धनबाद (झारखंड) के सरायढेला में गत सोमवार एक बहुत ही दिलचस्प नजारा देखने को मिला. नारीशक्ति के बैनर तले करीब 50 ग्रामीण महिलाओं ने वहां के 5 गांवों में अवैध शराब बिक्री के खिलाफ अभियान चलाया. जुलूस निकाल कर शराब के खिलाफ नारेबाजी की. इसी दौरान एक झोंपड़ी में बिक रहे देशी शराब के पाउच नष्ट करने के बाद उन्होंने शराब पीने वालों की पिटाई कर उन का नशा उतारने का काम भी किया. महिलाओं की भीड़ और तेवर देख कर शराबियों की भीउ़ तितरबितर होने लगी. जान बचा कर वे इधरउधर भागने लगे मगर महिलाओं ने दौड़दौड़ा कर उन्हें मारा.

जुलूस का नेतृत्व पुष्पादेवी, बेबी देवी, उर्मिला देवी, मंजू देवी और मालती देवी वगैर कर रही थीं. इन में वे महिलाएं भी शामिल थीं, जिन्हें नशे के कारण अपने परिजनों को खोना पड़ा था. सच है, स्त्री चाहे तो हर बुराई से लड़ सकती है. शराब तो वैसे भी एक ऐसी बुराई है, जो कहीं न कहीं स्त्री के जीवन को ही तबाह करता है. भले ही शराब पीने का आदी पुरुष हो या फिर स्त्री स्वयं.

एक वैश्विक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि भारत में अल्कोहल की खपत बीते 20 सालों में 55% बढ़ गई है. चिंता की बात तो यह है कि सब से ज्यादा युवा वर्ग ही नशे की चपेट में आ रहा है, वहीं महिलाएं भी इस फेहरिस्त में अपनी जगह बनाती दिख रही है. पैरिस की संस्था, ओईसीडी की हालिया प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार 40 राष्ट्रों में भारत का तीसरा स्थान रहा. इन के अलावा चीन, इजराइल और ब्राजील भी अग्रणी हैं.

इस रिपोर्ट की मानें तो पीने की आदत युवाओं और महिलाओं में चमत्कारिक रफ्तार से बढ़ रही है. रिपोर्ट कहती है कि कम उम्र में ही देश के युवा लड़के लड़कियां पीने की लत का शिकार हो रहे हैं. आंकड़ों की बात करें तो 15 साल से कम उम्र के लड़कों में कभी न पीने वालों का प्रतिशत 44% से घट कर 30% व लड़कियों का 50% से घट कर 30 फीसदी रह गया है.

सेहत के लिए शत्रु के समान है शराब

तुलसी हेल्थ केयर के डायरेक्टर डॉक्टर गौरव गुप्ता कहते हैं कि अल्कोहल एक विषैला पदार्थ है. अगर इस का सेवन कम मात्रा में किया जाए तो भी यह हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है क्योंकि यह लिपिड (वसा) को घोलने का काम करता है. नियमित रूप से थोड़ी मात्रा में भी अलकोहल का सेवन (महिलाओं के लिए एक ड्रिंक और पुरुषों के लिए 2 ड्रिंक्स प्रतिदिन) कोशिका भित्ती में लिपिड को घोल देता है या विघटित कर देता है और कोशिका में प्रवेश कर उन्हें नष्ट कर देता है इस के साथ ही पास स्थित कोशिकाओं की संरचना को भी क्षति पहुंचाता है. अल्कोहल को शरीर में स्टोर भी नहीं किया जा सकता. इसलिए शरीर इस को मेटाबोलाइज करने के लिए अधिक तेजी से कार्य करता है और इस प्रक्रिया में शरीर में संग्रहित बहुत सारे विटामिनों और मिनरलों का उपयोग हो जाता है, जिस के कारण पोषक तत्त्वों की अत्यधिक कमी हो जाती है.

विटामिन बी और फोलेट की कमी के कारण एंगजाइटी, डिप्रेशन, हृदय और तंत्रिकाओं से संबंधित समस्याएं हो जाती हैं. पोटेशियम और मेग्नेशियम की कमी के कारण कमजोरी, थकान और भूख न लगने की समस्या हो जाती है. अल्कोहल के कारण मुंह, ओरोफैरिंग्सय, लीवर, इसोफेगस और स्तन कैंसर हो सकता है. इस के कारण डिपेंडेंस सिंड्रोम, सिरोसिस, पैंक्रियाटाइटिस (एक्यूरट और क्रानिक), गैस्ट्री टिस, मेंटल ब्लैक आउट, गुर्दे कमजोर पड़ना, पालीन्युरोपैथी, हेमरेजिक स्ट्रोप, साइकोसेस, मिर्गी के दौरे और दूसरी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं हो जाती हैं.

यही नहीं, अलकोहल व्यक्ति के सोचनेसमझने की क्षमता भी कम कर देता है. शराब के नशे में इंसान ऐसे काम कर जाता है, जिन के लिए बाद में सिवा पछतावे के कुछ हासिल नहीं होता. मारपीट, हत्या, रेप, रैश ड्राइविंग जैसे ज्यादातर कारनामे नशे की हालत में ही होती है. सिर्फ पुरुष ही नहीं, स्त्रियां भी इस मामले में कम नहीं. हाल ही में चंडीगढ़ में नशे में धुत्त 2 लड़कियों ने 1 घंटे तक बवाल बचाया. बाद में पुलिस ने हिरासत में ले कर मेडिकल जांच करवाई तो पता चला कि उन्होंने शराब पी रखी थी.

एक बार शराब या नशे की आदत लग जाए तो फिर वह आसानी से छूटती नहीं और इंसान इस के जुनून में खौफनाक कदम भी उठा बैठता है. इस 24 मई को देहरादून के 22 वर्षीय आशुतोष ने महज इस वजह से फांसी लगा कर खुदकुशी कर ली, क्योंकि उस की मां ने नशे के लिए उसे रुपए नहीं दिए थे.

एक बहुत ही लोकप्रिय उक्ति है, ‘पहले आदमी शराब पीता है, फिर शराब शराब को पीती है, और आखिर में शराब आदमी को पी जाती है.’ यह वो आदत है जो आदमी के शरीर और दिमाग को ही खोखला नहीं करती वरन उस के कैरियर और सामाजिक व पारिवारिक संबंधों को भी बुरी तरह से प्रभावित करती है. इन लोगों के शरीर में ऐसे रसायन विकसित हो जाते हैं, जिन की वजह से एक बार शराब पीने के बाद वे बारबार शराब पीने को मजबूर होते हैं, इस रसायन का नाम है, ‘टेट्राहाइड्रो आइसोक्वीनोलिन’.

ऐसी बात नहीं कि आदतन शराब पीने वाले लोग इस के दुष्परिणामों से अवगत नहीं होते, मगर शराब उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से इस कदर अपना गुलाम बना लेता है कि वे अपना अच्छाबुरा सोचने की ताकत खो देते हैं. व्यक्ति कई कारणों से शराब पीने की आदत को अपनाता है, जैसे थकान मिटाने के लिए, तनाव या गम को हलका करने के लिए, बुरी संगत में रह कर या फिर इसे सामाजिक प्रतिष्ठा का सूचक मान कर. मगर ऐसा नहीं कि इस आदत से पीछा छुड़ाना असंभव हो. आज देश में विभिन्न स्वास्थ्य एवं चिकित्सा केंद्र हैं जो इस आदत को छुड़ाने में लोगों की मदद कर रहे हैं.

इन केंद्रों में रोगी को कुछ दिनों तक के लिए दाखिला दिया जाता है. इस दौरान उस की चिकित्सीय जांच, समुचित देखभाल और अन्य सर्वेक्षण किए जाते हैं. रोगियों के साथ व्यक्तिगत तथा सामूहिक रूप से निरंतर परामर्श किया जाता है और उन की मानसिक समस्याओं का गहराई से अध्ययन करते हुए उन्हें दूर करने का हर संभव प्रयास किया जाता हो. चिकित्सीय प्रक्रिया भले ही कुछ दिनों तक चले लेकिन कुल मिला कर यह एक लंबी प्रक्रिया है.

डा. गौरव गुप्ता कहते हैं, ‘इस आदत से पीछा छुड़ाने के लिए रोगी के साथसाथ उस के परिजनों का भी समान योगदान अपेक्षित है. अकसर देखा गया है कि शराब पीने वाले ज्यादातर लोग परिजनों की उपेक्षा के शिकार होते हैं और इस का मुख्य कारण है, उन के परिजनों का व्यवहार उन के प्रति सही नहीं होता. ऐसा कर वे उन्हें शराब पीने से रोकने के बजाए उन्हें और प्रेरित करते हैं. परिजनों को चाहिए कि शराब छुपाने और फेंकने का प्रयास न करें क्योंकि रोगी को इस बात का पता चलने पर वह क्रोधवश गलत कदम उठाएगा. रोगी को शराब न पीने पर भाषण या उपदेश न दें. यह ध्यान रखें कि रोगी इस के परिणामों से भलीभांति अवगत है. उस के साथ शराब पीने या उसे प्रेरित करने की गलती कतई न करें. साथ ही रोगी की उपेक्षा करने या उस से दूरदूर रहने के बजाए उस के साथ ओर अधिक सहानुभूति रखिए.’

वस्तुतः शराब छोड़ना बहुत सहज है, बस जरूरत है तो पारस्परिक सहयोग और समझबूझ की, गलत को गलत कहने और इस के खिलाफ आवाज उठाने की.

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