अखबारों की हालत घर के किसी कोने में पड़े उपेक्षित बुजुर्गों सरीखी हो चली है, जो होते हुये भी नहीं होते. आमतौर पर अब लोग अखबार पर यूं ही सरसरी नजर डाल मान लेते हैं कि आज के ढाई तीन रुपये वसूल हो गए, लेकिन मध्य प्रदेश के लोग बीते 2 दिन से पूरा अखबार खोल कर इस उम्मीद के साथ पढ़ रहे हैं कि शायद किसी कोने में यह खबर दिख जाये कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने धार के सरदारपुर कस्बे में एक सुरक्षाकर्मी कुलदीप सिंह गुर्जर को आपा खोते जोरदार थप्पड़ जड़ दिया.

खबर धांसू थी जो सोशल मीडिया के दायरे में सिमट कर रह गई. एकाध न्यूज़ चैनल ने एकाध  बार इसे दिखाया, फिर यह गधे के सर से सींग गायव होने वाली कहावत को चरितार्थ करने वाली हो गई. इधर लोगों ने अखबार टटोले पर किसी ने इसे नहीं छापा.

खुद शिवराज सिंह को हैरानी और खुशी हो रही होगी कि बात तो बात बेबात में भी तिल का ताड़ बना देने बाला मीडिया उनका कितना लिहाज और सम्मान करता है. इधर प्रदेश भर में गुर्जर समाज के लोगों ने आहत होते इस ऐतिहासिक हो चले थप्पड़ के विरोध में न केवल धरने प्रदर्शन किए, बल्कि शिवराज सिंह का पुतला भी फूंका, लेकिन मीडिया के मुंह में मानो गुड भरा है, जो इस खबर को खबर मानने ही तैयार नहीं हुआ.

अब कहने वाले कहते रहें कि मीडिया बिकाऊ है या मेनेज कर लिया गया है, पर इससे शिवराज सिंह के अदब और रसूख की टीआरपी नहीं गिर रही, उल्टे और बढ़ रही है. गोया कि एक अदने से मुलाजिम का कोई स्वाभिमान ही नहीं होता और सीएम से पिटना जिल्लत या जलालत की नहीं बल्कि फख्र की बात होती है. लोकतंत्र के इस अलिखित उसूल का ही प्रताप इसे कहा जाएगा कि सरकारी इश्तहारों के एहसान तले दबा मीडिया इस थप्पड़ पर इस तरह खामोश है जैसे अगर इस पर कुछ बोला, लिखा या दिखाया तो अगला थप्पड़ उस के ही नाजुक गाल पर पड़ना है.

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