चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दल क्याक्या लौलीपोप फेंक सकते हैं, इस का एक और नमूना अगड़ी जातियों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के ऐलान के रूप में सामने आया है. लोकसभा चुनावों से 3 महीने पहले आए सरकार के इस फैसले को सवर्ण वोटों को खुश करने के रूप में देखा जा रहा ह. इस घोषणा को चुनावी लौलीपोप ही कहा जा सकता है.
हालांकि सवर्णों को आरक्षण के लिए कुछ सीमाएं निर्धारित की गई है. इस में सालाना 8 लाख रुपए से कम वार्षिक आय, 5 एकड़ से कम जमीन का मापदंड रखा गया है.
सवर्ण आरक्षण के पीछे भाजपा की असली मंशा वोट हथियाना है परे अभी कई सवाल है. सवर्णों को आरक्षण देने से क्या पहले से आरक्षित दलित, पिछड़ी जातियां नाराज हो कर भाजपा के खिलाफ नहीं जाएंगी? अगर अगड़ी जातियां इस लौलीपोप से भाजपा के पास आ भी गईं तो क्या वह उन के बूते चुनावी वैतरणी पार कर सकेगी?
दलित जातियां एट्रोसिटी के चलते भाजपा सरकार ने खासी नाराजगी जता चुकी थी और उन्होंने भारत बंद भी किया था. पिछले साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने एससी, एसटी एक्ट में बदलाव करते हुए कहा था कि मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी. शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा भी दर्र्ज नहीं होगा. पहले एसपी स्तर का पुलिस अधिकारी मामले की जांच करेगा.
विरोध के चलते केंद्र सरकार इस के खिलाफ अगस्त में बिल ले कर आई. इस के जरिए पुराने कानून को बहार कर दिया गया लेकिन दलितों की नाराजगी दूर करने की कोशिश की गई तो उधर इस एक्ट से सवर्ण नाराज हो गए.
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