अमेरिका अब नहीं रहा अमेरिका. जहां जाने को विश्वभर के युवा सपना देखा करते थे. वैसे तो वहां गोरे व कालों का भेदभाव हमेशा से रहा, लेकिन जब से डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बने तब से यह बहुत ज्यादा हो गया. हो भी क्यों न, ट्रंप ने सत्ता जो गोरों का अमेरिका के नाम पर हथियाई थी.

कहने को तो इस देश में बराक ओबामा, कोन्डोलिज़ा राइस, कोलिन पौवेल और सुज़ैन राइस बड़े ओहदों पर पहुंचे लेकिन अब भी अमेरिकी संस्थाएं कालों के साथ बेहद बर्बर रवैया अख्तियार करती हैं.

अमेरिका के सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इस देश में कालों की औसत आयु, गोरों की औसत आयु से 6 साल कम है जबकि अमेरिकी जेलों में कालों की संख्या, गोरों की तुलना में 43 प्रतिशत ज़्यादा है. इस समय अमेरिका के 100 सीनेटरों में केवल 2 हैं जो गोरे नहीं हैं. वहीँ, प्रतिनिधि सभा के 435 सदस्यों में केवल 44 हैं जो गोरे नहीं हैं.

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ट्रंप ने गोरो का नस्लवादी एजेंडा संभाला और उन के वोटों से जीत कर वे ह्वाइट हाउस में पहुंच गए. ट्रंप ने बराक ओबामा पर हमले का कोई मौक़ा नहीं छोड़ा, उन्हें केन्या वापस जाने का मशवरा दिया और उन के बर्थडे सर्टिफ़िकेट पर सवाल उठाए. ट्रंप ने प्रवासियों और विशेषरूप से मुसलमानों के ख़िलाफ़ मोरचा खोल दिया. ट्रंप के इस रवैये ने अमेरिका में नस्लवाद को ख़ूब बढ़ावा दिया.

गोरी पुलिस का कहर

आम गोरे लोग ही नहीं, अमेरिका में सरकारी गोरी पुलिस भी अकसर कालों को सड़क पर मारती रहती है, कभीकभी जान से भी मार डालती है. ताज़ा मामला अमेरिका के मिनेसोटा राज्य के मिनियापोलिस शहर में 25 मई का है जिस का वीडियो वायरल होने के बाद पूरे अमेरिका में काले नागरिकों के साथ बड़े पैमाने पर होने वाले भेदभाव के ख़िलाफ़ लोगों का ग़ुस्सा फूट पड़ा, यहां तक कि नाराज़ प्रदर्शनकारियों ने मिनियापोलिस में एक पुलिस स्टेशन को आग के हवाले भी कर दिया.

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