लालकृष्ण आडवाणी को बेवजह भाजपा का भीष्म पितामह नहीं कहा जाता उनका व्यक्तित्व और आचरण दोनों सचमुच में द्वापर के भीष्म से मेल खाते हैं. भीष्म विद्वान था, नीति का ज्ञाता था, साहसी योद्धा था लेकिन न्याय प्रिय नहीं था क्योंकि दुर्योधन के प्रति उसकी आसक्ति उसके तमाम गुणों पर भारी पड़ती थी. वह कभी दुर्योधन के अन्याय और मनमानी का खुलकर विरोध नहीं कर पाया. प्रसंग चाहे फिर द्रौपदी के चीरहरण का रहा हो या फिर पांडवों को परेशान कर छल कपट से उनके राजपाट छीनने का, भीष्म का समर्थन हमेशा दुर्योधन के साथ रहा. धर्म और नीति का राग अलापते रहने बाले भीष्म की हिम्मत कभी उसका विरोध करने की नहीं पड़ी और इसी मोह के चलते वह दुर्योधन के हर गलत काम का सहभागी बना.

आज भी यही हो रहा है लालकृष्ण आडवाणी का ताजा चर्चित ट्वीट कोई क्रांतिकारी या हाहाकारी वक्तव्य नहीं है बल्कि नरेंद्र मोदी का समर्थन और प्रचार ही है कि हर वो शख्स जो भाजपा की नीतियों रीतियों से इत्तफाक नहीं रखता वह देशद्रोही ही है. आडवाणी का मकसद नरेंद्र मोदी का विरोध नहीं बल्कि हताश होती भाजपा को यह संदेश देना है कि नरेंद्र मोदी अगर चुनाव को हिन्दुत्व के इर्द गिर्द समेटने की कोशिश कर रहे हैं तो पार्टीजन उनका साथ दें जिससे भाजपा दौबारा सत्ता में आकर हिन्दू राष्ट्र का अपना अधूरा मिशन पूरा कर सके.

जितना कट्टरवाद आडवाणी ने फैलाया है मोदी तो उसका दसवा हिस्सा भी नहीं फैला पाए हैं. 90 के दशक में मंदिर आंदोलन के दौरान हिंदुओं का जितना नुकसान आडवाणी ने किया और हजारों हिंदुओं की ज़िंदगी रामलला के नाम पर कुर्बान करबा दी इस बाबत इतिहास शायद ही उन्हें माफ कर पाएगा. यह वह दौर था जब वे रथ पर सवार होकर हाथ में तीर कमान लेकर और माथे पर मुकुट धारण कर निकलते थे तो हिन्दू समुदाय पगला उठता था और उन पर चंदे की बौछार कर देता था. आडवाणी ने भी खूब हिंदुओं की भावनाओं को भुनाया, भड़काया और दंगे भी करबाए और आखिरकार भाजपा को उसकी असल मंजिल सत्ता तक पहुंचाकर ही दम लिया.

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