हरिद्वार में पंडेपुरोहित धर्म की आड़ ले कर ही सत्ता में बनाए अपने रसूख के चलते करोड़ों अरबों की जमीन कब्जाए बैठे हैं. दूसरों को त्यागी बनने और सुखों से वंचित रहने का उपदेश देने वाले इन फर्जी संतों का यह अवैध कारोबार देख कर तो यही लगता है कि यहां संत के भेस में भूमाफिया पल रहे हैं. पढि़ए नितिन सबरंगी की रिपोर्ट.

धार्मिक नगरी के रूप में मशहूर गंगा नदी के किनारे बसे हरिद्वार में धर्म के नाम पर साधुसंत महज धंधा ही नहीं करते बल्कि जमीनों पर अतिक्रमण व कब्जे का काम भी जम कर करते हैं. वे ऐसे दबंग भी नहीं कि हथियारों और लाठियों के बल पर जमीन कब्जाते हों. वे धर्म की आड़ ले कर भक्तों की ताकत व सत्ता में रसूख के बल पर ही अवैध काम करते हैं. गंगा के सीने में छेद कर के उस की सैकड़ों एकड़ जमीन को उन्होंने कब्जाया हुआ है. दूसरों को सांसारिक सुखों से दूर रहने की शिक्षा देने वाले खुद प्राकृतिक वातावरण व अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस हो कर जीवन का आनंद ले रहे हैं. नियमकायदों को सूली पर लटकाने के हुनर के ये बाजीगर भी हैं. सत्ताधारी नेता भी चूंकि संतों के दरबार में नतमस्तक होते हैं इसलिए सरकारी तंत्र बाबाओं के खिलाफ कार्यवाही की हिम्मत नहीं जुटा पाता. यदि कोई गुस्ताखी कर भी दे तो उसे सबक सिखाने का काम किया जाता है. धर्म के नाम पर ये दबंगई की ऐसी मिसाल कायम करते हैं कि हर कोई हैरान हो जाता है. उन की करतूतों को देख कर सोच का यह संतुलन भी अस्थिर हो जाता है कि ऐसे संतों को संत कहें या भूमाफिया?

कहते हैं संत वही जो परम सत्य को जान कर जनकल्याण करे, लेकिन कलियुग का सत्य यह है कि वे अब अपना मुनाफा पहले करते हैं. इस हकीकत से हम भी रूबरू हुए. धर्म के रथ पर सवार हो कर जमीनें कब्जाने, उन का व्यापार करने व गंगा की धारा को छेड़ने का कौशल देखने को मिला. गंगा किनारे बना है भव्य इमारत वाला परमार्थ आश्रम. इस आश्रम के अध्यक्ष हैं स्वामी चिन्मयानंद सरस्वतीजी महाराज. उन के सैकड़ों देशीविदेशी भक्त हैं. आश्रम स्वामी शुकदेवानंद ट्रस्ट द्वारा संचालित होता है. यों तो आश्रम के पास करोड़ों की वैध जमीन है जिस पर आश्रम भी बना है, लेकिन इतने से शायद काम नहीं चला.

गंगा की धार से जुड़ती सैकड़ों एकड़ रेतीली जमीन खाली पड़ी थी. पहले लोहे व कंकरीट से निर्मित पुलनुमा रास्ता आश्रम की तरफ से गंगा की धार तक बना कर अलग घाट बना दिया गया. इस स्थान का नामकरण कर के श्रीधर्म गंगाघाट नाम दे दिया गया. आश्रम के साथ ही आधुनिक सुविधाओं वाला एक निजी पक्का विश्राम स्थल भी बनाया गया जिस का नाम रख दिया गंगा धर्म कुटीर. यह पूरी की पूरी जमीन गंगा की है. जिस पर देखते ही देखते संत के भेस में भूमाफियाओं ने कब्जा कर लिया.

गंगा किनारे ऊंची बिल्डिंग के अलावा विदेशियों, पूंजीपतियों व वीआईपी भक्तों के ठहरने के लिए विदेशी अंदाज में कई आकर्षक कौटेज बना दिए गए. अच्छे किस्म के पेड़पौधे भी यहां लगाए गए. खेलनेकूदने व खुले में बैठने के लिए मैदान भी छोड़ा गया. यहां वीआईपी और विदेशी चेलेचपाटियां अकसर आ कर ठहरते हैं.

सामाजिक कार्यकर्ता जे पी बडोनी कहते हैं, ‘‘यही गंगा की दुहाई सब से ज्यादा देते हैं. धनाढ्य लोगों व विदेशियों को 6 हजार रुपए प्रतिदिन के हिसाब से कौटेज किराए पर दी जाती है.’’

यह स्थान आश्रम के बिलकुल पीछे की तरफ गंगा के तट पर है. प्राकृतिक माहौल के बीच यहां की भव्यता देखते ही बनती है. इस अवैध निर्माण की इजाजत सरकार से लेने की जरूरत शायद इसलिए नहीं समझी गई क्योंकि वह मिल ही नहीं सकती. फिर सभी इस मजबूत कलियुगी धारणा को जानते हैं कि कुछ भी करें, कोई देखने वाला नहीं है. देख भी लेगा तो कुछ कर नहीं पाएगा.

वहां कौन आताजाता है, इस का पता भी आश्रम के सिवा किसी सरकारी मशीनरी या बाहरी व्यक्ति को नहीं होता. गंगा के सीने पर अवैध जागीर के खुद को मालिक समझने वालों को झटका केदारनाथ में आई आपदा के बाद गंगा ने उफान पर आ कर दिया. गंगा का पानी अपनी असल जगह पर उफन कर आ गया और वहां रेत व सिल्ट आ कर जमा हो गई. खैर, अब दोबारा रेत व सिल्ट हटा कर कब्जा किए स्थान को सुंदर बना लिया जाएगा.

आश्रम के अंदर प्रवेश कर के कब्जाई जगह तक पहुंचना आसान नहीं है. चूंकि अब कुछ भक्त लोग वहां दबी अपनी कारों को निकालने की कोशिश कर रहे थे, इसलिए हम भी वहां पहुंच गए. लेकिन वहां के फोटो लेने में हम ने बहुत सावधानी बरती. हम ने स्वामीजी से उन का पक्ष जानने का प्रयास किया, लेकिन प्रशासनिक कार्यालय में बैठे उन के कारिंदों ने बताया कि वे आराम कर रहे हैं, समय लग जाएगा. हकीकत तो वे ही जानें, लेकिन आश्रम द्वारा गंगा पर पक्का निर्माण ध्वस्त हो कर जमीन कभी आश्रम के चंगुल से कब्जामुक्त हो पाएगी, इस की उम्मीद कम ही नजर आती है.

दबंग महंत का बोलबाला

धर्म की आड़ में और रसूख के बल पर कैसे गंगा की जमीन को कब्जाया जाता है, इस के हुनर की उपाधि हासिल की अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री महंत हरिगिरी ने. हरिगिरी अखाड़ा के संचालक भी हैं. अनगिनत भक्तों के साथ ही संत समाज के अन्य लोगों की भी उन पर आस्था है, लेकिन उन्होंने ऐसी करतूतों को अंजाम दिया जिन्होंने भूमाफियाओं को भी पीछे छोड़ दिया.

दरअसल, वर्ष 2010 में हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन किया गया. ऐसे में धार्मिक गतिविधियों के मद्देनजर अन्य की तरह अस्थायी शिविर के रूप में हरिगिरी को भी गंगा के बिलकुल किनारे ललतारौ पुल के नजदीक धोबीघाट को हटा कर जगह दे दी गई. कुंभ का स्नान चलता रहा. करोड़ों की जगह मौके की थी, लिहाजा, हरिगिरी ने मजबूत डेरा जमाने की ठान ली. यहां मंदिर की आड़ में उन्होंने सैकड़ों वर्गमीटर में खुलेआम निर्माण शुरू कर दिया.

कुंभ मेले के बाद यों तो जगह को खाली किया जाना था लेकिन रसूख के चलते हरिगिरी ने अवैध रूप से अतिक्रमण कर के चारमंजिला आकर्षक आश्रम का निर्माण कर लिया. निर्माण के बीच चूंकि एक पीपल का पेड़ बाधा डाल रहा था, इसलिए उन्होंने उस की मजबूत शाखाओं को कटवा दिया. इतना ही नहीं, रसूख का इस्तेमाल कर के निर्माण में आड़े आ रही 11 हजार वोल्ट की विद्युतलाइन को भी हटवा कर गंगा के ऊपर से निकालने पर विभाग को मजबूर कर दिया. जो विभाग एक तार तक बदलने में लोगों को रुला देता हो, उस ने खंबे लगा कर महंत की इच्छानुसार लाइन खींच दी. बिना सांठगांठ और दबाव के यह संभव नहीं दिखता. धोबी का काम करने वाले रामलाल सवाल उठाते हैं कि अब यदि बिजली का तार टूट गया तो पता नहीं पानी में करंट फैलने से कितने लोग मरेंगे.

एक आरटीआई कार्यकर्ता जे पी बडोनी ने इस पर सवाल उठाते हुए शिकायत की. शिकायत के संदर्भ में जिलाधिकारी सचिन कुर्वे ने कार्यवाही करने की ठानी तो उन्हें भारी दबाव का सामना करना पड़ा क्योंकि वह एक बड़े महंत के खिलाफ कार्यवाही करने की हिम्मत जुटा रहे थे. दबाव को दरकिनार कर जांच हुई तो जालसाजी से परदा उठ गया.

जांच में पता चला कि जमीन को पूरी तरह कब्जाने के लिए हरिगिरी ने मजबूत हथकंडा अपनाया. उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश के बीच परिसंपत्तियों का विवाद था. इस का हरिगिरी ने फायदा उठाया. जहां निर्माण हुआ, गंगा की वह जमीन सिंचाई विभाग के अधीन आती थी. इस जमीन को एक स्थानीय नेता व पत्रकार के साथ मिल कर अपने नाम करा लिया गया. अरबों की इस भूमि पर आश्रम के अलावा अपार्टमैंट बना कर बेचने की योजना थी. इस बीच अदालत का एक आदेश आया जिस में गंगा किनारे 200 मीटर की परिधि में बने अवैध निर्माणों को गिराने की बात की गई.

जांच में जालसाजी का पूरा खेल खुल गया. इस के बाद तहसील प्रशासन की तरफ से हरिगिरी, पत्रकार गोपाल रावत व नेता पारस कुमार जैन के खिलाफ हरिद्वार कोतवाली में धारा-420 व 120 के तहत धोखाधड़ी व आपराधिक षड्यंत्र रचने का मुकदमा दर्ज करा दिया गया. चारमंजिला अवैध भव्य आश्रम को भी भारी विरोध के बीच जेसीबी मशीनें लगा कर ध्वस्त करा दिया गया. प्रशासन के सख्त रुख के सामने हरिगिरी को मजबूरन अपना बिस्तर समेटना पड़ा.

जिलाधिकारी ने अपने दायित्व का सही निर्वहन किया. अवैध निर्माण को ध्वस्त करने के दौरान आश्रम में रखी मूर्तियों को हटा दिया गया, लेकिन संत समाज के लोगों ने इसे हिंदू धर्म पर प्रहार बता कर कड़ा विरोध किया और धार्मिक रंग दे कर मूर्तियां खंडित करने का आरोप लगाया. सरकार में शिकायत भी की. कहा जाता है कि राजनीति में हरिगिरी की पकड़ ही ऐसी थी कि कुछ समय बाद ही जिलाधिकारी को पद से हटा दिया गया. इस के बाद हौसले इतने बुलंद हुए कि पुलिस नामजद आरोपियों में से किसी को गिरफ्तार करने की हिम्मत भी नहीं जुटा सकी. तोड़े गए अवैध निर्माण का मलबा आज भी मौके पर पड़ा है, लेकिन तबादलों के डर से अधिकारी अब मलबा हटाने की हिम्मत भी नहीं कर पा रहे हैं.

इस मामले में हटाए गए जिलाधिकारी सचिन कुर्वे कहते हैं, ‘‘हम ने सरकारी काम ही किया. आश्रम को अवैध रूप से बनाया गया था. मूर्तियों पर बेवजह बवाल हुआ. उन्हें हम ने पहले ही सुरक्षित निकलवा लिया था.’’ क्या उन्हें महंत के आश्रम के खिलाफ कार्यवाही करने की सजा तबादले के रूप में मिली, इस सवाल पर वे कुछ भी बोलने से इनकार कर गए.

सरकारी जमीनों की लूट

गंगा तटों के अलावा सिंचाई व वन विभाग की जमीनों पर कब्जे के मामले में महत्त्वाकांक्षी साधु, महंतों, संतों, बाबाओं ने ऊंचा दरजा हासिल किया हुआ है. बाबागीरी की आड़ में करोड़ों का यह व्यापार खुलेआम होता है. शहर व उस के आसपास 4 हजार से ज्यादा आश्रम, मठ, अखाड़े व धर्मशालाएं हैं. हरिद्वार की अरबों की सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण व कब्जे करने के लिए ऐसे लोग तथाकथित भगवान का सहारा सब से पहले लेते हैं. यह उन की मजबूरी और जरूरत दोनों हैं. ‘राम नाम जपना, पराया माल अपना’ की तर्ज पर वे पहले मंदिर बनाते हैं और फिर धार्मिक संस्था, आश्रम व मठ के रूप में कब्जा कर लेते हैं. एक बार मंदिर बनाते ही मामला धार्मिक हो जाता है. दर्जनों कब्जे हटवाने की हिम्मत प्रशासन नहीं कर पाता क्योंकि धार्मिक आस्था पर चोट करने की बात प्रचारित की जाती है.

हर की पौड़ी के अलावा बैरागी कैंप, गिरलाघाट, चंडीघाट, लालजी वाला व भैरोंघाट इलाके में भी दर्जनों अवैध कब्जे हैं. रोचक बात यह भी है कि कई बाबाओं ने आश्रमों के नाम पर कब्जे कर के जमीनें लोगों को बेच दीं. वे आश्रमों, धर्मशालाओं में फाइवस्टार सुविधाएं दे कर अपार्टमैंट बना कर बेचते हैं. कोई बाबा यहां आश्रम बना कर रह रहा है तो कोई मंदिर बना कर धर्म की दुकान चला रहा है. निजी भक्तों की फौज के अलावा इन बाबाओं के पास अन्य प्रदेशों से लाखों लोग गंगा स्नान, दान व मंदिरों में माथा टेक कर पुण्य कमाने के लिए आते हैं. ये बाबाओं के जीवन संचालन के प्रमुख स्रोत होते हैं.

सरकारी जमीनों की लूट का ऐसा दृश्य शायद ही कहीं देखने को मिले. ऐसे स्थानों पर फोटो खींचने पर बाबा लोग व उन के भक्त कड़ा ऐतराज करते हैं और कुपित निगाहों से देखते हैं. गंगा के किनारों पर उस जगह को भी नहीं बख्शा जा रहा जहां गंगा बहती है. गंगा में जल कम हो कर धार पीछे गई नहीं कि हो गया कब्जा. कुंभ मेले के बाद कब्जे और भी बढ़ गए. सिंचाई विभाग व प्रशासन गेंद एकदूसरे के पाले में डालते हैं. सिंचाई विभाग ने कब्जाधारियों की सूची बना कर प्रशासन को दी जो धूल फांक रही है.

सरकारी विभाग कुछ मामलों में कब्जा हटवाने के बजाय सांठगांठ कर के उसे बढ़ावा देने का काम करते हैं. फर्क करना मुश्किल है कि यह उन की मजबूरी है या काम के प्रति ईमानदारी? इतना तय है कि यदि निष्पक्षता से उच्चस्तरीय जांच कराई जाए तो कई चेहरों से नकाब उतर जाएगा.

नेता सब नतमस्तक

हरिद्वार के संतमहात्मा राजनीति में गहरी पकड़ रखते हैं. मुख्यमंत्री, राज्यपाल व अन्य सत्ता के ओहदेदार बड़े संतों के भक्तों की श्रेणी में आते हैं. संतों, राजनीति व प्रशासन का गहरा गठजोड़ है. वीआईपी जब आश्रमों में आते हैं, तो व्यवस्था बनाने में लगने वाले सरकारी कारिंदों को संतों की ताकत का एहसास हो जाता है. एक स्थानीय कहावत भी बन गई कि ‘नेता आ कर पैर छूते हैं इसलिए संतों पर कोई नियम लागू नहीं होता.’ जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद का ओहदा वैसे तो बहुत ऊंचा है लेकिन अपने आश्रम में वे अवैध निर्माण करने के आरोपी हैं. क्या उन्हें ऐसा करना चाहिए? इस का जवाब तो एक सड़कछाप साधु ज्ञानचंद भी न के रूप में ही देता है. इस के अलावा संत आसाराम बापू के हरिपुर कला स्थित आश्रम को भी अवैध निर्माण का नोटिस जारी किया गया है. उन की तरह 40 से ज्यादा ऐसे संत हैं जिन्होंने अवैध निर्माण किए हैं.

ऐसे निर्माणों को रोकने की जिम्मेदारी हरिद्वार विकास प्राधिकरण की है. वह कार्यवाही क्यों नहीं करता, इस का जवाब जानने के लिए जब प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रंजीत कुमार से संपर्क किया, तो उन्होंने यह कह कर बात खत्म कर दी कि ‘हम ने पिछले दिनों ऐसे लोगों को नोटिस दिए हैं.’ स्थानीय लोगों की मानें तो इस से ज्यादा कोई विभाग कुछ कर भी नहीं सकता. महंत हरिगिरी के अवैध आश्रम को गिराए जाने के बाद खुद राज्यपाल अजीज कुरैशी एक आयोजन में उसी स्थान पर आए. स्थानीय प्रशासन ने खुफिया रिपोर्ट के आधार पर उन्हें न आने की सलाह दी, लेकिन वे महंत हरिगिरी के पास फिर भी आए. यह बयान दे कर भी उन्होंने महंत के रसूख को दर्शा दिया कि उन्हें प्रशासन ने आने से मना किया था, लेकिन वे फिर भी आए.

कब्जेधारी बेफिक्र भी इसलिए रहते हैं कि उन के रिश्ते सीधे बड़े नेताओं से होते हैं. उन्हें यह गुमान है कि उन का कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता. नियम आम आदमी के लिए होते हैं उन के लिए नहीं. प्रभाव को और भी ज्यादा कायम करने के लिए वे आयोजनों में नेताओं को बुलवाते हैं. लिहाजा, अधिकारियों को हाथ बांध कर नौकरी करना मजबूरी है. ऐसे में कोई सरकारी कारिंदा संतों के अवैध निर्माण और उन की मनमानी पर कार्यवाही करना तो दूर, इस बारे में सोचना भी उचित नहीं समझता. धारणा यही कि छोटा कदम उठाने पर भी वे उलटा झमेले में फंस जाएंगे.

जमीनों को ले कर हत्याएं

संत समाज भक्तों को अहिंसा का पाठ तो पढ़ाता है जबकि जमीनों, आश्रमों में होने वाली बंदरबांट, कब्जों और करोड़ों के गैरकानूनी व्यापार के लिए ही संत व बाबा लोग हिंसा का शिकार हो जाते हैं. लड़ाई सड़कों पर आने के अलावा हत्याएं तक हो जाती हैं. हत्याओं के मुकदमे भी दर्ज होते हैं. लेकिन मामले चूंकि रहस्यमयी होते हैं इसलिए कातिल पकड़ में नहीं आते. अकेले हरिद्वार में ही महज 3 सालों में 20 से ज्यादा संतों, बाबाओं की हत्याएं कर दी गईं. हत्याओं के ऐसे मामलों में कोई गिरफ्तार नहीं हुआ. मामले करोड़ों की प्रौपटी से जुड़े होते हैं. महंत बाल स्वामी, योगानंद महाराज, गोवर्धन दास व प्रेमानंद को गोलियों का शिकार बनाया गया. 1 साल पहले महानिर्वाणी अखाड़े के महंत सुधीर गिरी की अज्ञात हमलावरों ने उस वक्त ताबड़तोड़ गोलियां बरसा कर हत्या कर दी जब वे कार से अपने आश्रम जा रहे थे. इस में कोई धार्मिक दुश्मनी न हो कर माया का चक्कर था. कहा जाता है कि वे कुछ संतों, भूमाफियाओं की पोल खोलने वाले थे. कह सकते हैं कि जमीनों का प्रलोभन संतों की जान पर खतरा बन कर मंडरा रहा है. जमीन से जुड़े कई मामलों में साधुमहंतों को अपनी जान गंवानी पड़ी है.

ज्यादा चेले तो बड़ा बाबा

हरिद्वार में मुख्य मार्ग से ले कर अंदर तक दर्जनों होर्डिंग्स ऐसे मिलते हैं जिन पर कार्यक्रमों का ब्योरा दर्ज होता है. सत्संग समागम होते तो धर्म के नाम पर हैं, लेकिन नेताओं की रैली से कम भी नहीं होते जिन में वे ज्यादा से ज्यादा भीड़ जुटा कर दूसरे को अपनी ताकत का एहसास कराते हैं. विधानसभा व संसद सत्र की तरह यहां भी सत्संग सत्र चलते हैं जिस में हजारों भक्त आते हैं. संतों की संख्या भी ज्यादा होती है और भक्तों की भी.

आसाराम बापू के होर्डिंग्स कई स्थानोें पर लगे हम ने देखे. बाबा मुसकान के साथ विभिन्न वेशभूषा में थे. ऐसे ही माध्यम अपनाकर भीड़ को लुभाया जाता है. पिछले कुछ समय से यौन शोषण के आरोपों के चलते जेल की हवा खा रहे आसाराम की अकूत संपत्ति देशभर में फैली है. आलम यह है कि प्रवचन के बहाने जहां भी पहुंचे वहीं जमीन हड़प ली. पिछले 20 सालों में इसी तरह आसाराम डेढ़ हजार करोड़ से ज्यादा कीमत की जमीनों के मालिक बन बैठे हैं.

एक अनुमान के मुताबिक आसाराम 223 एकड़ जमीन के खुद मालिक हैं और कुछ जमीन उन के ट्रस्ट और करीबी रिश्तेदारों के नाम पर खरीदी गई है. इतना ही नहीं, करीब 588 एकड़ जमीन पर उन का कब्जा है. उन के 400 से ज्यादा आश्रम हैं, जो ज्यादातर विवादों में हैं. कुल मिला कर आसाराम को अगर संत की शक्ल में भूमाफिया कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.

पुलिस प्रशासन सुरक्षा व्यवस्था तो देखता है, लेकिन कोई दखल देने का अधिकार उसे नहीं होता. बाबाओं के ऐसे सत्संग से लाखोंकरोड़ों की कमाई होती है. अब यदि भक्तों के साथ कोई हादसा हो जाए, उस की जिम्मेदारी उन की नहीं होती. सोच लीजिए, ईश्वर को यही मंजूर था. सत्संग खत्म होने पर गंदगी व कचरा समेटने का काम नगर निगम का रह जाता है. कहते हैं कि किसी बाबा की ताकत का अंदाजा उस के भक्तों की संख्या को देख कर लगाया जाता है. नेता भी रैली में ज्यादा से ज्यादा भीड़ जुटा कर अपनी ताकत का एहसास कराते हैं. अधिकांश बाबा अपने विदेशी भक्तों की संख्या पर ज्यादा गर्व करते हैं. साल में वे वहां घूमने भी जाते हैं. दिल्ली के रामलीला मैदान में हुए लाठीचार्ज के बाद बाबा रामदेव हमेशा चिल्लाते हैं कि देश की 120 करोड़ जनता उन के साथ है, लेकिन कोई उन से यह पूछे कि बाकी के पास क्या है? बाबाओं की लीला को उन के भक्त धर्म के परदे से ज्यादा जानना भी नहीं चाहते.

लाशों पर लूटपाट

केदारनाथ में आई भयानक आपदा में संन्यास के नाम पर पहाड़ों पर पड़े साधुसंन्यासियों ने अपना असली चेहरा दिखाया. ऐसे पाखंडियों ने आपदा आने के बाद मरे हुए लोगों की जेबों से नकदी समेटने के साथ ही उन के द्वारा पहने गए आभूषण भी लूट लिए. दरअसल, जब मिलिट्री के जवान हैलिकौप्टर के जरिए लोगों को बचा रहे थे, कई साधु भारी बैगों के साथ उस में चढ़ने लगे. वजन की वजह से सैनिकों ने सामान रखने से मना किया लेकिन वे नहीं माने तो शक होने पर तलाशी ली गई. गेरुआ वस्त्रधारियों की हकीकत जान कर सैनिक भी शर्मसार हो गए. उन के पास से सवा करोड़ रुपए की नकदी और काफी आभूषण बरामद हुए. उन सभी को पुलिस के हवाले कर दिया गया. उन्होंने ये सब भक्तों के अलावा बैंक के लौकरों से निकाला था. भयंकर तबाही के बाद वहां लाशों के बीच साधुवेशधारी लूट की फिराक में भटक रहे थे.  

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...