उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने लाइसेंसी असलहों पर लगी रोक हटा कर समाज में ’गन कल्चर’ को बढ़ाने वाला काम किया है. आंकड़े बताते हैं कि आत्मरक्षा के नाम पर खरीदे जाने वाले असलहे का ज्यादातर प्रयोग आत्महत्या के लिये ही किया जाता है. इससे समाज में अपराध भी बढेगा.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के सबसे पौश सहारा गंज मौल के बेसमेंट में एक वाशिंग सेंटर है. जहां पर कार की धुलाई होती है. स्कार्पियो गाड़ी में धुलाई के समय डैशबोर्ड पर रिवाल्वर रखी दिखी. सफाई करने वाले कर्मचारियों ने रिवाल्वर से खेल खेलना शुरू किया. रिवाल्वर लोडेड थी. उसके हाथ से चल गई. जिससे दूसरा साथी घायल हो गया. राजधनी लखनऊ की ही दूसरी घटना है जिसमें पुलिस विभाग से सिपाही ने रात में कार न रोकने वाले विवेक तिवारी को रिवाल्वर से गोली मार दी. जिससे विवेक की मौत हो गई. उत्तर प्रदेश के अलग अलग शहरों में ऐसी घटनाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है. जहां लाइसेंसी असलहों से ऐसी घटनायें घट रही हैं.

कई मामलों में यह देखा गया है कि घर में रखे लाइसेंसी असलहे आत्महत्या करने के रास्ते बन गये. एक लड़के ने अपने पिता के रिवाल्वर से खुद को गोली मार ली. आत्महत्या करने के तरीकों में रिवाल्वर से गोली मारने की घटनायें सबसे अधिक हो रही हैं. रिवाल्वर को पकड़ कर खुद को गोली मारना सरल होता है. यह सवाल भी उठ रहे हैं कि आत्मरक्षा के लिये खरीदे जाने वाले असलहे आत्महत्या के काम आ रहे है. उत्सवों के दौरान होने वाली फायरिंग में सबसे अधिक दुर्घटनायें उत्तर प्रदेश में ही घटी हैं. इन घटनाओं के बढ़ने से ही शस्त्र लाइसेंस पर रोक लगा दी गई थी.

दबगंई की फितरत :

उत्तर प्रदेश की राजधनी लखनऊ से लगे मल्हौर और जुग्गौर गांव में खेती की जमीन खत्म हो चुकी है. किसानों ने अपनी जमीन आवासीय प्लाट बनाने वालों को बेच दी. कई अमीरों ने यहां फार्म हाउस खोलने के लिये जमीन ले ली है. ऐसे में इन गांवों में जमीन की कीमत ऊंची हो गई है. 60 से 80 लाख रूपये बीघे की दर से खेत बिकने लगे हैं. खेत बेचने के बाद सबसे पहले बन्दूक की खरीद्दारी होती है. इसके बाद चार पहिया वाहन और पक्का मकान बनता है. लखनऊ ही नहीं उत्तर प्रदेश के बाकी गांवों की भी यही कहानी है. गांव ही क्यों शहरों में भी यही कहानी है. पैसा आने के बाद सबसे पहले बन्दूक खरीदने का चलन उत्तर प्रदेश में सबसे अलग है. यही वजह है कि देश भर में सबसे अधिक असलहे उत्तर प्रदेश में हैं.

अधिक से अधिक असलहे रखने की वजह दंबगई दिखाना होता है. कई कई लोग तो ऐसे हैं जिनके पास एक से अधिक असलहे पाये जाते है. लाइसेंसी असलहों को लेना सरल नहीं होता है. सबसे पहले सरकारी प्रक्रिया के नाम पर लंबा समय लगता है. इसके बाद रिश्वत भी देनी पड़ती है. इसके बाद भी यहां के लोग हर परेशानी उठाकर लाइसेंसी असलहा लेने की होड़ में लगे रहते हैं.

योगी सरकार ने जब शस्त्र देने पर लगी रोक को हटाया तो पूरे प्रदेश में खुशी की लहर दौड़ गई. ऐसा लग रहा था जैसे जनता इसका इंतजार ही कर रही थी. शायद यही वजह है कि दंबगों को खुश करने के लिये ही योगी सरकार ने यह फैसला किया है. असल में देखा जाये तो सबसे अधिक असलहे अगड़ों और पिछड़ों के पास ही हैं. समाजवादी पार्टी सरकार के समय पर सबसे अध्कि शस्त्र लाइसेंस दिये गये. इनमें भी जाति विशेष के लोगों की संख्या सबसे अधिक थी.

असलहों के मामले में विश्व स्तर पर छाया उत्तर प्रदेश :

आंकड़ों को देखें तो देश का हर तीसरा असलहा उत्तर प्रदेश में पाया जाता है. 12.72 लाख शस्त्र लाइसेंस उत्तर प्रदेश में हैं. जबकि पूरे देश में 33.69 लाख लाइसेंस हैं. उत्तर प्रदेश में बढ़ते हुये लाइसेंस को देखते हुये 2013 में कोर्ट ने नये शस्त्र लाइसेंस देने पर रोक लगा दी थी. इसके बाद भी 18 हजार शस्त्र लाइसेंस जारी हुये. उत्तर प्रदेश की मौजूदा योगी सरकार ने शस्त्र लाइसेंस पर लगी रोक को हटा लिया है. इसके बाद प्रदेश में शस्त्र लाइसेंस लेने की होड़ लग गई है. उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक शस्त्र लाइसेंस लखनऊ में हैं.

यहां पर 55476 लाइसेंस हैं. उत्तर प्रदेश के हर 200 लोगों में से एक के पास लाइसेंसी अस्त्र है. शादी-विवाह, जन्मदिन और दूसरे तमाम अवसरों पर अपनी खुशी को जाहिर करने के लिये सबसे अधिक फायरिंग उत्तर प्रदेश में होती है. इस में हर साल तमाम लोगों की जान जाती है. यही वजह है कि 2013 में कोर्ट ने नये शस्त्र जारी करने पर रोक लगा दी थी. योगी सरकार ने फिर से इस पर लगी रोक को हटा दिया है. जानकार लोग मानते हैं कि रोक हटने के बुरे परिणाम सामने आयेंगे. विश्व स्तर पर असलहों के गणित को देखें तो पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में जितने लाइसेंस हैं उसके आधे चीन जैसे देश में भी नहीं हैं.

उत्तर प्रदेश में भी तहजीब वाले शहर लखनऊ में सबसे अधिक असलहे हैं. 80 हजार शस्त्र लाइसेंस के आवेदन लंबित हैं. इसके बाद तो उत्तर प्रदेश में असलहों की संख्या और भी अधिक बढ़ जायेगी.

बढ़ेंगे अपराध :

अपराध और असलहों के बीच बहुत सीधा संबंध होता है. यही वजह है कि समाज को अपराध मुक्त करने की दिशा में चली बहस में लाइसेंसी असलहों को बंद करने पर भी चर्चा चली थी. 2013 में जब सुप्रीम कोर्ट ने शस्त्र लाइसेंस पर रोक लगाई तो उसकी वजह भी फायरिंग में लोगों के मरने की घटनायें थी. लखनऊ में पुलिस के सिपाही द्वारा विवेक तिवारी की हत्या में भी यह बात सामने आ रही कि गुस्से में सिपाही ने सीधे सिर पर गोली मार दी. अगर सिपाही के पास रिवाल्वर नहीं होती तो गोली मारना संभव नहीं था. ऐसे में यह बात साफ है कि अगर समाज को अपराधमुक्त करना है तो लाइसेंसी असलहे भी खत्म होने चाहिये.

सभ्य समाज में असलहों की जरूरत नहीं होनी चाहिये. असलहे आत्मरक्षा के नाम पर लिये जरूर जाते हैं पर बहुत कम ऐसे मामले देखे गये हैं जब वह आत्मरक्षा के काम आये हों. ज्यादातर असलहे दूसरों को धमकाने के ही काम आते हैं. लखनऊ के ही पौश इलाके में एक घर में डकैती पड़ी. डकैतों ने घर के 5 लोगों के हाथ पांव बांधकर बाथरूम में बंद कर दिया. उनके घर में 2 असलहे रखे रह गये किसी काम नहीं आये. डकैत बिना किसी असलहे के आये और पूरे घर को लूट कर चले गये. इलाहाबाद के प्रशांत गोली कांड में हमलावरों ने मरने वाले प्रशांत को अपनी कमर में लगा रिवाल्वर निकालने का मौका ही नहीं दिया. रिवाल्वर लगा होने के बाद भी प्रशांत अपनी रक्षा नहीं कर सका. ऐसे मामले तमाम हैं. इन घटनाओं से साफ पता चलता है कि लाइसेंसी असलहों से केवल दंबगई होती है. आत्मरक्षा नहीं हो पाती. यह असलहे आत्मरक्षा से अध्कि आत्महत्या के काम आते हैं. समाज को अपराध मुक्त करने के लिये लाइसेंसी असलहों को भी समाज से बाहर करने की जरूरत है. असलहे केवल सुरक्षा कर्मियों के पास ही होने चाहियें. तभी समाज से ‘गन कल्चर’ खत्म हो सकता है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...