अगर वाकई मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उतने गंभीर अनुशासित और शांत स्वभाव के होते जितने कि अब तक वे प्रचारित किए जा चुके हैं तो निश्चित रूप से अपने सुरक्षाकर्मी कुलदीप सिंह गुर्जर से माफी मांगते या अपनी गलती पर खेद तो व्यक्त करते, लेकिन ऐसा न कर उन्होंने जता दिया है कि राजा आखिर राजा होता है फिर जमाना राजशाही का हो या कथित लोकतन्त्र का उससे कोई फर्क नहीं पड़ता. गौरतलब है कि तीन दिन पहले धार जिले के कस्बे सरदारपुर में शिवराज सिंह ने अपनी सुरक्षा में तैनात कुलदीप को जोरदार थप्पड़ जड़ दिया था.
इस थप्पड़ की गूंज और गूंज की भी गूंज अब सुनाई देने लगी है, शिवराज सिंह की खामोशी ने उनकी शांत इमेज के चिथड़े उड़ाकर रख दिये हैं और स्वाभिमानी गुर्जर समुदाय उनके खिलाफ लामबंद होकर भाजपा के बहिष्कार की चेतावनी तक दे चुका है. आम लोग इस थप्पड़ की तुलना सुभाष घई निर्देशित फिल्म कर्मा के उस दृश्य से करने लगे हैं जिसमे जेल में दिलीप कुमार ने अनुपम खेर को थप्पड़ मारा था पर सरदारपुर के मामले में विलेन शिवराज सिंह को माना जा रहा है.
भोपाल के पुलिस हेड क्वार्टर में अब दबंग फिल्म का यह डायलोग पुलिस कर्मी मुंह दबाकर कह रहे हैं कि थप्पड़ से डर नहीं लगता साहब, सी एम की ड्यूटी से डर लगता है. शिवराज सिंह चौहान भले ही ऐसे हंसी मजाकों को हवा में उड़ा दें, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि जो नाम उन्होंने पिछले तीस सालों में कमाया था वह महज तीन दिन में मिट्टी मिल गया है. कांग्रेसी तो उन पर निशाना तानने की स्वभाविक और राजनैतिक जिम्मेदारी निभा ही रहे हैं, लेकिन खुद उनकी ही पार्टी के नेता भी उन्हें गलत ठहराने से चूक नहीं रहे, यह और बात है कि सार्वजनिक तौर पर सिर्फ पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने उन्हें गलत करार देने का जोखिम उठाया.
भाजपा के दूसरे नेता शिवराज सिंह के बचाव में कुछ नहीं बोल पा रहे हैं तो जाहिर है इसमें बचाने लायक कुछ बचा ही नहीं है उल्टे शिवराज सिंह के इस गुस्से में आरएसएस की भूमिका तलाशी जाने लगी है कि विदिशा की मीटिंग में मोहन भागवत ने उनकी इतनी ज्यादा खिंचाई कर दी कि वे हड़बड़ा उठे और गुस्सा या भड़ास निकली कुलदीप पर जिस बेचारे का कसूर इतना भर था कि वह ईमानदारी से अपनी ड्यूटी बजा रहा था. कुछ लोगों का मानना है कि आपा खो चुके शिवराज सिंह में अगर अपनी गलती स्वीकारने की भी हिम्मत या नैतिकता नहीं बची तो वे एक अच्छे और सफल नेता का पहला गुण खो चुके हैं जिसे धैर्य कहा जाता है.
मुमकिन है यह अहंकार ही हो जो चिंता की बात भाजपा के लिहाज से है वजह धार थप्पड़ कांड के दूसरे ही दिन धार के मनावर से भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री रंजना बघेल का भी एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें वे एक पुलिस अधिकारी को यह कहते धमकाती नजर आ रहीं हैं कि तेरी पुलिस गिरि निकाल दूंगी. ठीक इसी दिन आगर मालवा में एकात्म यात्रा के दौरान भाजपा विधायक गोपाल परमार की पिटाई भाजपा के ही सांसद मनोहर ऊंटवाल के समर्थकों ने सरेआम कर डाली. इन मामलों से भाजपा के अनुशासन की पोल ही खुली है पर आलाकमान खामोश है वजह वह कुछ बोलेगा या करेगा तो रंजना बघेल और मनोहर ऊंटवाल यह कहने से चूकेंगे नहीं कि जाओ पहले सीएम के खिलाफ कारवाई करो जिन्होंने सुरक्षाकर्मी को थप्पड़ मारा था.
अब हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर पुलिस कर्मी भाजपा के कार्यक्रमों में ड्यूटी देने से कतराने लगें जिनमे खुलेआम जन प्रतिनिधि थप्पड़ मारते हैं, एक दूसरे पर लात घूंसे चलाते हैं और पुलिस वालों को धौंस भी देते हैं. ऐसे में अगर कोई अप्रिय हादसा होता है तो सबसे पहले नौकरी पुलिस वालों की ही जाना है मंत्रियों, विधायकों, सांसदों और दूसरे नेताओं का तो कुछ बिगड़ने से रहा.