यह भी सत्य है कि पंजाब में कांग्रेस को एक ताकत के रूप में वर्तमान मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने बहुत ही मेहनत करके स्थापित किया है. अकाली दल जैसी ताकत को उन्होंने अगर कमजोर करके कांग्रेस को सत्ता बारंबार दिलाई है तो उनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता. मगर सत्ता के जिस तरीके से उन्होंने हठधर्मिता दिखाई है वह किसी भी लोकतांत्रिक पार्टी के लिए आगे गड्ढे और पीछे खाई के रूप में ही देखी जा सकती है .

पंजाब में मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह भूल जाते हैं कि “मैं” वाद सिर्फ आपको अपने ही ताबूत में गिरने को विवश कर देता है. कब मैं के कारण चाहे व्यक्ति हो या कांग्रेस जैसी पार्टी खत्म हो जाती है यह इतिहास में बारंबार देखा गया है. मगर एक अच्छे इतिहासकार होने के बावजूद अमरिंदर सिंह ने जिस तरीके का व्यवहार, सार्वजनिक रूप से दिखाया है वह उनकी गरिमा और कांग्रेस दोनों के लिए ही नुकसान कारक हो सकता है. अमरिंदर सिंह को यह नहीं भूलना चाहिए कि आगामी चुनाव उनके नेतृत्व में ही कांग्रेसी लड़ने के लिए तैयार है और 79 की उम्र होने के बाद वक्त आ गया है जब अमरिंदर सिंह राजनीति से स्वमेव गुड बाय कर लें और नवजोत सिंह सिद्धू जैसे लोगों को आगे लाएं. मगर राजनीति एक ऐसी मोह माया का मायावी इंद्रजाल है की 90 वर्ष की उम्र तक लोग सत्ता सुख भोगना चाहते हैं.

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हमारे देश में ऐसे कितने ही उदाहरण हुए हैं जब वृद्धावस्था में भी पद छोड़ने को नहीं तैयार थे उन्होंने किस तरह देश का, प्रदेश का बड़ा नुकसान किया.

प्रियंका गांधी की नजरे इनायत

बहुत कम लोगों को जानकारी है कि पंजाब में अमरिंदर सिंह का वर्चस्व स्थापित रहा है और जो सोनिया गांधी के सबसे विश्वस्त मुख्यमंत्री के रूप में जाने जाते हैं. उनका अपना एक अलग वजन रहा है.मगर पंजाब में कांग्रेस राजनीति का ऑपरेशन आलाकमान सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने नहीं बल्कि इस दफा प्रियंका गांधी ने किया है.

अमरिंदर सिंह किसी भी हालत में पंजाब में कांग्रेस आलाकमान का कोई दखल पसंद नहीं करते हैं. उनकी अपनी एक “पटियाला स्टाइल” राजनीति है जिसके कारण कांग्रेस आलाकमान भी दो कदम आगे आकर के तीन कदम पीछे हो जाया करता था. मगर अब की कांग्रेस के आलाकमान अध्यक्ष सोनिया गांधी को विश्वास में लेकर के प्रियंका गांधी ने कांग्रेस के 3 बड़े नेताओं की एक टीम को पंजाब के राजनीति और भविष्य को लेकर के रिपोर्ट देने के लिए पंजाब की कमान सौंपी. जिनमें मल्लिकार्जुन खड़गे, हरीश रावत जैसे प्रमुख राजनीतिक पीर थे अमरिंदर सिंह की मुख्यमंत्री के रूप में ऐसी ठसक रही कि यही चाहते रहे की पंजाब में कांग्रेस में वही होगा जो वह स्वयं चाहते हैं.

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मगर प्रियंका गांधी ने अबकी नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपने का निर्णय लेकर अंततः उसे लाख विरोध के बाद भी अमलीजामा पहना दिया और कांग्रेस के लिए एक नई राह खुल गई.
यह भी सच है कि पंजाब कांग्रेस की कमान सिर्फ नवजोत सिंह सिद्धू के हाथ में नहीं दी गई है. बल्कि चार अधिकारी अध्यक्ष भी बनाए गए हैं. कांग्रेस आलाकमान ने आने वाले चुनावों को देखते हुए इसमें क्षेत्रीय और जातीय समीकरण का भी ख्याल रखा है. जिन चार लोगों को वर्किंग प्रेसिडेंट बनाया गया है, उनमें- कुलजीत नागरा (जट सिख, मालवा रीजन), सुखविंदर सिंह (दलित, माझा रीजन), संगत सिंह (पिछड़ा जाति, दोआबा रीजन) और पवन गोयल (हिन्दू, मालवा रीजन) से शामिल किए गए हैं.

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विपक्ष के लिए मुश्किल!

कांग्रेस ने यह जो सिद्धू नाम का नया तुरुप का पत्ता निकाला है उसके परिणामस्वरूप पंजाब की राजनीति में एक मानीखेज हलचल पैदा हो गई है. नवजोत सिंह सिद्धू के मैदान में आने के बाद जहां कांग्रेस मजबूत होकर के सामने आ रही है वहीं अकाली दल जिसकी निगाहें पंजाब की सत्ता पर है सोचने पर मजबूर हो गई है. वहीं भाजपा और केजरीवाल की आप पार्टी भी अब संशय में हैं. कांग्रेस पहले भी अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में मजबूत थी अब और भी ज्यादा मजबूत होकर के आगामी चुनाव को लड़ने की स्थिति में आ चुकी है. राजनीति की बिसात पर जो दृश्य दिखाई दे रहा है उसमें राजनीति के जानकार यही मान रहे हैं कि पंजाब में कांग्रेस की स्थिति आने वाले समय में निरंतर मजबूत होती चली जाएगी. क्योंकि सिद्धू जनता जनार्दन की नब्ज हाथ रखना जानते हैं. कांग्रेस का यह “गुरु” अब पंजाब में क्या-क्या गुल खिलाने जा रहा है यह लोग देखने के लिए लालायित है.

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