आज विश्व में कोरोना के कारण जो हाहाकार मचा है , वह क्या दुनिया के कमजोर स्वास्थ्य तंत्र का नतीजा है? आईये इसे समझते है :-

कमजोर स्वास्थ्य तंत्र का नतीजा :-  क्या अपने कभी यह सोचा है कि आखिर क्यों नई-नई संक्रामक बीमारियां सामने आ रही हैं?  क्या यह दुनिया के कमजोर स्वास्थ्य तंत्र का नतीजा है? वैज्ञानिकों का इस बारे में यह मत है कि ज्यादातर स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने माइक्रोब्स (रोगाणुओं) के जीवन चक्रों को समझने की कोशिश नहीं की या संक्रमणों की कार्यप्रणाली को नहीं जाना. नतीजतन, हम संक्रमण की श्रृंखला तोड़ने में ही नाकाम नहीं हुए, बल्कि कुछ मामलों में तो इसे और मजबूत ही बनाया गया है. कोरोना, बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू, इबोला, मलेरिया, डेंगू बुखार, जीका और एचआईवी-एड्स से होने वाली मौतों में बीचे तीन-चार दशकों में कई गुना बढ़ोत्तरी हो चुकी है और

* विषाणुजनित 25 नई   बीमारियों :-  जानकारों का मानना है कि उन्नीसवीं शताब्दी के 80 के दशक  में  दुनिया में तेजी से बीमारियों ने महामारी का रूप लिया है . एक अध्ययन में यह  भी कहा जा रहा है कि  पुरे दुनिया के मानव समुदाय को विषाणुजनित 25 नई   बीमारियों ने  घेर रखा है .

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घातक रोगाणुओं ने एंटीबायोटिक जबर्दस्त जंग छेड़ रखी है : –  धरती पर फैले सबसे घातक रोगाणुओं ने एंटीबायोटिक और अन्य दवाओं के खिलाफ जबर्दस्त जंग छेड़ रखी है. इसका फायदा भी दवा कंपनियां उठाती हैं क्योंकि शोध-अनुसंधान का बहाना बनाकर इससे उन्हें पहले से कई गुना महंगी दवाएं बेचने का जरिया मिल जाता है. साफ है कि वायरस की चुनौतियां बढ़ रही हैं और इनसे जंग से हमारे इंतजाम सवालों के घेरे में हैं .

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* वायरस अपना स्वरूप बदल लेते हैं :– अगर समय रहते इसका इलाज नहीं खोजा गया तो वायरस अपना स्वरूप बदल लेता है. इसका उदहारण चीन के वुहान शहर में हल ही में देख गया है. इलाज के बाद ठीक हुए लोगो में फिर से कोरोना संक्रमण देखा गया. इस से इस बात की पुष्टि होती है कि इस  बीमारियों के वायरस में ऐसे उत्परिवर्तित शक्ति आ गया है कि  जिन पर सामान्य तरीके से नियंत्रण नहीं किया जा सकता है. तदपश्त्ताप यह वायरस अपने उत्परिवर्तन रूप में सामने आ रहा हैं. इसका मतलब यह है कि मौका पड़ने पर वायरस अपना स्वरूप बदल लेते हैं,जिससे उनके प्रतिरोध के लिए बनी दवाइयां और टीके कारगर नहीं रह पाते हैं. अंत समय के साथ इसके  इलाज के दिशा में भी तेजी से कार्य करना होगा.

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