डोसा किंग के नाम से मशहूर हुए राजगोपाल की कहानी बेहद दिलचस्प है. उन की कहानी से प्रेरणा भी मिलती है और सबक भी. प्रेरणा यह कि अगर आप ठान लें कि आप को जिंदगी में कुछ कर गुजरना है और इस के लिए जीजान से जुट जाएं तो कोई आप को रोक नहीं सकता. और सबक यह मिलता है कि अगर आप पंडे, पुजारियों, तांत्रिकों और ज्योतिषियों के जाल में उलझ गए तो उस से कोई आप को निकाल नहीं सकता, फिर आप उसी में छटपटा कर दम तोड़ने को मजबूर हो जाते हैं.

देश में ऐसे लोगों की भरमार है जो कामयाब तो होते हैं अपनी बुद्धि, मेहनत और लगन के चलते लेकिन इस का श्रेय देते हैं धर्म और उस के पाखंडों को क्योंकि उन के दिलोदिमाग में यह बात गहरे तक बैठी होती है कि आदमी तो निमित्त मात्र है, देता तो ऊपरवाला है और इस के लिए उस के नीचे बैठे दलालों की खुशामद करना जरूरी है.

हर किसी की ख्वाहिश अपार दौलत और शोहरत हासिल करना होती है.

उसे पूरा करने के लोगों के तौरतरीके अलगअलग होते हैं. लेकिन अधिकतर मामलों में वे भगवान से शुरू हो कर भगवान पर ही आ कर खत्म हो जाते हैं. धर्मग्रंथों में चमत्कारी किस्सेकहानियों की भरमार है जिन्हें देख लगता है कि अमीर बनने के लिए मेहनत की नहीं, बल्कि तांत्रिकों, पंडों, पुजारियों और ज्योतिषियों की ज्यादा जरूरत है, जो तरहतरह के उपाय बता कर यह सपना पूरा करा सकते हैं.

अंधविश्वासों के चक्कर में खुद का हो न हो लेकिन इन दुकानदारों का जरूर फायदा होता है जो कई बार अपने यजमान यानी क्लाइंट को ऐसी जगह ले जा कर छोड़ने से भी बाज नहीं आते जहां से हरेक रास्ता बरबादी की तरफ जाता है.

ये भी पढ़ें- तलाक: सामाजिक कलंक या एक नई शुरुआत

एक प्रेरणा एक सबक

पी राजगोपाल का जन्म साल 1947 में चेन्नई के नजदीक एक गांव पुन्नैयदी, जिस का नाम अब पुननई नगर है, में हुआ था. राजगोपाल के पिता किसान थे और प्याज की खेती करते थे. पर इस से 9 सदस्यों वाले परिवार को पेटभर खाना पूरी तरह नहीं मिल पाता था.

राजगोपाल महत्त्वाकांक्षी थे और मेहनती भी. लिहाजा, पैसा कमाने की गरज से वे स्कूली पढ़ाई छोड़ कर चेन्नई आ गए. यहां उन्होंने अपने गुजारे के लिए होटलों में क्लीनर का काम शुरू किया. यानी कपप्लेट धोने लगे, झूठे बरतन उठा कर, टेबलें साफ करने लगे. थोड़ा पैसा इकट्ठा हुआ तो उन्होंने किराने की एक छोटी सी दुकान अशोक नगर इलाके में खोल ली, जो चल निकली. फिर उन्होंने उसे डिपार्टमैंटल स्टोर की शक्ल दे दी.

मगर राजगोपाल इतने से संतुष्ट नहीं हुए. एक ज्योतिषी, जो अकसर उन की दुकान पर आता रहता था, की सलाह पर उन्होंने बंद होता एक रैस्टोरैंट खरीद लिया. अब तक व्यवसाय के बहुत से गुर सीख चुके राजगोपाल को समझ आ गया था कि ग्राहक पैसे देता है तो एवज में अच्छा खाना भी चाहता है. अपने रैस्टोरैंट में उन्होंने साफसफाई पर खास ध्यान दिया और अच्छे तेलमसालों का इस्तेमाल करना शुरू किया.

तब उन्होंने एक रुपए में भरपेट भोजन का फंडा चलाया था, जो शुरुआती दौर में तो उन्हें महंगा पड़ा लेकिन जल्द ही घाटे की जगह फायदा होने लगा. इस की कई वजहें थीं, मसलन साफसुथरा रैस्टोरैंट, स्वच्छता और कर्मचारियों के साथ दोस्ताना व्यवहार. जायकेदार खाना और लजीज डोसा तो वे परोसते ही थे.

70 के दशक में न केवल चेन्नई बल्कि पूरे दक्षिण भारत में छुआछूत चरम पर था. तब 4 वर्षों  बाद राजगोपाल ने केवल ब्राह्मणों के लिए एक शाकाहारी भोजनालय की शुरुआत की. यह भी चल निकला तो उन्होंने चेन्नई के केके नगर में सवर्णा भवन के नाम से पहला रैस्टोरैंट खोला.

उन दिनों पैसा कमाने के लिए राजगोपाल हाड़तोड़ मेहनत कर रहे थे. इसलिए उन्हें कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखना पड़ा. सवर्णा सफाई और गुणवत्ता का पर्याय माना जाने लगा. देखते ही देखते उन्होंने सवर्णा भवन की एक लंबीचौड़ी शृंखला खड़ी कर दी. चेन्नई में जिस किसी का मन घर से बाहर खाना खाने का होता था तो उस की पहली पसंद सवर्णा ही होती थी.

ज्यादा पैसा कमाने का जनून

राजगोपाल के लिए अब पैसों से ज्यादा अहम व्यवसाय को विस्तार देना हो चला था. वे एक जनून में जी रहे थे कि कैसे भी हो और भी ज्यादा पैसा कमाना है. लेकिन एक गलती वे हर बार कर रहे थे कि बिना अपने ज्योतिषी की सलाह के वे कुछ नहीं करते थे. सवर्णा के चेन्नई में 20 आउटलेट खुले और सभी खूब चलने लगे.

उन के रैस्टोरैंट का डोसा इतना मशहूर हो गया कि इस की धमक दिल्ली होते हुए विदेशों तक जा पहुंची. साल 2000 में राजगोपाल ने दुबई में अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय रैस्टोरैंट शुरू किया. इस की सफलता के बाद अमेरिका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया सहित 23 देशों में सवर्णा भवन कामयाबी के झंडे गाड़ने लगा. इन में खाड़ी के सभी प्रमुख देश शामिल हैं.

बचपन और किशोरावस्था में कौड़ीकौड़ी को मुहताज रहे राजगोपाल अब करोड़ोंअरबों में खेलने लगे. साल 2018 आतेआते उन का कारोबार 300 करोड़ रुपयों से भी ज्यादा का हो गया था.

जाने क्यों राजगोपाल यह मानने को कभी तैयार नहीं हुए कि अरबों की बादशाहत उन्होंने अपने दम पर खड़ी की है. उलटे, इस का श्रेय वे अपने ज्योतिषी और भगवान मुरुगा को देते थे. देश, विदेश के सभी सवर्णा भवनों के काउंटर्स और होटलों में उन के ज्योतिषी और मुरुगा की भव्य तसवीरें जरूर होती थीं. ज्योतिषी की सलाह पर ही वे मंदिरों में दिल खोल कर दान देते थे और, और पैसा आने की वजह भी इसी दानपुण्य को मानने लगे थे.

इस में कोई शक नहीं कि वे अपने कर्मचारियों का पूरा खयाल रखते थे और उन्हें बाजार से ज्यादा पगार व सहूलियतें देते थे. चिकित्सा सुविधा, बच्चों की पढ़ाई और शादी के लिए अलग से पैसे देने के अलावा कर्मचारियों को घर बनाने को भी पैसा या किराया वे देते थे. चूंकि खुद गरीबी भुगत चुके थे, इसलिए अपने कर्मचारियों का खास खयाल उन्होंने रखा. कोई भी छोटाबड़ा कर्मचारी उन से सीधे मिल कर अपनी बात कह सकता था. इसी खूबी के चलते सवर्णा भवन के कर्मचारी उन्हें अन्नाची यानी बड़ा भाई कहते थे और पूरी ईमानदारी व मेहनत के साथ काम करते थे.

ये भी पढ़ें- छुट्टा सांड पंगा नहीं लेने का

हवस, अंधविश्वास और ज्योतिषी

राजगोपाल व्यवसाय में तो लगातार कामयाब हो रहे थे लेकिन उन का पारिवारिक जीवन सफल नहीं हो पाया. उन्होंने 2 शादियां कीं, लेकिन दोनों ही पत्नियों से उन की पटरी नहीं बैठी.

साल 2001 में राजगोपाल ने तीसरी शादी करने का फैसला ले लिया. इस की सलाह भी उन्हें उन के ज्योतिषी ने ही दी थी. बात बड़ी अंधविश्वासी और बेहूदी है कि ज्योतिषी ने शर्त यह रखी थी कि अगर वे दुनिया का सब से अमीर आदमी बनने का अपना सपना पूरा करना चाहते हैं तो उन्हें तीसरी शादी जीवाज्योति से करनी पड़ेगी.

जीवाज्योति उन के एक आउटलेट के एक सहायक मैनेजर की बेटी थी जो अपने बड़े भाई के गणित के टीचर, जिस का नाम प्रिंस शांताकुमार था, से प्यार करती थी. वह गई थी इस अन्नाची के पास पैसों की मदद मांगने जिस से वह और शांताकुमार अपनी ट्रैवल एजेंसी शुरू कर सकें. जैसे ही राजगोपाल ने 20 वर्षीया खूबसूरत कमसिन जीवाज्योति को देखा, तो वे उस पर लट्टू हो गए. उन के ज्योतिषी ने इस अधेड़ की वासना को भांपते कैसे भी हो उस से ही शादी करने की सलाह दे डाली. ज्योतिषी की सलाह पर ही वे सफेद कपड़े पहनने लगे थे और माथे पर चंदन का बड़ा टीका लगाने लगे थे.

राजगोपाल ने जीवाज्योति की मदद तो की लेकिन उस के सामने शादी की भी पेशकश कर डाली. तब राजगोपाल की उम्र 53 वर्ष थी और वे देखने में हट्टेकट्टे भी लगते थे. जीवाज्योति की जगह कोई भी लड़की होती तो तय है इस कामयाब अरबपति से शादी करने की बाबत हां कहने में एक सैकंड भी न लगाती, लेकिन, वह चूंकि शांताकुमार से प्यार करती थी, और दोनों शादी का भी फैसला कर चुके थे, इसलिए उस ने विनम्रतापूर्वक न कह दिया.

इस न को वासना की आग में जल रहे राजगोपाल बरदाश्त नहीं कर पाए और हाथ धो कर जीवाज्योति के पीछे पड़ गए. ज्योतिषी की सलाह पर उन्होंने जीवाज्योति पर काला जादू भी कराया और व्यक्तिगत स्तर पर नएनए प्रेमी की तरह उसे लुभाने के लिए गहने और महंगेमहंगे तोहफे भी भेजने लगे. लेकिन साम, दाम, दंड और भेद चारों काम नहीं आए तो राजगोपाल ने जीवाज्योति से शादी करने का एक खतरनाक फैसला न केवल ले लिया, बल्कि उस पर अमल भी कर डाला.

उस वक्त जीवाज्योति और शांताकुमार शादी कर चुके थे. राजगोपाल की हालत ‘डर’ फिल्म के शाहरुख खान की तरह हो गई थी जो पूरी फिल्म में नायिका जूही चावला को तरहतरह से डराता रहता है.

27 अक्तूबर, 2001 को राजगोपाल ने अपने कुछ विश्वसनीय कर्मचारियों की मदद से जीवाज्योति और शांताकुमार को अगवा कर डाला. फिर 31 अक्तूबर को शांताकुमार की लाश कोडैकनाल स्थित टाइगर सैल के जंगल में मिली. विधवा हो गई जीवाज्योति ने अपने पति की हत्या का जिम्मेदार राजगोपाल को ठहराते कानूनी कार्यवाही शुरू की तो साल 2004 में चेन्नई की एक निचली अदालत ने उन्हें और उन के 8 सहयोगियों को 10 साल की सजा सुना दी.

राजगोपाल अब तक ज्योतिषी के प्रताप और पैसों व अपने रसूख के गरूर में थे, लेकिन सजा का फैसला सुनते ही उन के पैरोंतले जमीन खिसक गई. उन्होंंने मद्रास हाईकोर्ट में अपील की. लेकिन हुआ उलटा. 2009 में हाईकोर्ट ने उन की 10 साल की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया.

हालांकि इस दौरान सवर्णा भवन की आमदनी और कारोबार पर कोई फर्क नहीं पड़ा लेकिन सुप्रीम कोर्ट गए राजगोपाल को उस वक्त करारा झटका लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने भी उन की सजा बरकरार रखते उन्हें इसी साल मार्च में आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया.

बीती 7 जुलाई को राजगोपाल स्टै्रचर पर सुप्रीम कोर्ट यह आस लिए पहुंचे थे कि शायद सुप्रीम कोर्ट रहम खा कर उन्हें जमानत और मुहलत दे दे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. आखिरकार, 18 जुलाई को चेन्नई में ही उन की मौत हो गई. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उन के बेटे सरवनन की यह अपील मान ली थी कि उस के पिता को सरकारी अस्पताल के बजाय प्र्राइवेट अस्पताल में इलाज कराने की इजाजत दी जाए.

खुली ज्योतिष की पोल

पी राजगोपाल की जिंदगी की कहानी वाकई फिल्मों सरीखी है जिस में एक गरीब किसान का बेटा शहर आया और अपनी मेहनत के दम पर अरबपति बन गया. वह कू्रर नहीं था लेकिन जिस ज्योतिष और ज्योतिषी को वह अपनी सफलता का श्रेय देता रहा आखिरकार उन्होंने ही उसे मौत के मुंह में धकेल दिया.

क्यों उन के ज्योतिषी ने उन्हें यह नहीं बताया कि उन के हाथों हत्या जैसा जघन्य अपराध होगा और वे जेल भी जाएंगे? क्यों ज्योतिषी उन्हें यह नहीं बता पाया कि जीवाज्योति से उन की शादी नहीं हो पाएगी फिर भले ही लाख जादूटोना वे कर लें? और क्यों किसी ज्योतिषी ने उन्हें यह भी नहीं बताया कि उन की पहली दोनों शादियां असफल होंगी?

राजगोपाल वासना से ज्यादा अंधविश्वास का शिकार थे. इस का भी फायदा उठाने में उन के ज्योतिषी ने कोई चूक नहीं की और जीवाज्योति के प्रति उन की वासना भड़का कर खूब पैसा ऐंठा. जिंदगीभर राजगोपाल अपनी गाढ़ी कमाई का बड़ा हिस्सा ज्योतिषी की सलाह पर दान करते रहे. मुमकिन है इस में भी ज्योतिषी का मंदिरों के पंडों और प्रबंधन से कमीशन बंधा रहा हो.

ये वही ज्योतिषी हैं जो इस जन्म के साथ अगले और पिछले जन्मों के बारे में बताने का भी दावा करते हैं. इन त्रिकालदर्शियों का राज पूरे देश में है. इन की गिरफ्त में झुग्गीझोंपड़ी वालों से ले कर देश के रईस घराने तक हैं. राजगोपाल इन के बिछाए जाल से खुद को बचा कर नहीं रख पाए तो यह एक सबक है कि ज्योतिष में कोई दम या सचाई होती तो उन्हें हत्या न करनी पड़ती, मुकदमा नहीं लड़ना पड़ता और जेल भी नहीं जाना पड़ता.

दान की गई अपार राशि अगर राजगोपाल अपने व्यवसाय विस्तार में लगाते तो तय है देश के रईसों में भी शुमार हो सकते थे. लेकिन ज्योतिष और अंधविश्वासों के मकड़जाल में फंसे वे जिंदगीभर छटपटाते रहे और कभी उन्हें सुकून नहीं मिला.

उन के ज्योतिषी का कुछ बिगड़ेगा, ऐसा लग नहीं रहा, क्योंकि किसी का ध्यान इस तरफ नहीं जा रहा कि उन्होंने तमाम काम उसी की सलाह पर किए, इसलिए उसे भी सहअभियुक्त बनाया जाए, ताकि कानूनीतौर पर भी ज्योतिष का पाखंड उजागर हो सके. लेकिन जब हर कोई आंख बंद कर ज्योतिषियों पर भरोसा करता है तो तय है अंधविश्वास और ग्रहनक्षत्रों का बाजार फलताफूलता रहेगा और कहीं कोई नया पी राजगोपाल इन धूर्त, चालाक और पाखंडियों का शिकार बन रहा होगा.

ये भी पढ़ें- अदालतों से मांगें हिंदू औरतें तुरंत तलाक

यहां संजय दत्त अभिनीत चर्चित फिल्म ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ का वह अंतिम दृश्य उल्लेखनीय है जिस में ज्योतिषी बने सौरभ शुक्ला पर संजय दत्त रिवौल्वर तान कर पूछता है कि बता, अगले पल तेरा क्या होने वाला है. इस पर सौरभ शुक्ला मान लेता है, उस का यजमान कुलभूषण खरबंदा और फिल्म के तमाम किरदारों सहित दर्शक भी मान लेते हैं कि ज्योतिष बकवास है.

लेकिन, क्या आम लोग इस सच को स्वीकारने की हिम्मत दिखाएंगे?

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...