सवाल
मेरी उम्र 55 वर्ष है. मैं ने अपने बेटे को एक निजी संस्थान से एमबीए करवाया जिस पर लाखों रुपए खर्च किए. उसे पढ़ाने के लिए मैं ने लोन तक लिया. संस्थान वालों ने ऐडमिशन के वक्त प्लेसमैंट की गारंटी दी थी, लेकिन अब कोर्स खत्म होने के बाद वे प्लेसमैंट से मुकर रहे हैं. जिन दोचार छात्रों को प्लेसमैंट मिली है वे भी मात्र 5-7 हजार रुपए में नौकरी कर रहे हैं. ऐसे में बच्चों का कैरियर दावं पर लग रहा है. आप ही बताएं कि हमें क्या करना चाहिए?

जवाब
देखिए, आज एमबीए व इंजीनियरिंग का इतना अधिक क्रेज है कि हर पेरैंट देखादेखी इन्हीं कोर्सेज में अपने बच्चों को ऐडमिशन करवाना चाहता है भले ही उन्हें इन पर लाखों रुपए खर्च करने पड़ें और फ्यूचर कुछ न हो.

आज पेरैंट्स जगहजगह खुले प्राइवेट संस्थान, जो ऐडमिशन के वक्त 100 प्रतिशत प्लेसमैंट की गारंटी देते हैं, में अपने बच्चों का दाखिला करवा देते हैं. लेकिन प्लेसमैंट के वक्त ऐसे संस्थान या तो छात्रों की बैड परफौर्मेंस के कारण उन्हें प्लेसमैंट देने से मना कर देते हैं या फिर प्लेसमैंट के नाम पर उन के साथ मजाक किया जाता है. ऐसे में पेरैंट्स के साथसाथ बच्चे भी निराश हो जाते हैं और सोचते हैं कि इस से अच्छा था कि वे कोई छोटामोटा कोर्स ही कर लेते.

आप ही बताइए अगर एक ही फील्ड में सभी बच्चे जाएंगे तो नौकरियों की कमी तो होगी ही और रही बात संस्थानों के झूठे वादों की, तो ‘जो दिखता है वही बिकता है’ वाली कहावत यहां भी चरितार्थ होती है. ऐसे में आप देखादेखी या फिर झूठे वादों में न फंस कर, सूझबूझ से निर्णय लें ताकि आप के बच्चे का कैरियर बन जाए.

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