लेखक-रोहित 

युवा सरकारी नौकरी का लालच सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे ज्यादातर ऐसे सक्षम युवा हैं जिन्हें संभव है कि सीट की कमी और सरकारी कुव्यवस्था के चलते सरकारी नौकरी नहीं मिलने वाली, लेकिन परिवार की एक बड़ी पूंजी अभी तक वे इन तैयारियों में उम्मीद के सहारे खर्च कर चुके हैं. ऐसे में प्रतियोगी युवाओं का भविष्य अंधकार में गहराता जा रहा है. ये वे युवा हैं जो सबकुछ दांव पर लगा कर एक अनिश्चित भविष्य की तरफ बढ़ रहे हैं. अक्तूबर 2017, वर्ल्ड इकोनौमिक फोरम की इंडिया इकोनौमिक समिट में उद्योग जगत के नामी लोगों ने देश में बढ़ती बेरोजगारी की स्थिति पर पहली बार मोदी कार्यकाल में खुल कर चिंता जताई थी. यह चिंता ऐसे समय में आई थी जब प्रधानमंत्री मोदी और उन की सरकार नोटबंदी की झूठी सफलता की कड़वी रेवडि़यां देश में बांटे जा रहे थे.

उस दौरान तमाम अर्थशास्त्री नोटबंदी को देश की अर्थव्यवस्था के लिए घातक बता रहे थे लेकिन प्रधानमंत्री पर मानो बहुमत का नशा सवार था. हैरानी यह कि देश के उद्योगपति जब रोजगार की स्थिति पर चिंता जता रहे थे तब उसी समिट में देश के रेल मंत्री पीयूष गोयल उसे ‘अच्छा संकेत’ कह रहे थे. वे कह रहे थे, ‘सचाई यह है कि आज का युवा नौकरी तलाश करने की होड़ में नहीं है. वह नौकरी देने वाला बनना चाहता है. आज देश का युवा उद्यमी बनना चाहता है जो एक अच्छा संकेत है.’ बेरोजगारी को ‘अच्छा संकेत’ कहने वाले पीयूष गोयल के पास अपनी बात का ही कोई आधार न था. उसी समय कई रिपोर्टें बता रही थीं कि जो थोड़ेबहुत लोग यदाकदा भी छोटामोटा उद्यम खोल लिया करते थे उन की स्थिति भी बदहाल होने को है. लेकिन यह बात सरकार के पल्ले नहीं पड़ी या वह इस बारे में सोचना भी नहीं चाहती थी. ऐसा शायद इसलिए भी क्योंकि देश के मुखिया ही रोजगार के नाम पर पढ़ेलिखे नौजवानों को पकौड़े तलने की नसीहत दे चुके थे. 2019 के आम चुनाव से पहले जब माहौल अर्थव्यवस्था, रोजगार व महंगाई को ले कर गरम हुआ और सरकार बुनियादी मुद्दों पर घिरने लगी तो भाजपा ने अंधराष्ट्रवाद और धार्मिक उन्माद को अपना हथियार बनाया.

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