42  साल की प्रीति एक प्राइवेट स्कूल में प्रधानाचार्या की हैसियत से काम करती है. उस के पति भी शहर के नामी बिजनेसमैन हैं. घर में पतिपत्नी ही हैं. बच्चे हुए नहीं और सासससुर गांव में रहते हैं. ऐसे में प्रीति को महीने के उन 4 दिनों में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. परेशानी भी ऐसी जिस की वजह वह खुद और उस की अंधविश्वासी सोच है.

दरअसल प्रीति ने बचपन से ही अपनी मां ,चाची, बुआ वगैरह को पीरियड्स के समय बहुत सारे नियमकानूनों का पालन करते हुए देखा था. मसलन किचन और मंदिर में न घुसना, बिस्तर पर न सोना, पौधों को पानी न देना, पति को न छूना आदि. इन दिनों प्रीति घर का कोई काम नहीं करती और खाना भी बाहर से मंगाती थी.

हद तो तब हो गई जब एक दिन पीरियड्स के समय ही वह बाथरूम में गिर पड़ी. उस के सिर में चोट लग गई और वह दर्द से चीख पड़ी. पति दौड़े आए मगर अंधविश्वास में जकड़ी प्रीति ने उठने के लिए पति का हाथ नहीं पकड़ा. ऐसा करने से वह पति को छू देती और दकियानूसी नियमों की फेहरिश्त में एक नियम पति को न चूना और करीब न जाना भी शामिल था.

नतीजा यह हुआ कि प्रीति बहुत देर मशक्कत करने के बाद उठ पाई और तब तक उस के सिर से काफी खून बह चुका था.

पीरियडस होना एक स्वाभाविक शारीरिक प्रक्रिया है मगर अंधविश्वासी काढ़े में लपेट कर इस सुखद प्रक्रिया को भी बहुत कष्टकारी और शर्मिंदगी भरा बना दिया जाता है. आश्चर्य तब होता है जब अंधविश्वास की चपेट में पढ़ीलिखी शहरी महिलाएं भी आ जाती है. घर में सास का हुक्म चलता है तब तो बात समझ में आती है. मगर आलम यह है कि बहुत सी इंडिपेंडेंट अकेली रह रही महिलाएं भी ऐसे चोंचलों को मानती हैं और बेवजह परेशानियां सहती है.  यानी उन के लिए ऐसा करने की बाध्यता नहीं, फिर भी वे ऐसा कर रही हैं. आइये गौर करते हैं अकेली या केवल पति के साथ रह रही महिलाएं जब इन मान्यताओं को निभाती हैं तो उन्हें कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है;

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