आज जब देश के महत्वपूर्ण राज्यों  गुजरात और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं ऐसे में प्रधानमंत्री द्वारा लोगों को नौकरी का नियुक्ति पत्र दिया जाना एक ऐसा मसला बन कर सामने है जो सीधे-सीधे निष्पक्ष चुनाव को पतीला लगाने वाला कहा जा सकता है.

हम इस रिपोर्ट में इस पर विस्तार से चर्चा करें उससे पहले देश की आवाम से एक ही प्रश्न है कि क्या की एन शेषन अगरचे आज मुख्य चुनाव अधिकारी होते तो क्या प्रधानमंत्री दामोदरदास मोदी 71000 लोगों को तो क्या एक व्यक्ति को भी सरकारी नौकरी का नियुक्ति पत्र दे सकते थे .इसका सीधा और सवाल जवाब यही है कि कदापि नहीं.

देश का विपक्ष आज मौन है देश की संवैधानिक संस्थाएं आज मौन है इस सहज सरल से लगने वाले एक मामले की बिनाह पर हम कह सकते हैं कि नरेंद्र दामोदरदास मोदी सरकार और वे स्वयं निरंतर कुछ ना कुछ ऐसा कर रहे हैं जिससे नियम कायदे और नैतिकता की धज्जियां उड़ रही हैं.

जैसा कि हम सब जानते हैं आशिकी हकीकत यह है कि-
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 10 लाख कर्मियों के लिए भर्ती अभियान 'रोजगार मेला' के तहत मंगलवार को 71,000 के करीब युवाओं को नियुक्ति पत्र सौंपें रहे हैं. प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने सोमवार को एक बयान में यह जानकारी दी है.  अधिकृत रूप से कहा गया है - 'रोजगार मेला' युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करने को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की दिशा में प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता को पूरा करने में एक महत्त्वपूर्ण कदम है."

सभी जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात और हिमाचल प्रदेश  लगातार जा रहे हैं लोगों को संबोधित कर रहे हैं ऐसे में चुनाव के वक्त नियुक्तियों का यह झुनझुना सीधे-सीधे मतदान को प्रभावित करने वाला है अतः इस पर निर्वाचन आयोग को स्वयं संज्ञान लेकर के रोक लगानी चाहिए.
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सरकारी सरकारी नौकरियों का लॉलीपॉप
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लाख टके का सवाल यही है कि आज जब गुजरात जोकि नरेंद्र दामोदरदास मोदी का गृह प्रदेश है और जहां से उन्होंने अपनी राजनीति की यात्रा शुरू की और प्रधानमंत्री पद पर पहुंचे हैं वह सारा देश जानता है कि गुजरात प्रदेश का विधान सभा चुनाव नरेंद्र मोदी के लिए कितना अहम स्थान रखता है क्योंकि गुजरात की जीत सीधे-सीधे नरेंद्र मोदी की जीत है और गुजरात की हार सीधे-सीधे नरेंद्र मोदी की हार कही जाएगी.

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