आगरा के थाना एत्मादपुर के गांव अरेला में गांव वालों ने आवारा गोवंश, जो उन की फसलों को लगातार नुकसान पहुंचा रहे थे, को घेर कर उन्हें एक सरकारी विद्यालय में बंद कर दिया और गेट पर ताला लटका दिया. सुबह जब शिक्षक और बच्चे स्कूल पहुंचे तो पशुओं को अंदर देख कर दंग रह गए. अब पढ़ाई कहां हो? जब तक गांव वालों की परेशानी दूर नहीं होती तब तक बच्चों की पढ़ाई से छुट्टी. उत्तर प्रदेश के स्कूलों में गाय, भैंस, बकरियां बंधी दिखाई देना आम है. योगी के राज में तो प्राथमिक स्कूल के अध्यापकों को अकसर आवारा गोवंश को ढूंढने व उन की गिनती करने में लगा दिया जाता है.

स्कूल में बच्चों के लिए मिडडे मील बनवाने, राशन खरीदने, फल सब्जी लाने का काम भी टीचर ही करते हैं. बच्चों को पोलियो की दवा पिलाने, पेट के कीड़े मारने वाले गोली एल्बेंडाजोल खिलाने, 0 से 14 वर्ष की उम्र के बच्चे क्या कर रहे हैं इस की गिनती करने, बच्चों को मिडडे मील परोसने और दूध-फल का वितरण करने, उन्हें जूते-ड्रेस व किताबें बांटने, स्कूल में अतिरिक्त कमरा बनवाने, रंगाईपुताई करवाने, क्षेत्र में स्कूल न जाने वाले बच्चों की गिनती करने, जनगणना करने, बीएलओ की ड्यूटी करने, चुनाव ड्यूटी करने और सरकारी आदेश आ जाएं तो केंद्र सरकार की योजनाओं का सत्यापन करने, जिला स्तर पर होने वाले सरकारी आयोजनों में काम करवाने, प्राइमरी स्कूल के टीचर पढ़ाने के अलावा 32 ऐसे काम कर रहे हैं जिन्हें ज्यों का त्यों लिखना मुमकिन नहीं है. आखिर वे बच्चों को पढ़ाते कब हैं? उन के पास पढ़ाने का समय कहां है?

हफ्ताभर पहले योगी सरकार ने आदेश निकाला कि अब टीचरों की हाजिरी डिजिटल तरीके से लगेगी. उन्हें अपना चेहरा स्क्रीन के आगे रख कर अपनी उपस्थिति दर्ज करनी होगी. फेस रिकग्निशन सिस्टम की मदद से वे विद्यालय खुलने और विद्यालय बंद होने पर अपनी हाजिरी लगाएंगे. उन्हें प्रतिदिन दो बार इसे लगाना अनिवार्य होगा. इस आदेश पर तो हंगामा खड़ा हो गया. कौन सा सरकारी टीचर समय से स्कूल आता है? समय से बच्चों को पढ़ाता है? और छुट्टी होने पर ही घर जाता है? बहुतेरे तो ऐसे हैं जिन की रजिस्टर में हाजिरी लगाने की जिम्मेदारी स्कूल के ही किसी छात्र की होती है. अब ये बातें सोच कर ही मुख्यमंत्री को आदेश निकालना चाहिए था. उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि जब सुबहसुबह टीचर क्षेत्र में आवारा गायभैंसों की गिनती करते घूमेंगे तो हाजिरी लगाने कैसे आएंगे? लिहाजा, तमाम टीचर आदेश के खिलाफ सड़कों पर उतर आए. आखिरकार योगी को अपना फैसला वापस लेना पड़ा, गुरुजनों का गुस्सा कौन मोल ले.

सरकारी अध्यापक को गुस्सा भी खूब आता है. कल की खबर है कि बरेली में एक प्राथमिक विद्यालय में कक्षा 4 का छात्र अपनी टीचर के लिए जामुन और नीबू तोड़ कर नहीं लाया तो गुस्से में उस महिला टीचर ने पीटपीट कर उस की खाल उधेड़ दी और एक घंटा कमरे में बंद रखा. शिक्षिका का नाम रजनी गंगवार है और जिस बच्चे को उस ने निर्ममता से पीटा वह अनुसूचित जाति से आता है, नाम है कमल. ऐसी क्रूर टीचर से कौन बच्चा पढ़ना चाहेगा?

एक खबर यह भी है कि उत्तर प्रदेश में इस बार के सैशन में 50 जिलों के 5,350 परिषदीय स्कूलों में एक भी नया एडमिशन नहीं हुआ है. इस में कक्षा एक से संबंधित 3,894 विद्यालय और कक्षा 6 से संबंधित 1,456 स्कूल हैं जिन में एक भी नया बच्चा एडमिशन लेने नहीं आया. वहीं प्रयागराज में 125 परिषदीय स्कूल ऐसे हैं जहां कक्षा एक में इस बार एक भी एडमिशन नहीं हुआ. 97 जूनियर स्कूलों में कक्षा 5 में एक भी नया पंजीयन नहीं हुआ. शून्य एडमिशन वाली सूची में शाहजहांपुर शीर्ष पर है. वहां सब से अधिक 464 ऐसे विद्यालय हैं जिन में कक्षा एक में इस बार कोई एडमिशन नहीं हुआ. आगरा में 443, मैनपुरी में 432, बदायूं में 277, अलीगढ़ में 272, बरेली में 253, एटा में 236, मथुरा में 192, कासगंज में 135, हाथरस में 117, मेरठ में 118, पीलीभीत में 92, मुजफ्फरनगर में 81, फिरोजाबाद में 75 सरकारी स्कूल ऐसे हैं जहां इस सैशन में एक भी नया बच्चा एडमिशन लेने नहीं आया.

पिछले 3 सालों के अंदर देश के कई सरकारी स्कूलों में ताला लग चुका है. यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इनफौर्मेशन सिस्टम फौर एजुकेशन प्लस डेटा के मुताबिक देश में सरकारी स्कूलों की संख्या में भारी कमी आई है. यूडीआईएसई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 50 हजार से अधिक सरकारी स्कूल बंद हो गए हैं. उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों की संख्या में 26,074 स्कूलों की गिरावट देखी गई. जबकि, इस दौरान प्राइवेट स्कूलों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी है. उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल ऐसे राज्य हैं जहां सब से ज्यादा प्राइवेट स्कूलों की संख्या में बढ़ोतरी देखी गई है.

देश के सरकारी स्कूलों में ज़्यादातर पिछड़े, दलित, आदिवासी और बेहद गरीब परिवारों के बच्चे पढ़ते हैं. इन के मातापिता गरीब, अनपढ़, मजदूर होते हैं. इन बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है. टीचर क्षेत्र के स्लम एरिया, झुग्गी बस्ती, गांवगांव घूम कर ऐसे परिवारों से मिलते हैं और उन्हें अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करते हैं. वे उन्हें मिडडे मील का लालच देते हैं, साल में 2 यूनिफौर्म, जूतेमोजे, किताबें, बस्ता आदि देने की बात करते हैं तो वे अपने बच्चों को यह सोच कर भेज देते हैं कि चलो, एक वक्त तो पेटभर खाना खा लेगा और पहनने के लिए कपड़ेलत्ते भी मिल जाएंगे. लेकिन शौचालयविहीन व जर्जर स्कूल भवन, टपकती छत, एकएक कमरे में 100-100 बच्चे, टूटाफूटा फर्नीचर, बिजलीपंखे का अभाव जहां इन की पढ़ाई में बाधा बनता है वहीं निकम्मे अध्यापकों का हाजिरी लगा कर दिनभर स्कूल से गायब रहना आम है. बाकी बचे अध्यापक पढ़ाने के अलावा सरकारी आदेशों की पूर्ति में लगे रहते हैं. ऐसे में भारत में और उत्तर प्रदेश में सरकारी शिक्षा की असलियत क्या है, इसे समझना मुश्किल नहीं है.

क्षेत्र के सरकारी स्कूलों की क्या दशा है, वहां टीचर आ रहे हैं या नहीं, पढ़ाई हो रही है या नहीं, बच्चों को किताबें-यूनिफौर्म और खाना मिल रहा है या नहीं, यह देखने का काम क्षेत्र के पार्षद-विधायक-सांसद का होता है. मगर वे इस के लिए अपना समय क्यों बरबाद करें जब उन के अपने निजी स्कूल धड़ल्ले से चल रहे हों और लाखोंकरोड़ों की कमाई हो रही हो?

एक नामी दैनिक अखबार की पड़ताल कहती है कि उत्तर प्रदेश में आधे से ज्यादा स्कूलकालेज राजनेताओं के हैं. जिन सरकारी स्कूलों को सुधारने की जिम्मेदारी सांसदों-विधायकों-पार्षदों की है, वे कभी इस के लिए गंभीरता से काम नहीं करते हैं. वजह है उन के अपने प्राइवेट स्कूल. जान कर आश्चर्य होगा कि उत्तर प्रदेश में आधे से ज्यादा यानी करीब 60 फीसदी प्राइवेट स्कूलकालेजों के मालिक राजनेता हैं.

बसपा नेता शिव प्रसाद यादव के इटावा और मैनपुरी में 100 से ज्यादा स्कूल चल रहे हैं. भाजपा नेता बृजभूषण शरण सिंह के गोंडा और बहराइच में 54 प्राइवेट स्कूल हैं. भाजपा के पूर्व विधायक जय चौबे के 50 से अधिक विद्यालय चल रहे हैं. सपा के प्रदेश सचिव डा. जितेंद्र यादव के फर्रुखाबाद में 20 से अधिक विद्यालय हैं.

अजय प्रताप सिंह, भाजपा जिला पंचायत अध्यक्ष, फतेहपुर के 18 से ज्यादा स्कूल, वाचस्पति/अपना दल (विधायक)/प्रयागराज/15 से ज्यादा स्कूल, एस पी सिंह पटेल/सपा (सांसद)/प्रतापगढ़/एलपीएस ग्रुप/13 स्कूल, संजय सिंह/भाजपा (पूर्व कैबिनेट मंत्री)/अमेठी/13 स्कूल, मनोज सिंह/भाजपा /गाजीपुर/11 स्कूल, संजयन त्रिपाठी/भाजपा (पूर्व एमएलसी)/गोरखपुर/10 से ज्यादा विद्यालयों के मालिक हैं.

उत्तर प्रदेश में 74 हजार से ज्यादा प्राइवेट स्कूल हैं. इन में 50 हजार स्कूलों के मालिक नेता हैं. इन में लगभग सभी पार्टियों के नेता शामिल हैं. 20 हजार प्राइवेट इंटर कालेज और 7 हजार से ज्यादा प्राइवेट डिग्री कालेज भी नेताओं के ही हैं. 31 प्राइवेट यूनिवर्सिटीज में 5 भाजपा और 3 सपा नेताओं की हैं.

प्रतापगढ़ से सपा सांसद एस पी सिंह पटेल लखनऊ पब्लिक स्कूल के मालिक हैं. फर्रुखाबाद के सपा नेता डा. जितेंद्र यादव के पास पूरा बाबू सिंह ग्रुप है, 20 से ज्यादा डिग्री कालेज और 4 मैडिकल कालेज हैं. सपा सरकार में मंत्री रहे सिद्धार्थनगर के माता प्रसाद पांडेय के पास भी 5 स्कूलकालेज हैं. सपा के दिग्गज नेता आजम खान के पास 3 स्कूल हैं, एक यूनिवर्सिटी भी है जिस पर फिलहाल योगी सरकार का कब्जा हो गया है.

राष्ट्रीय परिवर्तन दल के डी पी यादव जिला बदायूं में 8 स्कूलों के मालिक हैं. कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी 6 भव्य स्कूलों के मालिक हैं. सपा के माता प्रसाद पांडेय सिद्धार्थनगर में 5 स्कूल चला रहे हैं. कांग्रेस के राजेश्वर पटेल वाराणसी में 5 से ज्यादा स्कूल खोल कर बैठे हैं. कानपुर के आलोक मिश्रा, जो कांग्रेस नेता हैं, डीपीएस ग्रुप चला रहे हैं जिस के अंतर्गत 4 स्कूल हैं. इन के अलावा राजेश गौतम/बसपा (पूर्व विधायक)/लखीमपुर/4 स्कूल, चंद्रमणि यादव/सपा (पूर्व ब्लौक प्रमुख)/मऊ/4 स्कूल, अक्षय प्रताप सिंह/जनसत्ता दल (एमएलसी)/प्रतापगढ़/3 स्कूल, राकेश प्रताप सिंह/सपा विधायक/अमेठी/3 स्कूलों के मालिक हैं.

अपने स्कूलकालेज खोलने में भाजपा के नेता सब से आगे हैं. अमेठी में भाजपा नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री संजय सिंह के पास कुल 13 स्कूलकालेज हैं. हरदोई के भाजपा एमएलए अवनीश प्रताप सिंह के पास जिले में 10 से ज्यादा स्कूलकालेज हैं. गाजीपुर के भाजपा नेता मनोज सिंह के पास 8 डिग्री कालेज, 2 इंटर कालेज और आईटीआई कालेज हैं. भाजपा विधायक अनुराग सिंह के पास मिर्जापुर में 5 डिग्री कालेज हैं. डुमरियागंज से भाजपा सांसद जगदंबिका पाल के पास सूर्य ग्रुप औफ इंस्टिट्यूशन नाम से इंस्टिट्यूट है. इस में डिग्री कालेज और इंजीनियरिंग कालेज शामिल हैं. कौशांबी में भाजपा के पूर्व विधायक संजय गुप्ता के पास 4 इंटर कालेज और एक डिग्री कालेज हैं, बोर्डिंग स्कूल भी है. इन सब के अलावा जालौन के जिला पंचायत अध्यक्ष (भाजपा) घनश्याम अनुरागी के पास 3 कालेज, आगरा के भाजपा विधायक छोटेलाल वर्मा के पास 5 स्कूलकालेज और संभल के भाजपा नेता अजीत यादव के पास 4 स्कूलकालेज हैं.

उत्तर प्रदेश में इस वक्त 31 प्राइवेट यूनिवर्सिटीज हैं जिन में से 5 यूनिवर्सिटीज भाजपा नेताओं की हैं. इन में नारायण दास अग्रवाल की जीएलए यूनिवर्सिटी, सचिन गुप्ता की संस्कृति यूनिवर्सिटी, जिला पंचायत अध्यक्ष किशन चौधरी की केएम यूनिवर्सिटी शामिल हैं. इस के अलावा ठाकुर जयवीर सिंह की नोएडा इंटरनैशनल यूनिवर्सिटी, बरेली के महापौर उमेश गौतम की इन्वर्टिस यूनिवर्सिटी भी है. गोरखपुर की महायोगी गोरखनाथ यूनिवर्सिटी गोरक्षा पीठ ट्रस्ट के अधीन है. अन्य यूनिवर्सिटीज के प्रमुख या तो व्यवसायी हैं या फिर शिक्षा क्षेत्र से ही जुड़े हैं.

स्कूल खोलना आसान नहीं होता. इस के लिए कई मापदंड तय किए गए हैं, मगर नेताओं के लिए सब संभव है. अधिकारियों का मुंह पैसे से भर देने पर उन की फाइल कहीं नहीं अटकती है. उत्तर प्रदेश के आधे प्राइवेट स्कूल भी तय नियम के हिसाब से नहीं चल रहे हैं. यदि नियमों की मानें तो शहरी क्षेत्र में 5वीं तक का स्कूल खोलने के लिए 500 वर्ग गज (करीब 5,000 वर्ग फुट) का खेल का मैदान होना ही चाहिए. गांव में स्कूल खोलना है तो 1,000 वर्ग गज का खेल का मैदान होना चाहिए. इस के अलावा 270 वर्ग फुट के 3 क्लासरूम, 150-150 वर्ग फुट का एक स्टाफरूम और एक प्रिंसिपलरूम होना चाहिए. 8वीं तक के स्कूल में 600 वर्ग फुट की एक विज्ञान प्रयोगशाला भी अनिवार्य है. इन दोनों प्रकार के स्कूलों में एक 400 वर्ग फुट का अलग कमरा होना चाहिए. शहर में कालेज खोलने के लिए 3 हजार वर्ग मीटर और गांव में कालेज खोलने पर 6 हजार वर्ग मीटर जमीन होनी चाहिए.

इस के अलावा जमीन की खरीद का एफिडेविट, बिल्डिंग का फिटनैस सर्टिफिकेट, कंप्लीशन सर्टिफिकेट, जल बोर्ड से जल परीक्षण रिपोर्ट, बिल्डिंग का साइट प्लान, बैंक का इश्यू किया गया एफडी के बदले में नो-लोन सर्टिफिकेट जैसे कुल 17 तरीके के सर्टिफिकेट देने होते हैं. लेकिन, उत्तर प्रदेश में 80 फीसदी से ज्यादा स्कूल इन मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं. बावजूद इस के, वे धड़ल्ले से चल रहे हैं और जम कर कमाई कर रहे हैं. एक पैटर्न और भी दिखता है, जिन नेताओं के पास कई स्कूलकालेज हैं, वे राजनीति में बहुत आक्रामक नहीं हैं. जैसे ही सरकार बदलती है, उन की विचारधारा भी बदल जाती है. वे बस सत्ता से चिपके रहते हैं और अपना धंधा चलाते रहते हैं. इन्हें उन सरकारी स्कूलों की व्यवस्था से कोई लेनादेना नहीं जो उन के क्षेत्र में हैं और सरकारी योजनाओं के तहत चल रहे हैं. इन्हें उन गरीब बच्चों के भविष्य की कोई चिंता नहीं है जो पिछड़े, दलित और आदिवासी समाज से आते हैं. ऐसे में देश के इस बड़े तबके को अपने बच्चों की शिक्षा की चिंता करनी खुद ही शुरू कर देनी चाहिए.

इस तबके को समझना होगा कि उन के बच्चों की शिक्षा के लिए सरकारी योजनाओं के जरिए जो पैसे की नदियां बहाई जा रही हैं उन की कुछ बूंदें तो उन को भी हासिल हों. ये सरकारी पैसा उन्हीं की मेहनत का पैसा है. सरकारी स्कूल में यदि टीचर समय से नहीं आ रहा है, बच्चों को नहीं पढ़ा रहा है तो अब बच्चों के मातापिता को हल्ला बोलने की जरूरत है. खासतौर पर माओं को.

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