षड्यंत्र न हो, यह भी शायद मुमकिन नहीं. धर्म और सत्ता के गठजोड़ में मीडिया कठपुतली बन चुका है. पूरी दुनिया में मीडिया ने लगातार अपनी साख खोई है. इसलिए मीडिया द्वारा परोसी गई हर बात को सही मान लेना यह हमारी भूल ही साबित होती है.