पक्षियों के चमत्कारिक संसार में एक से बढ़ कर एक अचरज भरी बातें हैं. ये रंगबिरंगे पक्षी अपने अंडों और चूजों के उचित पालनपोषण और संरक्षण के लिए खूबसूरत और कलात्मक घोंसले बनाते हैं, जो इन के लिए सुरक्षित आश्रय स्थल होते हैं. ये घोंसले जहां सर्प, अजगर और रेंगने वाले अन्य शिकारी जीवों से इन की रक्षा करते हैं, वहीं इन में पक्षी निश्चिंत हो कर अपने अंडे दे सकते हैं तथा उन अंडों को सेने की प्रक्रिया पूरी कर सकते हैं.

प्रत्येक जाति का पक्षी अपनी आवश्यकता और सुविधा के अनुसार अपना घोंसला बनाने की जगह का चुनाव करता है. पिंगल (एक तरह का बंदर), कृकल और स्वर्णचूड़ (मुरगा) जैसे वनवासी पक्षी मैदानों में नहीं मिल सकते. इसी तरह सारंग, चपलाखु और धानीमूष जैसे मैदानी पशुपक्षी कभी जंगल में नहीं मिलेंगे. पक्षियों के घोंसलों की कई किस्में देखने को मिलती हैं, ऊबड़खाबड़ घोंसले, कप के आकार के घोंसले, पेड़ पर लटके हुए घोंसले, पेड़ की घनी पत्तियों व तनों, पुराने भवनों, खंडहरों तथा नदी के किनारे रेत में बने घोंसले. कुछ पक्षी अंडे देने से कुछ समय पहले ही घोंसले बनाते हैं तथा वहीं रहते हैं. उस के बाद वे दूसरी जगह उड़ जाते हैं.

जो पक्षी वर्षा के पहले घोंसले बनाते हैं वे अकसर घास वाले, सपाट मैदान का चुनाव करते हैं. वर्षा के कारण जब जमीन पर कीड़ेमकोड़े, इल्ली आदि पैदा हो जाते हैं, कुछ पक्षी तब अंडे देते हैं. वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि उन के बच्चों के लिए आसानी से भोजन उपलब्ध हो सके. गिद्ध, चील, बाज आदि पक्षी (जो अपने शिकार पर अचानक आक्रमण करते हैं) ठंड के मौसम में अंडे देते हैं तथा वसंत ऋतु तक उन के बच्चे उड़ने लायक हो जाते हैं.

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