Creation Of Universe : ऐसा सवाल जिस पर सदियों से आस्तिकता और नास्तिकता की बहस टिकी हुई है कि धरती आखिर बनी तो बनी कैसे. अलगअलग धार्मिक मान्यताओं ने इस के ऊलजलूल कुतर्क अपने धर्मग्रंथों के माध्यम से बताए जिन पर सदियों से लोग भरोसा करते आए. जाहिर है ये पंडों, पादरियों या मौलवियों के बिना श्रम के ऐयाशियां भोगने का साधन बने. मगर जैसेजैसे विज्ञान अपने तर्क और शोध सामने रखता गया वैसेवैसे धरती के बनने के धार्मिक कुतर्क ध्वस्त होते गए.
पृथ्वी का जन्म कैसे हुआ, धरती पर जीवन की शुरुआत कैसे हुई, इंसान को किस ने बनाया जैसे प्रश्न अकसर पूछे जाते हैं. ये प्रश्न मानव कुतूहल के स्वाभाविक प्रश्न नहीं हैं. मानव कुतूहल से उपजे प्रश्न मानव के अस्तित्व से जुड़े थे- परिस्थितियों के अनुकूल कैसे जीना है, प्राकृतिक आपदाओं से कैसे बचना है, जंगली जानवरों से अपनी और अपने झुंड की सुरक्षा कैसे करनी है, अपने मवेशियों के लिए बेहतर चरागाह कहां ढूंढ़ना है?
मानव की जिज्ञासाएं यहीं तक सीमित थीं. बारिश, तूफान, आग, बिजली और भूकंप जैसी आपदाओं के पीछे के कारणों को आदिकाल का मानव नहीं जानता था, न ही जानना चाहता था. इन प्राकृतिक आपदाओं के डर से ही आदिमानव ने इन्हें पूजना शुरू कर दिया होगा. यहां भी मानव के कुतूहल में केवल अपने सर्वाइवल से जुड़े प्रश्न थे.
अमेजन के जंगलों में रहने वाले ट्राइब्स हों या अफ्रीका के आदिवासी कबीले, आज भी उन की सहज जिज्ञासाएं उन के सर्वाइवल तक ही सीमित हैं. ये आदिवासी लोग मानव के लाखों वर्षों के विकासक्रम की जिंदा तसवीर हैं. दूरदराज के जंगलों में रहने वाले जो आदिवासी कबीले बाहरी धर्मों के संक्रमण से बच गए उन की संस्कृति में आज भी कोई धर्म या अल्लाह, भगवान या गौड नहीं है. पृथ्वी का जन्म कैसे हुआ, धरती पर जीवन की शुरुआत कैसे हुई, इंसान को किस ने बनाया जैसे प्रश्नों का आदिवासी संस्कृतियों में कोई मतलब नहीं था और न आज है. आज भी आदिवासी संस्कृति केवल सर्वाइवल से जुड़े प्रश्नों पर ही आधारित है.
दुनिया की अलगअलग जगहों पर 10 से 12 हजार वर्षों पहले खेती की शुरुआत हुई. इस से मानव समूहों का इधरउधर भटकना कम हुआ और गांव, नगर, कसबे बसने शुरू हो गए. यह सभ्यताओं का शुरुआती दौर था. कृषि और पशुपालन पर आधारित सभ्यताओं में हर व्यक्ति के पास काम था हालांकि कुछ निठल्ले लोग भी थे जिन्होंने मानव के सर्वाइवल से जुड़े प्रश्नों को मोड़ कर नए कुतूहल पैदा कर दिए. जैसे, मरने के बाद क्या होता है, दुनिया किस ने बनाई, इंसान को किस ने पैदा किया आदि व इस तरह के अन्य प्रश्नों से लोगों को बरगलाने का प्रयास शुरू किया गया.
कृषि पर आधारित सभ्यताओं के शुरू होने के नतीजे में आम लोगों का शिकार के लिए भटकना बंद हो गया था. फसल काटने के बाद से फसल उगाने के बीच लोगों के पास समय था. उस खाली समय में ही निठल्ले लोगों ने सृष्टि और सृष्टि रचयिता से जुड़े प्रश्नों को समाज के अवचेतन में बिठाना शुरू किया. लोगों के बीच प्रश्न उठाए जाते कि बताओ, तुम्हें अन्न कौन दे रहा है, तुम क्यों पैदा हुए, जन्म लेने से पहले तुम कहां थे और मरने के बाद तुम्हारा क्या होगा आदि.
इन प्रश्नों के जाल में साधारण मेहनतकश लोग फंसते चले गए. तब इन प्रश्नों के मनमरजी के जवाब गढ़े गए और भ्रामक कहानियां बनाई जाने लगीं. उन ?ाठी कहानियों को गढ़ने वाले निठल्ले लोग ही शुरुआती समाज में पुरोहित बन गए. उन पुरोहितों ने ही विभिन्न धर्मों के आविष्कार कर दिए.
भ्रम पैदा करती धार्मिक कथाएं
हर धर्म में भ्रम पैदा करने वाली कथाएं मौजूद हैं. धर्मों की ये कहानियां चमत्कारिक देवताओं, अवतारों, दूतों और सृष्टिकर्ता के प्रतीकों की होती हैं जिन से लोगों को बहकाया जाता है. इन धार्मिक कहानियों के नाम पर आस्था का व्यापार खड़ा करना आसान हो गया है. आस्था के नाम पर काल्पनिक प्रतीकों की पूजा, आराधना, दान और इबादत करवाई गई और लोग अपनी आस्थाओं की खातिर मरनेमारने को तैयार हो गए. आस्था में अंधी जनता यह न पूछ ले कि जिन प्रतीकों के नाम पर उन से दान देने और मरनेमारने को कहा जा रहा है, आखिर इन काल्पनिक प्रतीकों का सच क्या है, ये हैं कौन, इस षड्यंत्र को छिपाने के लिए सृष्टि की उत्पत्ति का प्रश्न और उस का उत्तर बहुत उपयोगी हो जाते हैं.
मानव यह तो देखता है कि उस के चारों ओर तरहतरह के निर्माण हैं, नदियां हैं, सागर हैं, पहाड़ हैं, मरुस्थल हैं, पेड़पौधे, पशुपक्षी हैं, बादल है, चांद, सितारे, सूर्य हैं लेकिन इन की उत्पत्ति कैसे हुई या इन्हें किस ने बनाया जैसे प्रश्नों से आम जनता का कोई लेनादेना नहीं होता. मेहनतकश को इन प्रश्नों से कोई लेनादेना कभी नहीं रहा. सृष्टि की उत्पत्ति से जुड़े ये प्रश्न षड्यंत्रकारी पुरोहितों की देन हैं और आज भी यह षड्यंत्र जारी है.
स्वामी नित्यानंद सरस्वती का यूट्यूब पर एक वीडियो है जिस में स्वामीजी से 5वीं कक्षा का छात्र पूछता है कि पृथ्वी, सूर्य, चंद्रमा की उत्पति कैसे हुई. स्वामी नित्यानंद इस वीडियो में उत्पत्ति की पौराणिक कल्पित कहानी न कह कर पृथ्वी के काल्पनिक गुणों का बखान करने लगते हैं. ध्यान देने वाली बात यह है कि 5वीं कक्षा के छात्र को जो सवाल स्कूल में पूछना चाहिए वह एक बाबा से पूछ रहा है. लेकिन, उसे भी पौराणिक कथा न सुना कर मनगढ़ंत बातों से बहकाया जा रहा है.
आप ने ऐसे तमाम वीडियो यूट्यूब पर देखे होंगे जिन में जनता की भीड़ से कोई व्यक्ति उठ कर ऐसे ही प्रश्न पूछता है और धर्मगुरु उस प्रश्न का जवाब देता है. मुसलमानों के बीच तारिक जमील बहुत फेमस है. एक वीडियो में उस से एक नौजवान ने पूछा कि कायनात कैसे बनी तो वे इसलामिक कहानियों के जरिए कायनात के जन्म की कहानी सुनाते हैं.
सवाल यह है कि उत्पत्ति के रहस्यों का उत्तर धर्मगुरुओं से क्यों पूछा जाता है. बेरोजगारी, गरीबी, शोषण, हिंसा और दंगों से जुड़े प्रश्न क्यों नहीं पूछे जाते? इन धर्मगुरुओं का परमात्मा जो सृष्टि की रचना कर सकता है वह दुनिया से गरीबी और अन्याय क्यों नहीं मिटा सकता?
सृष्टि रचना से जुड़े सवाल तो उन से पूछने चाहिए जो प्रकृति के अनुसंधानों में लगे हैं. जो पत्थरों, पानी, मौसम, चांद, सितारों, सूर्य की गति का अध्ययन करने में अपना जीवन खपाते हैं.
हिंदू प्रवचनों में, ईसाई चर्चों में, मसजिदों में, बौद्ध मठों में ऐसे ही सवाल अकसर पूछे जाते हैं और तमाम धर्मगुरु इन प्रश्नों के उत्तर के लिए अपनी उन्हीं पौराणिक कहानियों को आधार बनाते हैं जिन के पीछे छिपा होता है उन का अपना प्रवर्तक. अपनेअपने काल्पनिक प्रवर्तकों की आड़ में ही ये पुरोहित अपनेअपने भक्तों पर राज करते हैं. दरअसल, यह कोरा षड्यंत्र है. लोगों से ये सवाल पुछवाए जाते हैं और फिर अपने धर्म व प्रवर्तक पर फिट कर के एक कहानी सुनाई जाती है.
आज मौजूद सभी धर्म उस युग के हैं जब विज्ञान एकदम शैशव स्थिति में था. मानव ने मकान बनाने सीख लिए थे. मानव पत्थरों को काट सकता था. आग जला सकता था. पहिया बना सकता था. कपड़ा बुन सकता था. जानवरों को पालतू बना सकता था. बस्तियों का निर्माण कर सकता था. बोलने की कला विकसित हो चुकी थी. शब्द ज्ञान आ चुका था. सभी आधुनिक धर्म तब पनपे जब बहुत से आविष्कार हो चुके थे.
पर ऐसा कोई धर्म नहीं है जिस को शुरू करने वाला जंगलों में पेड़ के नीचे बिना कपड़ों के रहता था, अपना खाना खुद बनाता था. आज दुनिया के सभी धर्म जो सृष्टि निर्माण की कहानियां बनाते फिरते हैं वे उस युग के हैं जब मानव सभ्यता खासी विकसित हो चुकी थी. आज के सभी धर्म 21वीं सदी की वैज्ञानिक तकनीकों के सहारे चल रहे हैं लेकिन इन धर्मों का आधार सभ्यताओं से भी प्राचीन मनगढ़ंत कहानियों पर ही टिका है.
आज जो भक्त धर्मों के बिजनैस सैंटरों में जा रहे हैं उन्हें आज भी प्रेरित किया जा रहा है कि वे जरूरी बातों को भूल कर उन प्रश्नों को पूछें जिन के माध्यम से पुरोहितों के षड्यंत्र को पोषण मिलता हो. यह आकाश, पृथ्वी, आकाशगंगा, लाखों तरह के जीवजंतु, वायरलैस की क्षमता वाली तरंगें आखिर बनाईं किस ने? तुम्हें अन्न कौन दे रहा है? तुम क्यों पैदा हुए? जन्म लेने से पहले तुम कहां थे और मरने के बाद तुम्हारा क्या होगा? ये व इस जैसे प्रश्न एक साजिश के तहत पुछवाए जाते हैं.
अनसुलझे सवालों का नाम धर्म
आज के पुरोहितों द्वारा प्रायोजित इन कृत्रिम सवालों के जवाब 2,000 से 4,000 साल पहले के ग्रंथों के हवाले से दिए जाते हैं. हर कहानी का ग्रंथ एक भगवान से जुड़ा है, उस भगवान से जो हर दूसरे धर्म के भगवान से अलग है. हर धर्म में सृष्टि उत्पत्ति की कथा कुछ अलग है क्योंकि हर धर्म को सृष्टि उत्पत्ति के रहस्यों को अपने प्रतीकों से जोड़ना जो है.
राघवाचार्यजी महाराज का मार्च 2022 का एक वीडियो है जिस में वे बताते हैं कि सृष्टि का निर्माण ब्रह्मा ने किया. ब्रह्मा ने अपने शरीर के 2 भागों से स्त्री और पुरुष का निर्माण किया. 3 लाख लोगों ने इस वीडियो को देखा. राघवाचार्यजी उत्पत्ति की कहानी के माध्यम से ब्रह्मा को संपूर्ण पृथ्वी, संपूर्ण मानव जाति का निर्माता बता देते हैं और इस तरह बिना कहे ही वे खुद को 21वीं सदी में सृष्टिकर्ता का एजेंट घोषित कर देते हैं.
मुल्लामौलवी अपने भक्तों को यह इसलामिक कहानी सुनाते हैं कि अल्लाह ने सब से पहले आदम को मिट्टी से बनाया और आदम की दाईं पसली से हौवा को बनाया. इस कहानी के जरिए ये लोग खुद को आदम की संतान घोषित करते हैं और साथ ही, भक्तों के अवचेतन में यह बिठा देते हैं कि अल्लाह की नजर में मर्द जात ही श्रेष्ठ है. औरतें तो मर्दों की पसलियों से जन्मीं हैं, उन में अपना दिमाग नहीं होता, उन का अपना कोई वजूद नहीं होता.
राघवाचार्य यह भी कह डालते हैं कि ब्रह्माजी ने पुरुष को अपनी बुद्धि से पैदा किया और स्त्री को उस के हृदय से. यानी दोनों में भेद है. एक में बुद्धि है, दूसरे में है ही नहीं. औरतों को नीचा दिखाने और नीचा बनाए रखने की साजिश इस सृष्टि बनाने की कहानियों में पहले ही फिट कर दी गई है.
इस तरह की कहानियां विष्णु पुराण, शिव पुराण, नारद पुराण और वेदों में दोहराई गई हैं पर जब भी ये पुराण रचे गए थे तब तक तो मानव सभ्यता काफी विकसित हो चुकी होगी. किसी किताब में यह वर्णन नहीं है कि स्त्री और पुरुष को भाषा किस ने सिखाई, भाषा कहां से आई, तब स्त्रीपुरुष कपड़े पहनते थे या नहीं, उन्हें कपड़े पहनना या कपड़े बनाना किस ने सिखाया, वे शिशु अवस्था में पैदा हुए या वयस्क अवस्था में आदि.
सब से रोचक बात यह है कि सभी धर्मों में सृष्टि की उत्पत्ति की कहानी एक सी है लेकिन हरेक का प्रवर्तक अलग है जो दूसरे धर्मों वालों को भटका हुआ मानता है और दूसरे धर्म के मानने वाले का सिर फोड़ने का आदेश देता है.
धर्म इस दुनिया का सब से पुराना बिजनैस है जिस में धरती पर जीवन की शुरुआत की कथा सब से महत्त्वपूर्ण प्रोडक्ट है. धर्म की मार्केटिंग करने वाले लोगों ने मानव की सहजता और उस की कमजोरियों का फायदा उठा कर ही धर्म के इस सब से पुराने धंधे को आज तक बरकरार रखा है. एजेंट इसे बेचने का सब से पुराना हथकंडा अपनाते हैं; वे खुद ही यह सवाल गढ़ते हैं कि बताओ, दुनिया किस ने बनाई. आम आदमी इस प्रश्न में फंस जाता है तब धर्म के प्रवर्तक अपनी प्राचीन संस्कृति के पुनरुत्थान के नाम पर और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार इस प्रश्न का जवाब देते हैं.
सृष्टि रचना का श्रेय वे अपने द्वारा गढ़े गए किसी काल्पनिक शक्ति को देते हैं और उस शक्ति के उपासक बन कर धर्म का धंधा करते हैं. धर्म प्रवर्तकों द्वारा आम जनता को इस तरह भरमाया जाता है कि उस का ईश्वर, जो इस सृष्टि की रचना कर सकता है, तुम्हारा कल्याण भी कर सकता है.
बुनियादी सवालों से भटकाने का जरिया धर्म
धर्मों के आविष्कारक बड़े चालाक किस्म के प्राणी थे. उन्होंने लोगों की बुनियादी जरूरतों, जैसे भूख, सुरक्षा और संसाधन जुटाने में कोई योगदान नहीं दिया. रोजमर्रा की जिंदगी में संघर्षशील इंसान की सहूलियत के लिए भी कुछ नहीं किया न पुल बनाए, न हल चलाए, न दवाएं ढूंढ़ीं और न रास्ते खोजे. बस, कहानियां बनाईं और इन कपोलकल्पित कहानियों से जनता को भरमाया.
आश्चर्य है कि आज 98 फीसदी आबादी विज्ञान की खोजों के बावजूद युगों पुरानी इन धार्मिक कहानियों को सच मानती है, जबकि, इस्तेमाल वह विज्ञान की खोजों से पैदा सामान को करती है चाहे वह आग जलाना हो या रौकेट उड़ाना.
जब से इंसान सोचनेसमझने लायक विकसित हुआ है तभी से उस के मन में सिर्फ सर्वाइवल से जुड़े प्रश्न उठते रहे कि प्राकृतिक आपदाओं और खूंखार जंगली जानवरों से कैसे बचा जाए, उपजाऊ और सुरक्षित स्थानों को कैसे ढूंढ़ा जाए. लेकिन शातिर लोगों ने इंसान के इन जरूरी व स्वाभाविक प्रश्नों को मोड़ दिया और उन से यह पूछना शुरू कर दिया कि आखिर जीवों को किस ने पैदा किया. जिंदगी के बारे में इस बुनियादी सवाल पर आज के लगभग सभी धर्मों की नींव रखी हुई है. इन धर्मों ने सदियों तक इंसानी जिज्ञासाओं को किसी काल्पनिक ईश्वर तक समेटे रखने की चालाकियां की हैं.
दरअसल, किसी भी धर्म के पास इन प्रश्नों का कोई तथ्यजनक उत्तर नहीं था, इसलिए धर्म के धंधेबाजों ने ऐसी कहानियां गढ़ लीं जो सुनने में अच्छी लगती हैं. जब ये काल्पनिक कहानियां लोगों के अवचेतन में बैठने लगीं तब बड़ी चालाकी से ऐसी हर धार्मिक कहानी के कहानीकार ने स्वयं को ईश्वर के एजेंट के रूप में स्थापित कर लिया. पीढ़ी दर पीढ़ी कहानीकारों के वारिस इस धंधे का लाभ उठाते आ रहे हैं.
सृष्टि रचना के बारे में हिंदू धर्म क्या कहता है
हिंदू धर्मशास्त्रों में सृष्टि उत्पत्ति से जुड़ी अनेक बेसिरपैर की कहानियां मौजूद हैं, कहीं ब्रह्माजी को सृष्टि का रचयिता बताया गया है तो कहीं विष्णुजी को और कहीं देवी दुर्गा को संपूर्ण सृष्टि की निर्माणकर्ता घोषित किया गया. इन शक्तियों या देवताओं की पूजा करने के नियम बनाए गए और इन कर्मकांडों को धर्म का हिस्सा बना दिया गया. इन कर्मकांडों को करने से देवताओं का आशीर्वाद और न करने से अनिष्ट का डर दिखा कर लोगों को भक्त बनाया गया और इन भक्तों के कारण ही आज भी युगों पुराने धर्म जिंदा हैं. कर्मकांड करने पर आर्थिक लाभ एजेंट को ही होता था.
हिंदू धर्म के अनुसार, सृष्टि की रचना से पहले पूरा संसार जल में डूबा हुआ था. जब सृष्टि की रचना का समय आया तो भगवान नारायण की नाभि से एक प्रकाशमान कमल प्रकट हुआ. उसी कमल से वेद मूर्ति ब्रह्माजी प्रकट हुए. ब्रह्माजी के 4 मुंह हैं और उन के 4 हाथ हैं. ब्रह्माजी ने सब से पहले 4 पुत्रों सनक, सनन्दन, सनातन और सनतकुमार की उत्पत्ति की. इस के बाद उन्होंने अपने शरीर के अंशों से ही मनु और शतरूपा की रचना की, जिन से फिर मनुष्य की उत्पत्ति हुई. हिंदू पौराणिक कथाओं में भगवान विष्णु और शिव का भी सृष्टि की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण योगदान माना जाता है.
वेदों के अनुसार, ब्रह्मांड का व्यास 50,00,00,000 योजन बताया गया है. यह योजन कितने किलोमीटर के बराबर है, इस की नाप भी आज के एजेंटों ने बताई है.
श्रीमद देवी महापुराण में सृष्टि रचना
देवी भागवत पुराण के अनुसार, नारदजी ने अपने पिता ब्रह्मा से पूछा था, ‘हे पिताश्री, इस ब्रह्मांड की रचना आप ने की या श्री विष्णुजी इस के रचयिता हैं या शिवजी ने इसे रचा है? सचसच बताने की कृपा करें.’
ब्रह्माजी ने बताया, ‘बेटा नारद, मैं ने अपनेआप को कमल के फूल पर बैठा पाया था, मु?ो नहीं मालूम कि अचानक उस अगाध जल में मैं कहां से उत्पन्न हो गया था. स्वयं की उत्पत्ति के बाद मैं एक हजार वर्ष तक पृथ्वी का अन्वेषण करता रहा. सृष्टि में चहुंओर जल ही जल था. फिर आकाशवाणी हुई कि तप करो. मैं ने एक हजार वर्ष तक तप किया और फिर सृष्टि करने की आकाशवाणी हुई.
‘मैं ने सृष्टि रचना आरंभ की ही थी कि मधु और कैटभ नाम के 2 राक्षस आए. उन के भय से मैं कमल का डंठल पकड़ कर नीचे उतरा. वहां भगवान विष्णुजी शेष शैय्या पर अचेत पड़े थे. उन में से एक स्त्री (प्रेतवत प्रविष्ट दुर्गा) निकली. वह आकाश में आभूषण पहने दिखाई देने लगी, तब भगवान विष्णु होश में आए.
‘अब सृष्टि में मैं और विष्णु 2 थे. इतने में भगवान शंकर भी आ गए. देवी ने हमें विमान में बैठाया और ब्रह्मलोक में ले गई. विष्णु ने कहा, यह हम तीनों की माता है, यही जगत जननी प्रकृति देवी है. मैं ने इस देवी को तब देखा था जब मैं छोटा सा बालक था, यह मुझे पालने में झुला रही थी.’
-श्रीमद देवी महापुराण, तीसरा स्कन्द, अध्याय 1.3 (गीता प्रैस, गोरखपुर से प्रकाशित, अनुवादकर्ता हनुमान प्रसाद पोद्दार तथा चिमनलाल गोस्वामी. पृष्ठ संख्या 114 से 128 देवी महापुराण की उपरोक्त कथा को पढ़ कर प्रश्न उठता है कि किसे सृष्टि रचयिता माना जाए? ब्रह्मा ने जब आंखें खोलीं तो खुद को किसी फूल पर बैठा पाया. ब्रह्मा को पता ही नहीं चला कि उस अथाह जल में वे अचानक कहां से उत्पन्न हो गए. स्वयं की उत्पत्ति के बाद ब्रह्मा एक हजार वर्ष तक पृथ्वी का अन्वेषण करते रहे. इस का मतलब यह कि सृष्टि रचना से पहले अथाह जल और पृथ्वी का अस्तित्व था.
फिर आकाशवाणी हुई कि तप करो और उन्होंने एक हजार वर्ष तक तप किया. इस तप के पूरा होने के बाद सृष्टि करने की आकाशवाणी हुई. इस का अर्थ यह हुआ कि ब्रह्मा जिस पृथ्वी पर अथाह जल में एक फूल पर प्रकट हुए थे, वे सब तो पहले से बनी सृष्टि का ही हिस्सा थे. ब्रह्मा ने जैसे ही, अपने शब्दों में, नई सृष्टि रचना आरंभ की तो मधु और कैटभ नाम के 2 राक्षस आ गए. यहां प्रश्न खड़ा होता है कि ये दोनों राक्षस सृष्टि रचना से पहले कहां से पैदा हो गए. इन दोनों राक्षसों के भय से ब्रह्मा कमल का डंठल पकड़ कर भाग खड़े हुए. ब्रह्मा रसातल में नीचे उतरे. रसातल पृथ्वी बनने से पहले कैसे बन गया? वहां उन्हें विष्णु शेष शैय्या पर अचेत पड़े मिले.
क्या ये सब मजेदार, रोचक, रोमांचक, कपोलकल्पित कहानियां नहीं हैं? नारद ने एक कहानी सुनाई और हम इसे सच मान लें, क्या यह बेवकूफी नहीं है? यदि इन बातों को सच मान भी लें तो बताइए कि आज ये सब प्राणी कहां हैं? वह कमल, वह शेषनाग, वह ब्रह्मा, विष्णु, महेश सब आज कहां गए? शास्त्रों में इन सभी के गायब होने की बात कहीं नहीं लिखी. हिंदू धर्म के धर्मप्रवर्तकों को तो ये सब नजर आने चाहिए न.
हिंदू धर्म की सृष्टि रचना की कहानियों में विरोधाभास तो है ही, साथ ही, ये कहानियां अवैज्ञानिक भी हैं. इन कहानियों को सिर्फ कहानी मान कर चलें तो ये बालमन के मनोरंजन का साधन तो हो सकती हैं लेकिन वैज्ञानिक सत्य नहीं हो सकतीं. इन धार्मिक कहानियों का विज्ञान से दूरदूर तक कोई नाता नहीं है. सवाल यह है कि आज भी बहुत से लोग इन भ्रामक कहानियों को सत्य क्यों मानते हैं?
दरअसल, पीढ़ी दर पीढ़ी ये कहानियां समाज के सब से शक्तिशाली वर्ग, पुरोहित, द्वारा दोहराई जाती हैं और जो भी इन का विरोध करता है उसे नास्तिक, मलेच्छ, दानव, दैत्य व चांडाल कह कर समाज से निकाल दिया जाता है और अकसर मार भी डाला जाता है.
ऋग्वेद के मंडल 10, सूक्त 90, मंत्र 1 में उस विराट ब्रह्म का वर्णन है जिस ने यह सृष्टि बनाई. गीता, अध्याय 10-11, मंत्र नं. 46, में भी सृष्टिकर्ता ब्रह्म का ऐसा ही वर्णन है. अर्जुन ने कहा है, ‘हे सहस्रबाहु अर्थात हजार भुजा वाले, आप अपने चतुर्भुज रूप में दर्शन दीजिए जिस के हजारों हाथपैर, हजारों आंखें कान आदि हैं, वह विराट रूप जो प्रभु अपने अधीन सर्वप्राणियों को पूर्ण काबू कर के 20 ब्रह्मांडों को गोलाकार परिधि में रोक कर स्वयं इन से ऊपर 21वें ब्रह्मांड में बैठा है. हर धर्म में ईश्वर को ले कर इस तरह की कल्पनाएं भरी पड़ी हैं और सभी धर्म अपने ईश्वर की पूजा या इबादत का विधान करते हैं और स्वयं अपने तथाकथित ईश्वर का एजेंट बन कर लोगों की अज्ञानता का फायदा उठाते हैं.
सृष्टि रचना के बारे में ईसाई धर्म क्या कहता है
सृष्टि रचना से जुड़ी बाइबिल की अवैज्ञानिक बातें- बाइबिल के मुताबिक ईश्वर ने एक ही सप्ताह में सृष्टि की रचना कर दी थी जिस में उस ने पेड़पौधे, जीवजंतु, पहाड़नदियां और मनुष्य को अलगअलग 6 दिनों में बनाया था. परमेश्वर ने पहले दिन सूरज और पानी बनाए (जब सूरज और पानी बने ही नहीं थे तब ये कहां से आए, यह न पूछो, बस, मानते चले जाओ). दूसरे दिन उस ने आसमान बनाया. तीसरे दिन पानी को एक जगह इकट्ठा कर ईश्वर ने धरती और समुद्र बनाए और धरती पर पेड़पौधे लगाए. चौथे दिन परमेश्वर ने तारों का निर्माण किया. 5वें दिन परमेश्वर ने समुद्र में रहने वाले जीवजंतुओं के साथ उड़ने वाले पक्षियों को बनाया और 6ठे दिन परमेश्वर ने धरती और जानवरों पर अधिकार के लिए अपनी छवि में इंसान की रचना की और उसे गिनती में बढ़ने का आशीर्वाद दिया.
6 दिनों में सृष्टि रचना कंप्लीट हो जाने के बाद परमेश्वर ने 7वें दिन आराम किया. बाइबिल के उत्पत्ति ग्रंथ में (विशेष रूप से पृष्ठ संख्या 2, अ. 1:20 – 2:5) परमेश्वर द्वारा 6 दिनों में दुनिया की रचना की बात दर्ज है.
बाइबिल के अनुसार, बारिश का पानी आकाश के छोटेछोटे छिद्रों से धरती पर आता है. इस के अलावा बाइबिल में सूर्य के स्थिर रहने (यहोशू 10:13), समुद्र के 2 भागों में विभाजित होने (निर्गमन 14:21-22) जैसी अवैज्ञानिक बातें भी भरी पड़ी हैं.
यहां प्रश्न यह है कि परमेश्वर को सृष्टि रचने में 6 दिनों का समय क्यों लगा? परमेश्वर ने पहले दिन सूरज और पानी के निर्माण किए जोकि बिलकुल अवैज्ञानिक बात है. आज के विज्ञान के अनुसार, हमारा सूर्य बिगबैंग के 8 अरब वर्षों बाद किसी अज्ञात नेबुला में गुरुत्त्वाकर्षण के कारण हाइड्रोजन के बादलों के सघन होने की प्रक्रिया के नतीजे में अस्तित्व में आया. बाइबिल कहती है कि पहले ही दिन परमेश्वर ने सूर्य का निर्माण किया जोकि विज्ञान के अनुसार तथ्यहीन बात साबित होती है.
ईसाई धर्म के एजेंट आम ईसाइयों को बरगलाते हैं. वे जीसस को ईश्वर का पुत्र कहते हैं और खुद परमेश्वर के पुत्र के सेवक बन कर लोगों के चंदों से वेटिकन जैसे आलीशान चर्च बनवा लेते हैं. दुनियाभर के चर्च आसपास के मकानों से कहीं ज्यादा सुंदर और भव्य बने होते हैं. इन भव्य इमारतों में बैठे परमेश्वर के एजेंट बिना मेहनत के आलीशान जिंदगी जीते हैं और भक्तों पर राज करते हैं.
सृष्टि रचना के बारे में इसलाम धर्म क्या कहता है कुरान के अनुसार, अल्लाह जब किसी चीज की इच्छा जाहिर करता है तो उसे केवल यह कहना होता है कि ‘हो जा’ और वह हो जाता है.
‘‘अल्लाह आकाशों और धरती जैसी अनोखी चीज को पैदा करने वाला है, इसलिए जब वह किसी काम का निर्णय करता है तो उस के लिए बस कह देता है कि ‘हो जा’ और वह हो जाती है.’’ (सूरह अल-बकरा, आयत 117, कुरान).
यहां सवाल यह उठता है कि जब अल्लाह को सृष्टि का निर्माण करना था तब उसे 6 दिनों का समय क्यों लग गया?
कुरान के सूरह हूद, आयत-7 में लिखा है- ‘‘वही है जिस ने आकाशों और धरती को 6 दिनों में पैदा किया ताकि वह तुम्हारी परीक्षा ले कि तुम में से कर्म में कौन सब से अच्छा है. इस से पहले उस का सिंहासन पानी पर था.’’
इन विरोधाभासी दोनों आयतों से पता चलता है कि ‘हो जा’ कहने भर से काम नहीं चलता. निर्माण के लिए सालों की मेहनत करनी पड़ती है और उपरोक्त आयत से अल्लाह के सृष्टि निर्माण का उद्देश्य भी स्पष्ट होता है कि उस ने कायनात को इसलिए रचा ताकि वह लोगों की परीक्षा ले सके.
इस से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि अल्लाह सर्वज्ञानी नहीं है, तभी तो वह परीक्षा के माध्यम से लोगों के अच्छेबुरे कर्म जानना चाहता है. कायनात को बनाने से पहले पानी कहां से आ गया? क्या पानी कायनात का हिस्सा नहीं? सृष्टि रचना से जुड़ी इस तरह की कपोलकल्पनाओं से अज्ञानी लोगों को भरमाया जा सकता है लेकिन विज्ञान की समझ रखने वाले लोग अच्छी तरह जानते हैं कि ये बातें इतिहास के नासमझ लोगों की कोरी कल्पनाएं मात्र हैं.
विज्ञान के अनुसार सृष्टि का जन्म कैसे हुआ
हमारी धरती जीवन की विविधताओं से भरी हुई है. हरेभरे मैदानों से ले कर सूखे रेगिस्तानों तक और ऊंचे पहाड़ों से ले कर समुद्र की गहराइयों तक हमें धरती का हर हिस्सा जीवन से परिपूर्ण नजर आता है और हम इंसान धरती पर जीवन की इसी विविधता का हिस्सा हैं.
आदिकाल का मनुष्य सृष्टि के रहस्यों को नहीं जानता था, इसलिए वह प्रकृति में घटने वाली घटनाओं से बहुत डरता था. इंसान के इसी स्वाभाविक डर ने कई प्रकार के अंधविश्वासों को पैदा कर दिया जो बाद में अलगअलग धर्मों के रूपों में स्थापित हो गए.
धरती कैसे बनी? जीवन की उत्पत्ति कैसे हुई? इंसान कैसे बना? धरती कैसे काम करती है? रात और दिन कैसे होते हैं? पिछले 200 वर्षों के वैज्ञानिक शोधों द्वारा इन प्रश्नों का जवाब ढूंढ़ निकाला जा चुका है. आइए, इन प्रश्नों का वैज्ञानिक विश्लेषण करते हैं.
बिगबैंग से हुई सृष्टि की शुरुआत
लगभग 13 अरब 70 करोड़ वर्षों पहले हमारे इस विराट अनंत और हैरतअंगेज यूनिवर्स का जन्म हुआ. ब्रह्मांड के जन्म की इसी थ्योरी को हम बिगबैंग थ्योरी कहते हैं. बिगबैंग से पहले क्या था, इस पर वैज्ञानिक अलगअलग थ्योरी देते हैं. स्टीफन हौकिंग के अनुसार, ‘हमारा ब्रह्मांड 3 तत्त्वों से बना है. ये 3 तत्त्व हैं टाइम, स्पेस और मैटर. तीनों का अस्तित्व बिगबैंग से ही प्रारंभ होता है. बिगबैंग से पूर्व समय का ही अस्तित्व नहीं था, तब यह मानने का कोई औचित्य ही नहीं है कि बिगबैंग से पहले भी कुछ था.’
हमारा यूनिवर्स अपनी शुरुआत से ही फैलता चला गया. बिगबैंग की शुरुआती अवस्था में जो ऊर्जा पैदा हुई उस से मैटर और एंटीमैटर पैदा हुए. उन दोनों के घर्षण से शुरुआती 12 प्रकार के एलिमैंट बने जिन में से एक हाइड्रोजन था.
हाइड्रोजन के अणुओं से ही हीलियम बना. हाइड्रोजन और हीलियम से बने अरबोंखरबों सितारे और असंख्य आकाशगंगाएं. 6 अरब वर्ष पहले 2 विशालकाय सितारे आपस में टकराए जिसे सुपरनोवा विस्फोट कहा जाता है. इन्हीं सितारों के नेबुला से तकरीबन साढ़े 5 अरब साल पहले सूरज का जन्म हुआ.
हमारे यूनिवर्स की शुरुआत के 8 अरब वर्षों के बाद हमारी आगशगंगा, मिल्कीवे, के किसी कोने में हाइड्रोजन के बादल सघन हो रहे थे. ग्रेविटी के कारण हाइड्रोजन के विशाल बादलों ने हमारे सूर्य का रूप लेना शुरू किया.
करीब 5 अरब वर्षों पहले शुरू हुई यह प्रक्रिया 50 करोड़ वर्षों तक चलती रही. सूर्य बनने की प्रक्रिया के बाद बची धूल और गैस ने सैकड़ों पिंडों का रूप धारण किया. ये सभी पिंड गुरुत्व के कारण केंद्र में स्थित बड़े पिंड का चक्कर लगाने लगे. इस तरह बना हमारा सौरमंडल.
शुरुआती सौरमंडल में सैकड़ों ग्रह थे, हजारों पिंड थे, लाखों उल्का पिंड थे और करोड़ोंअरबों की तादाद में विशाल पत्थर थे जो अंतरिक्ष में सूर्य का चक्कर लगा रहे थे. साढ़े 4 अरब वर्षों पहले के उस सौरमंडल में कुछ बृहस्पति से भी बड़े ग्रह थे और कुछ प्लूटो से भी छोटे.
समय के अंतराल में इन में से अधिकांश ग्रह आपस में टकरा गए जिस से ग्रहों की संख्या कम हो गई. इन ग्रहों की टक्कर से बिखरे मलबों से इन ग्रहों के चंद्रमा बने.
4 अरब वर्ष पहले सौरमंडल के ग्रहों के बीच एक विशाल पिंड से दूसरे बड़े पिंड की भयंकर टक्कर हो गई. इस टकराव से उस पिंड का 25 प्रतिशत भाग मलबे में तबदील हो गया और शेष बचे भाग ने धीरेधीरे एक ग्रह का रूप धारण किया. इस तरह हमारी पृथ्वी का जन्म हुआ और इस टक्कर से पैदा हुए मलबों के ढेर ने धीरेधीरे एक और छोटे पिंड का रूप धारण किया जो चंद्रमा कहलाया.
शुरुआती पृथ्वी आज की पृथ्वी से एकदम अलग थी. साढ़े 4 अरब वर्ष पहले की धरती पर ठोस धरातल नहीं था. धरती की सतह पर धरती के गर्भ से निकलने वाले मैग्मा और लावा की भरमार थी. तापमान 400 से 1,600 डिग्री सैल्सियस था. न कोई पहाड़, न नदी, न समुद्र. चारों ओर आकाश से बरसते आग के गोले और धरातल पर बहती आग की नदियां ही थीं.
ऐसी थी हमारी शुरुआती पृथ्वी. करीब 3.8 अरब वर्ष पहले तक पृथ्वी का तापमान कुछ कम हुआ. धरती पर 20 करोड़ वर्षों तक धधकते लावा और मैग्मा के बादल बरसते रहे. इस तेजाबी बारिश ने विशाल रासायनिक समुद्र का निर्माण कर दिया. 3.7 अरब साल पहले विशाल समुद्र से पृथ्वी का 80 प्रतिशत भाग पानी में डूब चुका था. शेष 20 प्रतिशत जो भाग बचा था उसे पेनिजिया लैंड कहा जाता है. यह पेनिजिया महाद्वीप भी टूटने लगा. इस के कई भाग एकदूसरे से अलग हो कर दूर खिसकने लगे. धरती के गोल होने के कारण एकदूसरे से अलग हुए ये भूखंड फिर से एकदूसरे से टकराने लगे. विशाल भूखंडों के इस महाटक्कर से विशाल पर्वतों के निर्माण हुए.
पर्वतों के निर्माण ने फिर से धरती को बदला. समुद्र का पानी सूर्य की प्रचंड गरमी से वाष्पित हो कर इन पहाड़ों पर बरसता और इस तरह करोड़ों वर्षों में बड़ेबड़े ग्लेशियरों के निर्माण होने लगे.
30 करोड़ वर्षों में पृथ्वी का वातावरण बनने लगा. मौसमचक्र बनने लगे. हालांकि ये परिवर्तन जीवन के अनुकूल नहीं थे, फिर भी समुद्र की गहराइयों में जीवन की इकाइयों के संकेत दिखाई देने लगे.
पृथ्वी पर होने वाली रासायनिक अभिक्रियाओं ने शुरुआती एक कोशिका वाले जीवों का निर्माण किया. जीवन के इन शुरुआती तत्त्वों ने पृथ्वी पर स्थित कार्बन डाइऔक्साइड को सोख कर औक्सीजन का निर्माण करना शुरू कर दिया.
इन माइक्रो और्गेनिज्म से कई प्रकार के सूक्ष्म बैक्टीरिया विकसित होने लगे. उस के बाद के करोड़ों वर्षों में इन एक कोशिका वाले सूक्ष्म जीवों से बहुकोशिकीय जीव विकसित हुए.
करीब 3 अरब वर्ष पहले की पृथ्वी काफी बदल चुकी थी. अब पृथ्वी पर पर्याप्त रूप में औक्सीजन था, पानी था, नदियां थीं. समुद्र के गर्भ में अनेक छोटे जीव पल रहे थे व विकसित हो रहे थे. इसी दौर में जीवों की अनेक नई प्रजातियां पैदा हुईं.
जीवन का यह खेल केवल समुद्र में ही हो रहा था. महाद्वीप सुनसान थे. वहां अभी जीवन के नाम पर काई जैसा तत्त्व ही उपलब्ध था जो विकसित हो रहा था. धीरेधीरे द्वीपों की बंजर जमीन भी हरियाली में बदलने लगी. वहां भी शुरुआती घास पैदा होने लगी. जीवन की जो प्रतिस्पर्धा समुद्र में चल रही थी वह द्वीपों पर भी होने लगी. लेकिन पृथ्वी की सतह पर यह होड़ विभिन्न प्रकार की घास की प्रजातियों में थी जो अलगअलग पेड़पौधों का रूप ले रही थी. वहीं समुद्र की गहराइयों में बहुकोशिकीय जीव विभिन्न प्रकार के कीड़ेमकोड़े और मछलियों के रूप में विकसित होने लगे थे.
विकास की इस चरम प्रतियोगिता के दौर में कुछ समुद्री जीवों ने समुद्र से बाहर निकल कर धरातल पर कदम रखा जहां उन के लिए प्रतिस्पर्धा बिलकुल नहीं थी, बस, उन्हें नए माहौल के हिसाब से खुद को बदलना था.
2 अरब साल पहले समुद्र से निकल कर धरती पर सब से पहले कदम रखने वाली मछलियों के वंशजों ने विकास की बेहद कठिन प्रक्रियाओं से गुजरते हुए विशाल जीवों का रूप धारण कर लिया.
आगे चल कर यही विशाल जीव डायनासोर के रूप में विकसित हुए जिन्होंने लंबे अरसे तक पृथ्वी पर राज किया. करीब 6 करोड़ साल पहले पृथ्वी से एक भयंकर धूमकेतु टकराया जिस ने डायनासोरों के विशाल साम्राज्य को एक झटके में खत्म कर दिया.
इस टक्कर ने पृथ्वी से बड़े जीवों का बिलकुल सफाया कर दिया. पृथ्वी के लगभग 90 प्रतिशत जीव खत्म हो गए. जो छोटे जीव बच गए उन्होंने परिस्थितियों का सामना किया और लाखों वर्षों के विकासक्रम में खुद को कई अलगअलग प्रजातियों में विकसित कर लिया.
आधुनिक मनुष्यों के पूर्वज 2 लाख वर्ष पहले अफ्रीका के इथियोपिया में विकसित हुए और करीब 80 हजार वर्ष पहले इंसानों का एक छोटा सा दल नई दुनिया की तलाश में अफ्रीका से यमन के रास्ते 16 किलोमीटर का समुद्री रास्ता पार करते हुए यूरोप पहुंच गया. उस ने 200 वर्षों की वैज्ञानिक खोजों और परीक्षणों पर आधारित सृष्टि रचना की. इस थ्योरी को अच्छी तरह समझने के लिए कुछ और बातों को जानना जरूरी है.
धर्म के ठेकेदार स्वयं को ईश्वर का सेवक कहते हैं. जबकि, वे ईश्वर की सेवा के नाम पर जनता से लूटी गई दौलत से आलीशान जिंदगी जीते हैं. इस के उलट, सृष्टि और इंसान की जिंदगी से जुड़ी नित नई खोज करने वाले वैज्ञानिक स्वयं को ईश्वर का दलाल घोषित नहीं करते. ये वैज्ञानिक साधारण जिंदगी जीते हैं. साधारण घरों में रहते हैं. साधारण खाना खाते हैं. स्वयं की मूर्तियां नहीं बनवाते. आइजेक न्यूटन, गैलीलियो गैलिली, चार्ल्स डार्विन और अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे महान वैज्ञानिकों की जहां मूर्तियां बनी हैं वहां कोई पुजारी नहीं बैठा. जिन पुस्तकों में दुनिया का वास्तविक ज्ञान है वे पुस्तकें पुस्तकालयों में हैं; किसी धर्म के खास चर्चों, मसजिदों या मंदिरों में नहीं. जिन महान वैज्ञानिकों ने सृष्टि के बड़े रहस्यों को सुलझाया, लोगों को उन वैज्ञानिकों के नाम तक नहीं मालूम क्योंकि ये वे महान लोग थे जिन्हें भक्तों की जरूरत नहीं थी.
सर्वप्रथम फ्रेडरिक वोहलर ने दी ईश्वर को चुनौती
धर्म के ठेकेदारों का मानना था कि नेचर में मौजूद हरेक तत्त्व सिर्फ ईश्वर ही पैदा कर सकता है. इंसान के बस की बात नहीं कि वह कुछ भी पैदा कर सके. लेकिन, फ्रेडरिक वोहलर ने 1828 में यूरिया को लैब में तैयार कर ईश्वर को चुनौती दे डाली थी तब धार्मिकों ने इसे खुदा की अवहेलना माना और दुनियाभर में सर फ्रेडरिक वोहलर की निंदा की गई. तमाम तरह के फतवे जारी हुए. जान से मारने की धमकियां दी गईं लेकिन यह सब वोहलर जैसे वैज्ञानिकों के लिए कोई नई बात नहीं थी.
जीवन की उत्पत्ति के बारे में इंसानी समझ कभी आगे न बढ़ पाती अगर गैलीलियो गैलिली, कोपरनिकस, जियोर्दानो ब्रूनो और चार्ल्स डार्विन जैसे महान लोग धर्म की युगों पुरानी घेराबंदियों को लांघने की हिम्मत न करते.
जीवन की उत्पत्ति के बारे में धार्मिक मान्यताओं से अलग विज्ञान ने आज कई पहेलियों का हल ढूंढ़ लिया है. आज हम जानते हैं कि धरती पर जीवन की विविधताओं का स्रोत कोई
ईश्वर नहीं बल्कि विकासवाद (एवोल्यूशन) है. एवोल्यूशन के हजारों सुबूत हमें मिल चुके हैं लेकिन अभी तक हमारे पास इस सवाल का ठोस जवाब नहीं है कि धरती पर जीवन की शुरुआत कैसे हुई.
धरती पर जीवन की शुरुआत कैसे हुई, इस सवाल का जवाब खोजने से पहले हमें यह समझना होगा कि जीवन है क्या? यह प्रश्न भी मानव की खोजी प्रवृत्ति से जुड़ा है. आदिमानव हमेशा से अपने सर्वाइवल के लिए जिज्ञासु प्रवृत्ति का रहा है. नदी के उस पार क्या है? पहाड़ के पीछे क्या है? समुद्र के उस पार क्या है? गुफा के अंदर क्या है? आदिकाल के मनुष्य के लिए इस तरह के प्रश्नों का हल ढूंढ़ने की प्रक्रिया हजारों वर्षों तक चली. शुरू में मनुष्य की जिज्ञासु प्रवृत्ति सिर्फ उस के संघर्ष और विकास से जुड़ी रही. आगे चल कर इंसान की यह प्रवृत्ति उत्सुकता में बदली, जिस का फायदा हर कदम पर पुरोहितों ने उठाया.
जीवन की परिभाषा क्या
जीवन की परिभाषा क्या है? इस सवाल पर ज्यादातर वैज्ञानिकों की कौमन राय यह है कि वह मौलिक्यूल जो जानकारियों को स्टोर कर सके और अपनी नकल तैयार कर सकने के काबिल हो, उसे नस्ल कहते हैं. हर नई नस्ल पुरानी पीढ़ी से थोड़ी एडवांस भी होनी चाहिए ताकि यह नेचर में अपनी उपस्थिति कायम रख सके. इस के साथ ही, यह मौलिक्यूल एनर्जी के किसी स्रोत पर निर्भर हो कर मेटाबौलिज्म को करने में सक्षम भी हो. ऐसे किसी भी मौलिक्यूल को हम जीवन की एक इकाई कह सकते हैं.
सरल भाषा मे कहें तो वह कोई भी तत्त्व जिसे भोजन यानी एनर्जी की जरूरत होती हो, उस में स्वयं को सुरक्षित रखने के गुण हों और जो प्रजनन कर अपनी नस्ल को आगे बढ़ा सकता हो, उस को हम जीवन कह सकते हैं.
आगे का अंश बौक्स के बाद
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मनुष्य की प्राचीन अभिव्यक्ति में नहीं दिखे देवीदेवता
पूरी दुनिया में मनुष्य की अभिव्यक्ति के सब से पुराने प्रमाण भित्ति चित्रों के रूप में मिलते हैं. इंडोनेशिया के सुलावेसी की एक गुफा में जंगली सूअर के शिकार के चित्र उकेरे गए हैं जो लगभग 51,200 साल पुराने हैं. भारत के मध्य प्रदेश में भीमबेटका की गुफाओं में 30,000 साल पुराने चित्र हैं. चट्टानों पर उकेरे गए चित्रों में शिकार, नृत्य और दैनिक जीवन की झलक साफ नजर आती है. ये गुफा चित्र मानव सभ्यता की शुरुआती रचनात्मकता और पर्यावरण के साथ उस के संबंध को दर्शाते हैं, साथ ही, ये गुफा चित्र प्रागैतिहासिक मानव के जीवन, कला और संस्कृति को समझने का एक अनमोल स्रोत भी हैं.
दक्षिणपश्चिम फ्रांस में डोर्डोग्ने इलाके में लास्को गुफा चित्र और अल्टामिरा गुफा चित्र लगभग 20,000 साल पुराने हैं. इन दोनों गुफा चित्रों में घोड़े, हिरण, बैल के खूबसूरत चित्र बने हैं, साथ ही, शिकार के दृश्यों को लाल, काले और पीले रंगों में उकेरा गया है. इन चित्रों को ‘पाषाण युग का सिस्टिन चैपल’ कहा जाता है, क्योंकि ये मानव कला और सांस्कृतिक इतिहास की शुरुआत को दर्शाते हैं.
यहां सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इन गुफा चित्रों में कहीं भी किसी भगवान या देवीदेवता का कोई चित्र नहीं है. ये तमाम गुफा चित्र मनुष्य के सर्वाइवल की कहानी कहते हैं. मनुष्य के संघर्ष की लंबी कहानी में मनुष्य को कहीं भी भगवानों की जरूरत पड़ी हो, ऐसा इन गुफा चित्रों में कहीं नजर नहीं आता. भगवान, देवीदेवता और अल्लाह मानव के लाखों वर्षों के एवोल्यूशन में कहीं नहीं थे. ये तब आए जब मनुष्यों ने खेती करना सीखा और गांव बसने शुरू हुए. सभ्यताओं की शुरुआत के इस दौर में कुछ धूर्त और चालाक लोगों ने ईश्वर, देवीदेवता और खुदाओं की खोज कर दी और इन्हें जबरन लोगों पर थोपना शुरू कर दिया ताकि लोग पुरोहितों को ईश्वर का प्रतिनिधि मान कर उन की बनाई कपटपूर्ण कहानियों को सच मानें और उन्हें मुफ्त में दान व स्त्रियां मिल सकें.
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कैसे काम करता है हमारा शरीर
शरीर के काम करने को बेहतर ढंग से समझना हो तो हमारे पास उदाहरण के लिए हमारा शरीर है. यह शरीर कई और्गनों से मिल कर बना है. शरीर को जीवित बनाए रखने के लिए किडनी, दिल, फेफड़े, स्किन, धमनियां और दिमाग मिल कर काम करते हैं. शरीर के ये हिस्से बने हैं टिश्यूज से और ये टिश्यूज बने हैं सेल्स यानी कोशिकाओं से.
एक सिंगल सेल में वे सभी गुण होते हैं जिसे हम जीवन कह सकते हैं. एक सिंगल सेल भोजन करता है, खुद की सुरक्षा कर सकता है और अपनी कौपी बना सकता है. ऐसी खरबों कोशिकाओं का बना हमारा शरीर भी मेटाबौलिज्म करता है, खुद की सुरक्षा कर सकता है और दो शरीर मिल कर अपने से मिलतीजुलती अनगिनत कौपीज बना सकते हैं. खरबों जीवित कोशिकाओं की इसी संयुक्त इकाई को हम जिंदा शरीर कहते हैं. धरती के तमाम जीव इसी तरह बने हैं यानी धरती पर हम जिन जीवों को देखते हैं उन का वजूद खरबों कोशिकाओं की संयुक्त कार्यप्रणाली की वजह से है.
जिस तरह हम खुद में एक जिंदगी हैं उसी तरह हमारे शरीर का हरेक सेल अपनेआप में एक जीवन है और धरती पर जिन भी तत्त्व को हम जीवन कहते हैं वे सभी इन्हीं छोटे सेल्स की कंबाइन इकाई होते हैं.
धरती पर जीवन की शुरुआत में यही सिंगल सैलुलर जीव वजूद में आए थे जो अरबों वर्षों के क्रमिक विकास में मल्टीसैलुलर जीव बने. सिंगल सेल से खरबों प्रजातियां कैसे इन्वौल्व हुईं, इस के लिए हमें एवोल्यूशन को समझना होगा.
एवोल्यूशन क्या है
जीवन के आनुवंशिक गुणों में पीढ़ी दर पीढ़ी होने वाले बदलाव को क्रम विकास या एवोल्यूशन कहते हैं. धरती पर जीवन की विविधताओं का स्रोत क्रम विकास ही है.
चार्ल्स डार्विन ने सर्वप्रथम इंसान और बाकी सभी जीवों के क्रमिक विकास की थ्योरी दी थी. चार्ल्स डार्विन के शोध के अनुसार, इतिहास में बहुत पीछे जाने पर सभी जीवों की ओरिजिन का स्रोत जीवन की किसी एक शाखा से ही जुड़ता है. सीधे शब्दों में कहें तो सभी जीवों के पूर्वज एक ही रहे होंगे.
इस नजरिए से डार्विन ने यह साबित किया कि जीव की हर प्रजाति चाहे वह इंसान हो, जीवजंतु हों, पेड़पौधे हों या समुद्री जीव हों, सभी एकदूसरे के रिश्तेदार हैं जो करोड़ों वर्षों के प्राकृतिक चयन (नैचुरल सिलैक्शन) की वजह से अलगअलग प्रजातियों में विकसित हुए. इसी को थ्योरी औफ एवोल्यूशन यानी विकासवाद का सिद्धांत कहा जाता है. सर चार्ल्स डार्विन के एवोल्यूशन के सिद्धांत को स्थापित हुए 150 वर्ष गुजर चुके हैं. इस बीच अनेक जीव वैज्ञानिकों ने डार्विन के विकासवाद की पुष्टि की है. आज के जीव विज्ञान के लिए एवोल्यूशन एक बुनियादी मापदंड है.
बहुकोशिकीय जीवन की शुरुआत कैसे हुई
अफ्रीका के गैबोन से 2.1 बिलियन वर्ष पुरानी चट्टानों में पहले के बहुकोशिकीय जीवाश्म पाए गए हैं. इस से यह साबित होता है कि 2 अरब साल पहले भी बहुकोशिकीय जीव धरती पर मौजूद थे. इस जीवाश्म के शोध से पता चला कि यह बहुकोशिकीय जीवन का बिलकुल शुरुआती चरण था. बहुकोशिकीय जीवन सिंगल सैलुलर जीवों का ही एडवांस्ड रूप है. तकरीबन 2.5 अरब साल पहले एकल कोशिकाओं का एक समूह एक अलग द्रव्यमान में इकट्ठा हुआ, जिसे ग्रेक्स कहा जाता है. एक अरब वर्ष के विकासक्रम के दौरान यही ग्रेक्स बहुकोशिकीय इकाई के रूप में विकसित हो गया. आज धरती पर मौजूद तमाम तरह के जीव इसी विकासक्रम का परिणाम हैं. जीवाश्म वैज्ञानिकों के शोध बताते हैं कि बहुकोशिकीय पौधे 470 मिलियन साल पहले शैवाल से विकसित हुए थे.
अब सवाल यह कि सिंगल सेल वाले जीव कैसे बने, इन की शुरुआत कहां से हुई? आणविक जीव विज्ञान ने साबित किया कि सभी जीव एक ही माइक्रोमौलिक्यूल्स (डीएनए, आरएनए और प्रोटीन) को साझा करते हैं और इन अणुओं यानी माइक्रोमौलिक्यूल्स के बीच सूचना स्थानांतरित करने के लिए एक ही आनुवंशिक कोड होता है. इस शोध से यह स्थापित हो गया कि धरती पर मौजूद सभी प्रकार के जीव 3.7 अरब साल पहले के किसी एक ही पूर्वज को साझा करते हैं.
1996 में एक फाउंडेशन द्वारा फ्रांस में आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान इस साझे पूर्वज का नामकरण कर इसे लुका (लास्ट यूनिवर्सल कौमन एंसेस्टर) नाम दिया गया. लुका के जीनोमिक्स के डेटा के परीक्षण यह बताते हैं कि आज की जीवित दुनिया के 3 डोमैन, आर्किया, बैक्टीरिया और यूकेरियोट्स, का साझा पूर्वज लुका ही था.
इसे और ठीक से समझने के लिए हमें एक बार फिर सेल को समझना होगा. एक सिंगल सेल, कई माइक्रो एलिमैंट्स से मिल कर बना होता है. इन में सब से महत्त्वपूर्ण एलिमैंट प्रोटीन होता है जो बनता है अमीनो एसिड से और अमीनो एसिड बनता है एटम्स से. हम जानते हैं कि एक एटम खुद में जीवन नहीं होता और न ही हम अमीनो एसिड या न्यूक्लिक एसिड को ही जीवन कह सकते हैं. प्रोटीन मैंबरैंस और माइटोकौंड्रिया भी खुद में जीवन नहीं हैं लेकिन ये सब मिल कर जिस सिंगल सेल का निर्माण करते हैं वह जीवन कहलाता है. यानी, कुछ निर्जीव कैमिकल्स मिल कर एक जीवित सेल का निर्माण कर देते हैं और इस तरह जियोग्राफी में मौजूद कैमिस्ट्री से बायोलौजी की हैरतअंगेज शुरुआत हो जाती है.
सवाल यह है कि कैमिस्ट्री से बायोलौजी के बीच की इस यात्रा को कैसे समझ जाए? तकरीबन 4 अरब साल पहले की धरती का वातावरण ऐसा था कि जीवन के बुनियादी एलिमैंट्स बन सकें. सतह पर मौजूद कुछ कैमिकल्स का संपर्क जब आसमानी बिजली से हुआ तब धरती पर अमीनो एसिड का निर्माण हुआ.
अमीनो एसिड को तो हम लैब में भी तैयार कर चुके हैं. वर्ष 1952 में 2 वैज्ञानिकों ने लैब में अमीनो एसिड तैयार कर दिया था जिसे मिलर यूरी एक्सपैरिमैंट कहते हैं. सरल गैसों से कार्बनिक अणुओं के बनने की प्रक्रिया को दिखाने वाले इस मिलर-यूरे प्रयोग को अमेरिकी रसायनज्ञ स्टेनली मिलर और हेरोल्ड यूरे ने अंजाम दिया था. दोनों वैज्ञानिकों ने लैब के अंदर कैमिकल रिऐक्शन की ऐसी कंडीशन तैयार की जैसी शुरुआती धरती पर थी और नतीजतन, उन्होंने प्रयोगशाला में अमीनो एसिड तैयार कर दिखाया. इस प्रयोग से यह साबित होता है कि 3 अरब 80 करोड़ साल पहले धरती के गर्भ से बायोलौजी का जन्म कैमिकल रिऐक्शन की वजह से ही हुआ.
जीवन के बुनियादी तत्त्व में जीवन कहां से आया
अमीनो एसिड और न्यूक्लिक एसिड जैसे जीवन के सब से बुनियादी एलिमैंट्स धरती पर ही नहीं बल्कि हमारे सौरमंडल के दूसरे ग्रहों पर भी मौजूद होते हैं. ये मंगल पर भी हैं और अंतरिक्ष में भटकते धूमकेतुओं पर भी. 3 अरब 80 करोड़ साल पहले अंतरिक्ष से लगातार बरसते धूमकेतू भी जीवन का यह रा मैटीरियल धरती तक पहुंचा सकते थे.
सवाल यह नहीं है कि जीवन के बुनियादी तत्त्व कैसे बने बल्कि सवाल यह है कि इन बुनियादी तत्त्वों से जीवन कैसे बना?
हम अब तक यह जान चुके हैं कि धरती पर जीवन की शुरुआत 3 अरब 80 करोड़ साल पहले हुई और उस वक्त के वातावरण में कुछ ऐसे कैमिकल रिऐक्शन हुए जिन से शुरुआती कोशिकीय जीव वजूद में आए लेकिन कैमिस्ट्री से बायोलौजी के बीच की बहुत सी गुत्थियां अब भी अनसुलझ ही हैं.
धरती पर जीवन की शुरुआत कहां पर हुई
जड़ से चेतन कैसे बना? इसे और बारीकी से समझने के लिए हमें पहले यह जानना होगा कि 3 अरब 80 करोड़ साल पहले धरती पर जीवन की शुरुआत कहां पर हुई. फौसिल रिकौर्ड के जरिए हमें धरती पर जीवन की अरबों साल पुरानी विकासयात्रा के पुख्ता सुबूत मिल चुके हैं लेकिन जीवन की शुरुआत कैसे हुई, इस बात के ठोस प्रमाण हम अभी तक हासिल नहीं कर पाए हैं. इस सवाल का हल तब ही मिल सकता है जब हम यह जान लें कि धरती पर जीवन की शुरुआत ठीकठीक कहां पर हुई.
3 अरब 80 करोड़ साल पहले की धरती की सतह पर जीवन के पनपने लायक एनवायरमैंट मौजूद नहीं था. सो, क्या जीवन की शुरुआत महासागरों के गर्भ में हुई? समुद्र की गहराइयों में मौजूद ज्वालामुखीय क्षेत्रों में जीवन के पनपने की संभावनाएं मौजूद हो सकती थीं लेकिन नए एक्सपैरिमैंट्स यह बताते हैं कि समुद्र की गहराइयों में शुरुआती जीवन का पनपना नामुमकिन बात है. इसे हम ‘वाटर पैराडौक्स’ कहते हैं. तो फिर, जीवन की शुरुआत जमीन पर कहां हुई?
अब नए शोध के नतीजे में यह बात निकल कर आई है कि तकरीबन 3 अरब 80 करोड़ साल पहले धरती की सतह पर मौजूद छोटे तालाबों में जीवन की शुरुआत हुई होगी. लेकिन अब ऐसे तालाबों को धरती पर ढूंढ़ना नामुमकिन है क्योंकि समय के लंबे अंतराल के बाद ऐसे तमाम स्थानों का स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है.
धरती पर 3 अरब 80 करोड़ साल पुरानी वह जगह अब कहीं है ही नहीं जहां हम जीवन की शुरुआत के सुबूत ढूंढ़ सकें तो क्या हम कभी यह नहीं जान पाएंगे कि जियोग्राफी पर कैमिस्ट्री से बायोलौजी की शुरुआत कैसे हुई? क्या इस सवाल का जवाब ढूंढ़े बिना हमें हार मान कर बैठ जाना चाहिए?
नहीं, विज्ञान कभी हार नहीं मानता. धरती पर न सही तो मंगल पर सही, सवाल है तो जवाब भी जरूर मिलेगा, यही विज्ञान है. जी हां, अगर धरती पर ऐसी कोई जगह मौजूद नहीं है तो क्यों न हम ऐसी जगह की तलाश मंगल पर करें?
मंगल पर जीवन की उत्पत्ति की खोज
मंगल भी लगभग उतना ही पुराना है जितनी धरती. मंगल ग्रह की सतह भी धरती से काफी मिलतीजुलती है. मंगल पर कई क्रैटर्स हैं जिन में कभी पानी मौजूद था. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अरबों साल पुराने मंगल के इन गड्ढों के आसपास जीवन की उत्पत्ति के वे सुबूत मिल सकते हैं जो हमारी जिज्ञासाओं को शांत कर सकते हैं क्योंकि अपने शुरुआती समय में मंगल और पृथ्वी दोनों लगभग एकजैसे ही थे. मंगल की सतह पर मौजूद आज सूखे हुए क्रैटर्स अपने अंदर बीते हुए वक्त के बहुत से राज ताजा किए हुए हो सकते हैं. इन में अरबों सालों से अब तक ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है. मंगल पर एक ऐसा ही क्रैटर है जिस का नाम है जजेरो क्रैटर.
पर्सिवियरैंस नाम के एक रोवर को नासा ने 30 जुलाई, 2020 को मंगल की ओर रवाना किया जो 18 फरवरी, 2021 को मंगल की सतह पर लैंड हुआ. तब से यह रोवर मंगल के जजेरो क्रैटर पर कैमिस्ट्री और बायोलौजी के बीच की उस कड़ी को ढूंढ़ने में लगा है जो धरती पर जीवन की शुरुआत की गुत्थी को सुलझ सकती है.
बेशक, हम अभी तक यह न जान पाए कि जड़ से चेतन कैसे बना लेकिन इतना तो जान ही गए हैं कि जड़ से चेतन को बनाने में किसी ईश्वर, अल्लाह या गौड का कोई हाथ नहीं है.
धरती पर जीवन किसी ईश्वर की वजह से नहीं है. इस कड़वे सच को समझते ही ईश्वर का रोल, ईश्वर से जुड़ी मान्यताएं और ईश्वर की जरूरत भी खत्म हो जाती है. ईश्वर की मान्यताओं के खत्म होते ही ईश्वर पर आधारित धर्मों की वाहियात दलीलें भी खत्म हो जाती हैं और इन दलीलों के खत्म होते ही धर्म के दलालों का खेल भी खत्म हो जाता है.
लेकिन विडंबना यह है कि दुनिया के तमाम धार्मिक गिरोह हमेशा इस कोशिश में लगे रहते हैं कि आम आदमी तक सत्य की रोशनी पहुंच ही न पाए और आम इंसान हमेशा धार्मिक गिरोहों की बनाई मनगढ़ंत कहानियों में अपनी जिंदगी का हल ढूंढ़ता फिरे.
पृथ्वी की उत्पत्ति के बारे में विज्ञान के पास कोई अंतिम उत्तर नहीं है और न ही विज्ञान यह दावा करता है कि यहीं से उत्पत्ति हुई और विकास प्रारंभ हुआ. हां, उस खोज में वैज्ञानिकों ने ऐसी बहुत सी खोजें कीं जिन का लाभ आज हम टैक्नोलौजी और मैडिसिन व अन्य रूपों में उठा रहे हैं. धार्मिक काल्पनिक कहानियों को सुनसुन कर, पढ़पढ़ कर, गागा कर न टैक्नोलौजी पैदा होती है न मैडिसिन बनती है. जो भी दावों के साथ मानव उत्पत्ति का रहस्य धार्मिक पुस्तकों से बताते हैं, वे खुद अस्पतालों के चक्कर लगाते हैं, मोटरगाड़ियों से चलते हैं, मोबाइल व कंप्यूटर इस्तेमाल करते हैं जो विज्ञान के ही आविष्कार हैं. Creation Of Universe