दिल्ली के विशाल ने 1995 में आशा के साथ लव मैरिज की. शुरूशुरू में सब अच्छा रहा. उन की एक बेटी भी हुई, मगर बाद में समस्याएं सामने आने लगीं.

एक दुर्घटना में आशा के भाई की मृत्यु हो गई. उस के मातापिता अकेले रह गए. बेटे के गम में आशा के पिता की तबीयत खराब रहने लगी. इस वजह से वह अकसर मायके जाने लगी ताकि पिता की देखभाल कर सके. विशाल ने आशा से कहा कि वह अपने मातापिता को यहीं बुला ले पर आशा की मां ने यह स्वीकार नहीं किया. आशा मायके आतीजाती रही. इसी बात को ले कर दंपती के बीच तनाव बढ़ा और 2010 में दोनों अलग हो गए.

वूमंस सैल की तरफ से आशा ने अपने पति को नोटिस भिजवाया. घरेलू हिंसा का केस किया और मुआवजे की मांग भी की. 2011 में विशाल ने दिल्ली के साकेत कोर्ट में तलाक के लिए याचिका दायर की. तब से आज 2017 तक अदालत में मामला चल रहा है पर कोई फैसला नहीं आया. इस दौरान भरणपोषण का मामला भी साथसाथ चलता रहा.

2013 में अदालत ने विशाल को आदेश दिया कि वह आशा को हर महीने क्व25 हजार भरणपोषण के लिए दे. यह आदेश डेट औफ ऐप्लिकेशन के समय से लागू होना था.

विशाल ने इस के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की मगर हाई कोर्ट ने भी इसी आदेश को माना और 3 महीने के अंदर सारा मुआवजा चुकाने का फैसला सुनाया. इस फैसले को चुनौती देने के लिए विशाल ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई. मगर वहां भी निराशा ही हाथ लगी. सुप्रीम कोर्ट ने मामले में दखल देने से इनकार कर दिया. अंत में विशाल को पूरे रुपए देने पड़े.

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