60 साल की विधवा आशा देवी की हत्या करने से पहले हत्यारों ने उन के हाथपैर को बांध दिया था. खून से सनी उन की लाश पेट के बल बिछावन पर पड़ी हुई थी. उन के दोनों हाथ पीछे की ओर कर के रस्सी से बांध दिए गए थे.

लाश को देख कर लगता था कि कातिलों ने पहले उन के सिर पर किसी धारदार हथियार से वार किया था, उस के बाद चेहरे पर. जिस्म के अलगअलग हिस्सों पर चाकू से मारा गया था. उन की दोनों आंखों को भी फोड़ डाला गया था, उस के बाद कातिलों ने गला दबा कर उन्हें पूरी तरह शांत कर दिया था.

10 सितंबर, 2017 को आशा देवी की हत्या करने के बाद हत्यारे उन का मोबाइल फोन साथ ले भागे. उन्हीं के फोन से हत्यारों ने दोपहर के 1 बज कर 57 मिनट पर आशा देवी के मकान में किराए पर रहने वाले छात्र शुभम को फोन कर के बताया कि आंटी सीढि़यों से गिर गई हैं, घर जा कर देख आओ.

इस से पहले हत्यारों ने आशा देवी की छोटी बेटी नीता को फोन किया था, पर उस समय वह काल रिसीव नहीं कर सकी थी. उस के बाद छोटे दामाद अमित कुमार को फोन किया गया, पर वे भी काल रिसीव नहीं कर सके थे. फोन रिसीव करने के बाद शुभम ने पास में ही रहने वाले आशा देवी के देवर महेंद्र प्रसाद सिंह और उन की बीवी उमा देवी को मामले की जानकारी दी. सभी लोग आशा देवी के घर पहुंचे और पहली मंजिल पर गए.

वहां सीढि़यों पर आशा देवी नहीं मिलीं. उस के बाद सभी आशा देवी के कमरे में पहुंचे, तो देखा कि वे खून से लथपथ पेट के बल बिस्तर पर पड़ी हुई थीं.

बुजुर्ग औरत आशा देवी की हत्या के मामले में पुलिस ने पुरानी दाई समेत 3 रिश्तेदारों को हिरासत में लिया. पूछताछ के बाद दाई को छोड़ दिया गया. पटना के सिटी एसपी डाक्टर अमरकेश ने बताया कि पुलिस की जांच में पता चला है कि हत्यारों ने पटना जंक्शन के पास से आशा देवी की बेटी, दामाद और उन के यहां रहने वाले छात्र शुभम को फोन किया था. आखिरी काल लोकेशन पटना जंक्शन की थी, जिस से अंदाजा लगाया गया कि हत्यारे बिहार से बाहर फरार हो चुके हैं.

आशा देवी के देवर के बयान पर पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया.

पुलिस को यकीन है कि किसी करीबी ने ही आशा देवी का कत्ल किया है. वे अपने घर के मेन गेट को हमेशा लौक रखती थीं और कोई अपना आता था, तभी गेट खोलती थीं. यह भी हो सकता है कि कोई परिचित ही हत्यारों को साथ ले कर आया हो.

आशा देवी ने अपनी जायदाद को दोनों बेटियों के नाम कर दिया था, इसी बात से गुस्साए किसी करीबी ने ही उन की हत्या कर दी हो. उन के कमरे में रखी अलमारी और बक्से खुले हुए थे, जिस से साफ होता है कि लूट के इरादे से आशा देवी की हत्या की गई थी.

आशा देवी के मकान के ग्राउंड फ्लोर पर शुभम, भानु प्रताप, अभिषेक और आशुतोष किराए पर रहते हैं. सभी बीए के छात्र हैं.

आशा देवी की बड़ी बेटी सुजाता और दामाद रितेश जयपुर में रहते हैं. रितेश बैंक में काम करते हैं. छोटी बेटी नीता अपने पति अमित कुमार के साथ बिहार के ही जमालपुर में रहती हैं. उन के पति रेलवे में इंजीनियर हैं.

आशा देवी ने अपने मकान को 2 हिस्सों में बांट कर दोनों बेटियों के नाम कर दिया था. पुलिस ने आशा देवी की बेटियों से पूछताछ की है. आशा देवी को हर महीने 15 हजार रुपए किराए से मिलते थे और पैंशन की रकम खाते में जमा हो रही थी. उन्होंने अपने सारे गहनों को बैंक के लौकर में जमा कर रखा था.

कुछ दिन पहले ही उन्होंने 2 लाख रुपए इन्वैस्ट किए थे. इस से पुलिस को शक है कि किसी नजदीकी जानकार ने ही आशा देवी का कत्ल किया है.

पटना के शास्त्रीनगर थाने के शिवपुरी महल्ले के ममता अपार्टमैंट्स के पास आशा देवी का मकान है. वे अपने मकान में अकेली रहती थीं. साल 2014 में आशा देवी के पति रामानंद सिंह की मौत हुई थी. वे शिक्षा विभाग में मुलाजिम थे और कुछ साल पहले ही रिटायर हुए थे.

दौलत और रुपयों की खातिर बुजुर्गों के बेटे, रिश्तेदार, दोस्त वगैरह ही उन का कत्ल करने लगे हैं, जिस से परिवार में भरोसा नाम की चीज खत्म होती जा रही है और अपराध का नया और घिनौना चेहरा सामने आने लगा है. नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के आंकड़ों को देख कर महसूस किया जा सकता है कि रिश्तेदारी और दोस्ती पर दौलत किस कदर भारी पड़ने लगी है.

पुलिस के एक आला अफसर कहते हैं कि ऐसे मामलों में परिवार के सदस्य बड़ी ही सफाई से और मौके का इंतजार कर हत्या को अंजाम देते हैं, जिस से पुलिस को जांचपड़ताल करने में काफी दिक्कतें आती हैं.

ऐसे ज्यादातर मामलों में हत्यारे या हत्या की साजिश रचने वाले ही शिकायत दर्ज कराते हैं. हत्या को अंजाम देने के बाद सुबूतों को पूरी तरह से मिटा कर ही वे थाने में एफआईआर दर्ज कराने पहुंचते हैं.

इतना ही नहीं, वे समयसमय पर पुलिस जांच के बारे में जानकारी भी लेते रहते हैं और पुलिस को गुमराह कर जांच को दिशा से भटकाने में कामयाब हो जाते हैं.

बिहार पुलिस हैडक्वार्टर से मिली रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2013 से मई, 2016 के बीच पटना जिले में ही 992 हत्याएं हुईं, जिन में से 77 फीसदी मामलों में किसी न किसी तरह से परिवार के किसी सदस्य या पहचान वाले का ही हाथ था.

19 सितंबर, 2017 की सुबह पटना सिटी की पटनदेवी कौलोनी में 78 साल की दौलती देवी की उन के 55 साल के बेटे विजय के साथ पैसों को ले कर अनबन शुरू हुई और गुस्से में विजय ने अपनी मां को जोर से धक्का दे दिया. बूढ़ी दौलती देवी मुंह के बल जमीन पर गिर पड़ीं और उन के मुंह से खून बहने लगा.

दौलती देवी के छोटे बेटे सुजय ने जख्मी पड़ी मां को उठाया और अस्पताल ले गया. जांच के बाद डाक्टरों ने बताया कि दौलती देवी की मौत हो चुकी है.crime story

मां की मौत होने के बाद गुस्साए सुजय ने घर पहुंच कर विजय पर ईंटपत्थरों और धारदार हथियारों से हमला कर दिया, जिस से मौके पर ही विजय की भी मौत हो गई.

इस दोहरे हत्याकांड के पीछे रुपए और जमीन का ही झगड़ा था. आसपास के लोगों ने बताया कि दौलती देवी और उन के बेटों के बीच अकसर रुपयों के लेनदेन को ले कर झगड़ा होता रहता था.

दौलती देवी के पति फकीरा महतो सरकारी मुलाजिम थे और रिटायर होने के कुछ दिन बाद ही उन की मौत हो गई थी. उन की पैंशन दौलती देवी को मिलती थी. पैंशन की रकम को ले कर हमेशा मांबेटों में झगड़ा होता था. इस के अलावा ढाई कट्ठा (3350 वर्गफुट) जमीन के कुछ हिस्से में घर बना हुआ था और अगले हिस्से में बने मोटर गैराज वाली जगह को किराए पर दे दिया गया था.

किराए का पैसा छोटे बेटे सुजय को मिलता था. विजय की निगाह पैंशन की रकम पर लगी रहती थी और इसी को ले कर वह झगड़ा करता रहता था. कुछ हजार रुपए के लिए विजय ने अपनी मां की जान ले ली और मांबेटे के रिश्ते को तारतार कर डाला.

जमीन के टुकड़े और कुछ रुपयों को हथियाने के चक्कर में पूरा परिवार तबाह हो गया. दौलती देवी और विजय की तो जान गई ही, सुजय की पूरी जिंदगी अब जेल की काल कोठरी में कट रही है.

विजय की बीवी किरण देवी और उस की 3 बेटियों के साथ सुजय की बीवी रानी की भी जिंदगी तबाह हो चुकी है.

नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो की हालिया रिपोर्ट बताती है कि साल 2016 में देशभर में बुजुर्गों से जुड़े 18714 मामले अलगअलग पुलिस थानों में दर्ज किए गए और इन मामलों के तहत 19008 बुजुर्ग अपराध के शिकार हुए.

इस रिपोर्ट के मुताबिक, बुजुर्गों से जुड़े अपराध के सब से ज्यादा 3981 मामले महाराष्ट्र में दर्ज किए गए. मध्य प्रदेश में 3438, तमिलनाडु में 2121, आंध्र प्रदेश में 1852, राजस्थान में 1034 और दिल्ली में 1021 मामले पुलिस थानों में दर्ज किए गए.

बिहार में बुजुर्गों की हत्या, लूट और सताने के 496 मामले दर्ज किए गए. इन मामलों में 521 बुजुर्गों को अपराधियों ने निशाना बनाया. पटना के एसएसपी मनु महाराज कहते हैं कि जब पुलिस में हत्या की शिकायत दर्ज कराने वाला ही कातिल हो, तो पुलिस को जांचपड़ताल करने में काफी दिक्कतें आती हैं.

कई मामलों में यह भी देखा गया है कि बुजुर्ग की हत्या के बाद उन के परिवार वाले हत्या को खुदकुशी का भी रूप देने की कोशिश करते हैं, जिस से कानून की आंच से आसानी से बचा जा सके.

इस के साथ ही यह भी देखा गया है कि पेशेवर हत्यारा हत्या करने से पहले सौ बार सोचता है और काफी सोचसमझ कर काम करता है और ज्यादातर मामलों में वह बूढ़ों और बच्चों की हत्या नहीं करता है, पर परिचित या रिश्तेदार अपनी पहचान छिपाने के लिए बेरहमी से बूढ़ों और बच्चों की हत्या कर डालते हैं.

पटना सिविल कोर्ट के वकील अनिल कुमार सिंह कहते हैं कि घर के बुजुर्ग को परिवार पर बोझ मानने का चलन तेजी से बढ़ा है. बच्चे सोचने लगे हैं कि बूढ़े मांबाप उन के ऊपर बोझ की तरह हैं. उन की वजह से वे अपने बीवीबच्चे के साथ घर छोड़ कर घूमने नहीं जा सकते हैं.

इस के अलावा बेटे उसी दौलत को जल्दी पाने के चक्कर में अपनों का खून कर डालते हैं, जो दौलत कल आसानी से उन्हीं की होने वाली है. अपनों की जान लेने के बाद वे अपनों के साथ दौलत और अपने परिवार को भी खो देते हैं और बाकी जिंदगी जेल में काटते हैं.

पूर्णिया सिविल कोर्ट के वकील संजय कुमार सिन्हा बताते हैं कि साल 2012 में एक परिवार के तिहरे हत्याकांड में सौतेले बेटे ने रिश्तों का खून करते हुए एकसाथ 3 जिंदगी खत्म कर डाली थीं. विसिको के रिटायर्ड क्लर्क गोपाल शरण सिंह पटना के इंद्रपुरी महल्ले में डेढ़ कट्ठा (2000 वर्गफुट) जमीन पर बने मकान में रहते थे, जिस की कीमत उस समय तकरीबन 80 लाख रुपए थी.

इस के अलावा उन की कटिहार के राजपूताना इलाके में 55 कट्ठा जमीन  थी, जिस की कीमत भी करोड़ों रुपए की आंकी गई थी.

गोपाल शरण सिंह का बेटा देवेश चाहता था कि वे अपनी जायदाद का बंटवारा कर दें. वे बंटवारे को तैयार थे, पर देवेश की सौतेली मां अलीना इस के लिए तैयार नहीं थीं. वे चाहती थीं कि उन की बेटी सोनाली और पूर्णिमा की शादी के बाद ही जायदाद का बंटवारा हो. अलीना ने जमीन और मकान के सारे कागजात अपने कब्जे में कर रखे थे. इस मामले को ले कर घर में अकसर हंगामा होता रहता था. गोपाल शरण सिंह की पहली बीवी की मौत 20-22 साल पहले हो गई थी. उस के बाद उन्होंने अलीना से दूसरी शादी की थी.

गुस्से से भरे देवेश ने हैवानियत की हद पार कर हथौड़े से मार कर सौतेली मां और उन की 2 बेटियों की हत्या कर डाली. उस की शादी हो चुकी है और हाल ही में वह बाप बना था. जायदाद के लालच में उस ने 3 इनसानों और रिश्तों का कत्ल कर अपनी बीवीबच्चे की जिंदगी भी तबाह कर डाली.

मनोविज्ञानी अजय मिश्र कहते हैं कि दौलत को ले कर घरेलू झगड़ों के बढ़ते मामलों के बीच परिवार वालों को देखनासमझना होगा कि वे ऐसे झगड़ों को तूल न पकड़ने दें और न ही ऐसे मामलों को लटका कर रखें. ऐसे मसलों का जितना जल्दी निबटारा कर दिया जाए, परिवार और परिवार वालों के लिए उतना ही अच्छा रहता है.

बुजुर्ग ये सावधानियां बरतें

* छोटेमोटे घरेलू झगड़ों की कभी भी अनदेखी न करें और न ही उन्हें दबाने की कोशिश करें. परिवार के साथ मिलबैठ कर निबटारा कर लें.

* जब बातचीत से सुलह के सारे रास्ते बंद हो जाएं, तभी अदालत का दरवाजा खटखटाएं.

* अगर बुजुर्ग अकेले रहते हों, तो वे लोकल थाने में अपनी जानकारी दें.

* घर के किसी भी सदस्य से किसी भी तरह का खतरा होने या किसी के धमकी देने के मामले में बुजुर्ग खामोश न रहें. अपने किसी रिश्तेदार, दोस्त, वकील और पुलिस को वे इस के बारे में जरूर बताएं.

* दौलत का बंटवारा बच्चों के बीच कर दें और यह ताकीद कर दें कि उन के मरने के बाद ही सभी बच्चों को उन की दौलत पर बराबरी का हक मिलेगा.

* अपनी वसीयत समय रहते कर दें और बच्चों और परिवार के सभी लोगों को इस की जानकारी दें, ताकि कोई अंधेरे में न रहे. इस मामले में किसी सदस्य का कोई सवाल हो, तो उस का जवाब उसी समय दें, उसे टालें नहीं.

* कई ऐसे मामले देखने में आते हैं कि किसी बच्चे के प्रति मांबाप का ज्यादा झुकाव होता है, जिस से बाकी बच्चों में असुरक्षा की भावना घर कर जाती है कि कहीं पिता अपने लाड़ले बेटे या बेटी को सारी दौलत या दौलत का ज्यादा हिस्सा नहीं दे दें. मांबाप को चाहिए कि वे किसी बच्चे में ऐसी गलत भावना न आने दें.

* बच्चों को भी चाहिए कि वे मांबाप के प्रति जिम्मेदार बनें, ताकि किसी एक बच्चे की ओर उन का ज्यादा झुकाव न हो.

* बुजुर्ग नाराज हो कर अपने बच्चों को बारबार दौलत से बेदखल करने की धमकी न दें.

* किसी बेरोजगार बेटे को कोई धंधा शुरू करने के लिए रुपए दें, तो उसे यह हिदायत भी दें कि रुपए कर्ज के तौर पर दिए जा रहे हैं, जिसे धीरेधीरे वापस करना होगा. इस से बेटा धंधे में पूरा मन लगाएगा और बाकी बच्चों में भी किसी तरह की तरफदारी की भावना पैदा नहीं होगी.

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