कांग्रेस ने भले ही उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी से गंठबंधन ना किया हो पर टिक के बंटवारे में इस बात का पूरा ध्यान रखा जायेगा कि किस तरह से वोट का बिखराव रोक कर भाजपा का विरोध करने वाले दलों के ज्यादा से ज्यादा प्रत्याशी चुनाव जीत जाये. जहां सपा-बसपा ने कांग्रेस के लिये केवल दो सीटें छोडी थी वहीं कांग्रेस ने बडा दिल दिखाते हुये सपा-बसपा के लिये लोकसभा की 7 सीटें छोड दी है.

कांग्रेस का मत है कि जिस सीट पर जो दल मजबूती से भाजपा के खिलाफ चुनाव लड रहा हो वहां उसके प्रत्याशी को चुनाव जीतने में मदद की जा सके. भाजपा इस बात से खुश थी कि उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन में कांग्रेस के शामिल ना होने से प्रदेश में त्रिकोणीय मामला होगा. जिससे विपक्ष के वोट बिखर जायेगे. भाजपा को लाभ होगा.

कांग्रेस ने सपा-बसपा गठबंधन से फ्रैंडली लडाई लडने की योजना तैयार की है. इसके तहत कांग्रेस ने इस गंठबंधन के प्रमुख नेताओं के लिये 7 सीटे छोड दी है. कांग्रेस न ‘अपना दल’ के कृष्णा पटेल ग्रुप और दूसरे दलों के साथ भी तालमेल किया है. ऐसे में कुछ और दलों से भी कांग्रेस की बातचीत चल रही है.

उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी के सक्रिय होने के बाद कांग्रेस अपनी नीति में बदलाव करके काम कर रही है. वह छोटे दलों के साथ मिलकर चुनाव में वोट के बिखराव को रोक रहीं है. कांग्रेस के इस कदम से खुद मायावती खुश नहीं है. उनका कहना है कि ‘कांग्रेस इस तरह से लोगों में भ्रम फैलाने का काम कर रही है. हमें उसकी 7 सीटो की जरूरत नहीं है कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा नहीं है वह अकेले सभी सीटों पर चुनाव लड सकती है.’

कांग्रेस से मायावती की अपनी मजबूरी है. मायावती को लगता है कि इस चुनाव में दलित और मुसलिम वोट बसपा के मुकाबले कांग्रेस को ज्यादा भाव देगा. इसका कारण यह है कि जब मुसलिम और दलित परेशान हो रहे थे तब मायावती एक भी बार उनके साथ खडी नजर नहीं आई. कांगेस नेता राहुल गांधी अकेले ही सडक से लेकर संसद तक भाजपा और ‘मोदीशाह’ के सामने अपनी आवाज उठाई. मायावती से अधिक तो चन्द्रशेखर रावण जैसे युवाओं ने दलित उत्पीडन के खिलाफ अपनी आवाज उठाई.

बसपा की नेता मायावती 4 बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रही पर कोई ऐसा काम नहीं किया जिससे दलितों की हालत में कोई बदलाव आये. 1993 से पहले प्रदेश में दलितों की जो हालत थी वही हालत आज भी है. ऐसे में दलितों की पार्टी कहीं जाने वाली मायावती से उनको क्या मिला ? अपनी खराब होती हालत देख मायावती ने अखिलेश यादव से हाथ मिलाकर सपा-बसपा का गठबंधन तैयार किया. इस गंठबंधन में मायावती कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में लोकसभा की केवल 2 सीटे दे रही थी. कांग्रेस ने इस फैसले को स्वीकार नहीं किया और गठबंधन से बाहर हो गई.

उस समय तक मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ और राजस्थान में विधानसभा चुनाव नहीं हुये थे. इन चुनावों में भी सपा बसपा कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लडे. इसके बाद भी कांग्रेस ने तीनों ही राज्यों में अपनी सरकार बनाई. नई ताकत और आत्मविश्वास के बाद भी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस भाजपा के खिलाफ वोट के बिखराव को रोकने के लिये जिस तरह से मायावती की टिप्पणी सुनकर भी समर्थन दे रही है यह उसके बडे दिल का कमाल है. कांग्रेस सत्ता विरोधी मतों को बिखरने से रोकने के लिये ही सपा-बसपा और दूसरे छोटे दलों से तालमेल कर भाजपा को मात देने की योजना पर आगे बढ़ रही है.

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