‘‘देखो या तो तुम मेरी बात को समझ नहीं पा रहे हो या फिर जानबूझ कर अनजान बनने की कोशिश कर रहे हो. तुम्हें तो पता ही है कि इस उम्र में भी छोटीछोटी बातों को ले कर बीजी मुझ से झगड़ा करती हैं. बातबात पर टोकना तो जैसे उन की आदत सी हो गई है. अब तुम ही बताओ कि मैं क्या कोई दूध पीती बच्ची हूं जो हर समय मुझ से टीकाटिप्पणी की जाती रहे. आखिर बीजी मेरे साथ सौतेला व्यवहार क्यों करती हैं.

‘‘हमारी शादी को लगभग 20-22 साल हो चुके हैं. 3 बच्चों की मां हूं मैं. बड़ा बेटा शादी के लायक हो चुका है. इन सब के बावजूद मुझे ऐसा लगता है कि जैसे मैं इस घर की बहू नहीं मात्र एक नौकरानी हूं. यहां तक कि मेरे सारे गहने भी उन्होंने अलमारी में बंद कर रखे हैं.

‘‘कहीं आनाजाना हो तो पहले उन की मिन्नतें करो या फिर बिना गहनों के ही विधवाओं की तरह जाओ. मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता. आखिर बरदाश्त करने की भी कोई सीमा होती है.’’ ज्योति ने पति मंजीत से कहा.

पत्नी की बात सुन कर कुछ समय के लिए मंजीत गंभीर हो गया था पर वह ज्योति को कोई ठोस जवाब नहीं दे सका था. वह भी अच्छी तरह जानता था कि ज्योति जो कह रही है वह सही तो है पर वह अपनी मां सुरजीत कौर के स्वभाव से अच्छी तरह वाकिफ था.

वह पुराने विचारों की शक्की महिला थीं. बहू ज्योति को वह अपने हिसाब से चलाना चाहती थीं. पर ज्योति की कुछ बातें उन्हें पसंद नहीं थीं. इसलिए ज्योति भी सास को पसंद नहीं करती थी. मंजीत अपनी मां के सामने जुबान नहीं खोल पाता था. या इस तरह कहें कि वह इस मामले को ले कर घर में क्लेश नहीं करना चाहता था. इसीलिए ज्योति उस से जब भी मां की शिकायत करती तो वह हर बार उस की बातों को टाल जाता था.

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