कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लगाये गये लौक डाउन पर सरकार की दोगली नीतियों पर अब सवाल उठने लगे हैं. देश के नवनिर्माण में मील का पत्थर कहे जाने वाले मजदूरों को भी यह अहसास हो गया है कि सरकारें अमीर और धन्ना सेठों के लिए ही होती हैं.
कोटा में डाक्टर और इंजीनियर बनने का सपना लिए लाखों रुपए कोचिंग पर खर्च करने वाले अमीरों के लड़के, लड़कियों को घर वापस लाने सरकार करोड़ों रुपए फूंक रही हैं, परन्तु गरीब मजदूर तपती धूप में भूख प्यास के बावजूद नंगे पांव चलकर सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय कर रहे हैं.
मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने अमीरों के साहबजादों को घर लाने ग्वालियर से 150 बस कोटा के लिए रवाना की है .और दूसरे राज्यों में फंसे मजदूरों की बात तो छोड़िए एक जिले से दूसरे जिलों में जाने वाले मजदूरों को घर पहुंचाने की कोई सुध ही नहीं है. सुध कैसे हो आखिर ये ये सरकार अमीर धन्ना सेठों और अफसरों की हिमायती सरकार जो ठहरी.
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मध्यप्रदेश की किसान हितैषी सरकार के पुलिस कर्मियों ने तो हद ही कर दी. तिलहरी गांव में गाय को चारा देने गये 52 साल के किसान वंशीलाल कुशवाहा को इतना बेरहमी से पीटा कि उसके प्राण पखेरू उड़ गए.
वंशीलाल का कसूर सिर्फ इतना था कि वह लौक डाउन में रात दस बजे गांव के बाहर खेत में बंधी अपनी गाय को चारा डालने गया था.
घटना 16 अप्रैल 2020 की रात की है, किसान बंशी कुशवाहा खेत में बंधी गाय को चारा देकर लौट रहा था, तभी वहां पहुंचे गोराबाजार थाना के पुलिस कर्मियों ने किसान से जुआं खेलने वालों का अड्डा पूछा, किसान ने नहीं बताया तो उसकी बेरहमी से पिटाई कर दी . पुलिस उसे तब तक उसे पीटते रहे, जब तक कि वह बेहोश नहीं हो गया .वहां से गुजर रहे लोगों ने की मदद से घर वालों ने किसान को एक निजी अस्पताल में लाकर भर्ती कराया, जहां रविवार 19 अप्रेल की रात उपचार के दौरान किसान की मौत हो गई.
मृतक किसान के 16 और 14 साल के वेटे रो रोकर शिवराज मामा से पूछ रहे हैं कि आखिर उनके पिता का गुनाह क्या था.?
कोरोना वायरस का संक्रमण जिस तेजी से अपने पैर फैला रहा है, उससे लाक डाउन के बढ़ने की संभावना तो पहले से ही व्यक्त की जा रहीं थी. इन सबके बावजूद लोगों की चिंता इस बात को लेकर रही कि लाक डाउन में बीमार , बुजुर्ग और महिलाओं की समस्याओं पर जरा भी ध्यान नहीं दिया गया.
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मध्यप्रदेश के एक छोटे से गांव सेठान में रहने वाले ओमप्रकाश प्रजापति अपनी पत्नी सविता के प्रसव के लिए 12 अप्रैल की सुबह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र साईंखेड़ा पहुंचे , लेकिन वहां ड्यूटी पर कोई डाक्टर उपलब्ध नहीं था. एएनएम और नर्सिंग स्टाफ ने महिला की डिलीवरी की प्रारंभिक तैयारियां शुरू की ही थी कि महिला को ब्लीडिंग ज्यादा होने के कारण तहसील के स्वास्थ्य केंद्र के लिए रिफर कर दिया गया है. अब समस्या थी कि लाक डाउन में 25 किमी दूर गाडरवारा कैसे पहुंचे. काफी मशक्कत के बाद स्थानीय लोगों की मदद से एक वाहन द्वारा महिला और उसके पति को रवाना किया गया, लेकिन तब तक देर हो हो जाने के कारण महिला और उसके होने वाले बच्चे की मौत हो चुकी थी.
लौक डाउन के दौरान होने वाली ये घटनाएं वार वार यही सवाल खड़ा कर रही हैं कि आखिर सरकारों का यह दोहरा चरित्र क्यों? कहीं ऐसा तो नहीं कि मजदूरों को घर जाने से रोक कर बड़े बड़े पूंजीपतियों और उद्योगपतियों के हित पूरे कर रही हो.क्योंकि यदि मजदूर घर चले गए तो ऊनकी फैक्ट्री और कारखाने कैसे चलेंगे.