कोई भी पर्व अगर सार्वजनिक रूप से मनाया जा रहा है तो इस में देखा जाता है कि जो दानदाता जितना बड़ा होता है उसे उतना ही महत्त्व दिया जाता है. गणेश के दरबार में माथा नवाने वाले लोग ‘आस्था’ के कारण नहीं अपनी जेब की ताकत पर सम्मान पाते हैं.
चंदा या हफ्ता वसूली : इस को मनाने वाले सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल के कार्यकर्ता अपनेअपने इलाके में रहने वाले लोगों से चंदा मांगने जाते हैं तो वे चंदा देने वाले के अनुसार नहीं अपने अनुसार चंदे की धनराशि देने की मांग करते हैं. कोई विरोध करता है तो कहते हैं कि हम ने यह तय किया है कि कम से कम सब से 201 रुपए लेने हैं और इतना चंदा देना तो जरूरी है.
मंडप के लिए लाखों की धनराशि खर्च करना ही इस पर्व का मकसद है. मुंबई के छोटे से छोटे गणेशोत्सव मंडल के मंडप पर 30 से 35 हजार रुपए खर्च होते हैं. बड़े मंडपों के लिए तो 20 से 25 लाख रुपए खर्च कर दिए जाते हैं. सजावट व भव्य मंडप को दिखा कर गणेश भक्तों के बीच तो झूठी आस्था दिखाई जाती है, उस से यही लगता?है कि इस महापर्व में पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है.
पर्व की आड़ में पैसे कमाने वाले अपनी जेबें गरम करने का एक भी मौका नहीं चूकते. मंडल गणेशोत्सव के मौके पर स्मरणिका, बैनर, पोस्टर, पत्रक आदि प्रकाशित करवाते हैं.
पूजा की सामग्री में भी होती है ठगी : माथा नवाने आने वाले भक्तों को दुकानदार जी भर कर ठगते हैं. 10 दिन के इस पर्व में लगभग हर वस्तु के दाम दो तीन गुने हो जाते हैं. हर दिन लगभग 350 टन मेवा, 30 लाख नारियल, 25 ट्रक फूल तथा भारी मात्रा में फलों की बिक्री होती है. लगभग 5 लाख जनेऊ, 30 लाख पान की बिक्री मनमानी दर पर होती है, क्योंकि भावताव करने का वक्त किसी के पास नहीं होता. अकेले मुंबई में लगभग 50 करोड़ रुपए गणेश की मूर्तियों पर खर्च किए जाते हैं.
मुंबई से लगभग 85 किलोमीटर दूर स्थित रायगढ़ गणेश मूर्ति निर्माण की राजधानी है. यहां गणेश मूर्ति का निर्माण उद्योग का रूप ले चुका है. सुंदर मूर्ति बनाना यहां के मूर्तिकारों की खास पहचान बन गई है. यहां हर गली में गणेश मूर्ति निर्माण के कारखाने हैं जिन में लगभग 25 हजार गणेश मूर्तियों का निर्माण गणेशोत्सव के दौरान होता है. इन कारखानों में लगभग 15 हजार लोग काम करते हैं. यहां बनी मूर्तियों की मुंहमांगी कीमत भी मिल जाती है.
आभूषण बाजार में तेजी : गणेशोत्सव के दौरान मन्नत मांगने वाले भक्त गणेश को आभूषण अर्पित करते हैं. कोई कुंडल तो कोई मुकुट और कोई हार अर्पित करता है. आभूषण अर्पित करने वाले धनाढ्य भक्त को लगता है कि आभूषण प्राप्त करने से गणेश ज्यादा प्रसन्न होते हैं.
विशाल मूर्ति, विशाल खर्च : आस्था के पर्व को स्पर्धा में बदलने वाले सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडलों को फिक्र है तो सिर्फ एकदूसरे से आगे निकलने की. चाहे उस के लिए उन्हें करोड़ों की धनराशि ही क्यों न खर्च करनी पड़े.
महापौर का सुझाव : पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से महापौर का यह सुझाव कि गणेश मूर्ति के विसर्जन से पर्यावरण प्रभावित होता है, लेकिन महापौर के फरमान को उन्हीं की पार्टी शिवसेना के उद्धव ठाकरे ने सिरे से खारिज कर दिया है और साथ ही अपनी प्रतिक्रिया में कहा?है कि अगर विशाल गणेश मूर्तियों को समुद्र में विसर्जित करने से पर्यावरण को हानि पहुंचती हो तो मुंबई में बनाई गई गगनचुंबी इमारतों को ध्वस्त करवा दिया जाए और साथ ही यह भी घोषणा की जाए कि मुंबई में भविष्य में कोई टावर नहीं बनाया जाएगा.
इस बारे में मुंबई आई.आई.टी. के पर्यावरण विज्ञान और अभियांत्रिकी केंद्र के प्रमुख डा. श्याम आसोलेकर का कहना है कि गणेश मूर्ति के विसर्जन के बाद मूर्ति से निकलने वाले ‘रंग’ से पानी प्रदूषित होता है. इस पानी को वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में शुद्ध भी किया जा सकता है.
प्लास्टर आफ पेरिस समुद्र के पानी में घुलता नहीं है. इस कारण इस से मूर्ति पानी में पूरी तरह डूबती नहीं है. भारी पैमाने पर समुद्र में एकत्र चिकनी मिट्टी समुद्र के कीड़ेमकोड़ों के लिए घातक सिद्ध होती है. दूसरी तरफ कागज से बनी मूर्तियों को समुद्र में विसर्जित करने पर समुद्र में लुगदी बन जाती है, जिस से पानी का बहाव रुक जाता?है. इस तरह मूर्ति चाहे कोई भी हो, उसे नदी या समुद्र में विसर्जित करना परेशानी का कारण ही बनता है.
राज्य में पानी के प्रदूषण को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट की एक समिति ने 2003 में बहुत ही तटस्थ भूमिका अपनाई थी. महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मनपा, नगर पालिका तक पहुंचा दिया, पर गणेश मूर्तियों के विसर्जन की उचित व्यवस्था न किए जाने से विसर्जन का सिलसिला जारी रहा.
महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति ने हाईकोर्ट को औरंगाबाद की खंडपीठ के समक्ष मूर्ति मिट्टी की हो तथा उन्हें वनस्पति या पोस्टर रंग से रंगा जाए, इस मसले की एक जनहित याचिका दायर की थी. कुल मिला कर यही कहा जा सकता है कि गणेश की मूर्तियों को समुद्र या तालाब में विसर्जित करने में हमारी जलसंपदा प्रदूषित हो रही है. जलसंपदा को प्रदूषित होने से बचाने के लिए स्कूली विद्यार्थियों की हरित सेना जन आंदोलन से संबंध स्वरूप संस्था, मीडिया सभी अपने स्तर पर कार्य कर रहे हैं.