दिल्ली शराब घोटाले में आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट ने 17 माह के बाद जमानत दी. जमानत देते कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता के पहलू को सामने रखते निचली अदालतों को तमाम नसीहत भी दी. सवाल उठता है कि तमाम फैसलों में इस तरह दी जाने वाली नसीहतों को निचली अदालतें किस तरह से लेती हैं? जमानत देने में अदालतों को इतनी दिक्कत क्यों होती है? आरोपी देश छोड़ कर भाग नहीं रहा होता है. जमानत आरोपी का अधिकार है. अदालतें जमानत देने में संकोच क्यों करती हैं?

https://www.instagram.com/reel/C_BQXaCRDS1/?utm_source=ig_web_copy_link&igsh=MzRlODBiNWFlZA==

मनीष सिसोदिया जैसे लोगों पर तो हो हल्ला खूब मचता है. इन के पास अच्छे वकीलों की कमी नहीं होती है. पैसा कोई समस्या नहीं है तब यह हालत है. देश की जेलों में तमाम लोग जमानत मिलने की प्रतीक्षा में रह रहे हैं. इन की बात सुनने वाला कोई नहीं है. हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जाना इन की आर्थिक क्षमता से बाहर होता है. जब नेता सत्ता में होते हैं तो उन को यह परेशानी क्यों नहीं पता चलती कि जमानत के लिए आरोपी का घर द्वार बिक जाता है. जमानत का इंतजार कर रहे हर आदमी के पास नेताओं की तरह मंहगे वकील और पैसा नहीं होता है. वह जमानत को ले कर समाज सुधार का कोई कानून क्यों नहीं बनाते?

‘जेल नहीं, जमानत ही नियम है’

हाई कोर्ट से जमानत के लिए जाने का कम से कम खर्च 3 से 5 लाख के बीच आता है. सुप्रीम कोर्ट में यह 5 से 10 लाख कम से कम हो जाता है. आम आदमी किस तरह से अपना मुकदमा वहां ले कर जाए. खासतौर पर तब जब घर का कमाने वाला ही जेल में जमानत की राह देख रहा हो. जमानत के अधिकार पर केवल सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से काम नहीं चलने वाला. इस को ले कर न्याय प्रणाली में एक स्पष्ट व्यवस्था होनी चाहिए जिस से कम से कम समय जमानत के इंतजार में लोगों को जेल में रहना पड़े.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
  • देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
  • 7000 से ज्यादा कहानियां
  • समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
 

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
  • देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
  • 7000 से ज्यादा कहानियां
  • समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
  • 24 प्रिंट मैगजीन
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...