Society : दुनिया को ले कर किसी बच्चे के पास ढेरों सवाल होते हैं लेकिन उन सवालों का वैज्ञानिक जवाब उसे परिवार और परिवेश नहीं दे पाते. विचारों के रूप में बच्चे को वही मिलता है जो परंपराओं पर आधारित होता है. हमारा सामाजिक माहौल पूरी तरह परंपरावादी है जहां से हमें सड़ेगले विचारों के अलावा नया कुछ नहीं मिलता.
हर बच्चा स्वभाव से जिज्ञासु होता है. बचपन से ही हमारी जो कंडीशनिंग की गई होती है उसी के आधार पर हमारी विचारधारा तैयार होती है. हम मुसलिम के घर में जन्मे तो मुसलमान, क्रिश्चियन के यहां जन्मे तो ईसाई, ब्राह्मण के यहां जन्मे तो ब्राह्मण. ऐसे में व्यक्ति की सहजता, वैज्ञानिकता और उस की वास्तविक समझ के कोई माने नहीं रह जाते. आज जिन युवाओं की भीड़ हम अपने आसपास देखते हैं, यह वही भीड़ है जिस के पास शरीर तो नया है लेकिन विचार सदियों पुराने हैं.
उधार की विचारधारा के शिकार हैं हम
समाज से हासिल रेडिमेड विचारधारा को ले कर आम आदमी खून बहाता है. किसी से नफरत करता है या अपने जीवन का बेशकीमती समय उधार की विचारधारा पर लुटा देता है. परंपराओं पर आधारित परिवार और परिवेश मिल कर हमारी सहज जिज्ञासाओं की हत्या कर देते हैं. ईश्वरवाद की अलगअलग परिकल्पनाएं हमारी जिज्ञासाओं के ताबूत में आखिरी कील ठोंक देती हैं और हमारे एजुकेशन सिस्टम में भी इतनी ताकत नहीं कि वह दफन हो चुकी हमारी सहज जिज्ञासाओं को फिर से जिंदा कर सके.
हमारा सामाजिक माहौल धार्मिक विचारों की मजबूत घेराबंदियों में कैद होता है जहां परंपराएं हावी होती हैं. परंपराओं पर आधारित यही सामाजिक वातावरण हमारी नर्सरी होती है जहां से हमारे दिमागों की कंडीशनिंग की जाती है और हम वह बनते हैं जो हमारा सामाजिक परिवेश तय करता है.
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