मलेरिया की दवा निर्यात के बहाने इमेज मेकिंग
एक तरफ देश की जनता कोरोना वायरस के संकट से जूझ रही है. देश मे बेकारी, बीमारी, भुखमरी और बेरोजगारी बढ़ रही है. कल कारखाने बन्द हो गए है. रोजीरोजगार ना मिलने से मजदूरों का पलायन शुरू हो गया है. लंबे लंबे लॉक डाउन से घरो में आपसी तनाव बढ़ रहा है. देश के ऐसे हालत हो गए है कि विकास की नजर में हम सालोसाल पीछे हो गए है. इस माहौल में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “इमेज मेकिंग” पर काम करने वाला तंत्र उनको विश्व गुरु बनाने में लगा है. इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि दूसरे देशों के मुकाबले भारत मे कोरोना से कम नुकसान हो रहा है.
समय पर नही हुआ लॉक डाउन का फैसला
मोदी की इमेज मेकिंग के लिए काम करने वाले लोग यह नहीं बता रहे कि लॉक डाउन का फैसला भारत मे इतनी देर से क्यों हुआ? भारत मे जनवरी माह में कोरोना का पहला केस आया था. जनवरी फरवरी में ही लोक डाउन पर फैसला ले लिए गया होता तो देश मे इतना लंबा लॉक डाउन करने की हालत नही बनती. यह फैसला लेने में केंद्र सरकार ने इतनी देरी क्यो की ? क्या इसकी वजह अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प का भारत दौरा था ? अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत दौरे में भारत सरकार इतना भाव विभोर हो गई थी कि उसे कोरोना का कोई डर दिखाई ही नही दे रहा था.
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अमेरिकी राष्ट्रपति के दौरे के बाद भारतीय जनता पार्टी का फोकस मध्य प्रदेश में कॉंग्रेस सरकार को गिरा कर अपनी सरकार बनाने का था. लॉक डाउन की आहट को तब तक रोका गया जब तक मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह ने कुर्सी नहीं संभाल लिया था. उस समय तक वँहा सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान नही दिया गया. सवाल यह उठ रहा है कि क्या राजनीतिक उद्देश्य को पूरा करने के लिए लॉक डाउन को तब तक टाला गया जब तक मध्य प्रदेश में सत्ता का स्थानांतरण नही हो गया ?
अमेरिकी राष्ट्रपति के दौरे और मध्य प्रदेश सरकार के गठन तक केंद्र सरकार को कोरोना का खतरा क्यो नजर नही आया ? मार्च माह तक कोरोना का ख़ौफ़ दुनिया मे दिखने लगा था. भारत मे विपक्षी दल के नेता यह मांग करने लगे थे कि कोरोना से निपटने के लिये सरकार कड़े कदम उठाए ? अगर सरकार ने उस समय अपने एयर पोर्ट को लॉक कर दिया होता तो कोरोना का किसी तरह का खतरा यँहा नही होता. विश्व के तमाम देशों ने यह फॉर्मूला अपनाया और आज वह ना केवल कोरोना के संकट से बचे है बल्कि उनके यहाँ इस तरह के हालत नही फैले है.
लॉक डाउन के साथ नही हुए बेहतर प्रबंध
भारत सरकार ने कोरोना संकट से निपटने के दौरान कोई ऐसा अच्छा इंतजाम नहीं किया जिससे शहरों में रहने वाले लोग आराम से अपने घर तक पहुंच सके. केंद्र सरकार ने अचानक लॉक डाउन की घोषणा कर दी जिससे जो जहां था वहीं फस गया. बेरोजगारी के बढ़ते संकट को देखते हुए शहरों में रहने वाले लोग अपने गांव और घर की तरफ पलायन करने को मजबूर हो गए. केंद्र सरकार ने अगर सही समय पर सही तरीके से आवागमन का साधन उपलब्ध कराती है तो शहरों से गांव की तरफ पलायन करने वाले लोग इस तरह भूखे प्यासे पैदल, धक्के खा कर गांव घर नही पहुचते.
मजेदार बात यह है कि किसी को इन सवालों को उठाने का समय नही है. सोशल मीडिया पर ऐसे सवाल करने वालो को मोदी भक्त घेर लेते है. मीडिया का एक बड़ा हिस्सा “गोदी मीडिया” बन चुका है. देश के लोगो को यह बातया जा रहा है कि दुनिया मे मोदी अकेले ऐसे नेता है जो कोरोना वायरस से निपट रहे है. लॉक डाउन फेल होने के पहले फेल होने के कारणों का ठीकरा फोड़ने के लिये दूसरे लोगो के कंधों को तैयार कर लिया गया.
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दिल्ली से उत्तर प्रदेश आने वाले मजदूरों का जब बड़ा हुजूम दिल्ली उत्तर प्रदेश के बॉर्डर पर इकट्ठा होने लगा तब उत्तर प्रदेश सरकार ने इस बात का ठीकरा दिल्ली सरकार के ऊपर फोड़ने की कोशिश की, जबकि उत्तर प्रदेश सरकार ने पहले यह प्रबंध किया था की दिल्ली के मजदूरों को उत्तर प्रदेश बिहार उत्तराखंड और दूसरे प्रदेशों में पहुंचाने के लिए बस की सुविधा दी जाएगी. अगर समय पर दिल्ली उत्तर प्रदेश बॉर्डर पर बस की सुविधा उपलब्ध होती तो मजदूरों को पैदल और प्राइवेट साधनों से अपने घरों की तरफ जाने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता . यह जिम्मेदारी केंद्र सरकार की थी की लॉक डाउन से पहले वह ऐसे इंतजाम कर लेती जिससे बाहर फंसे हुए लोग सकुशल अपने घर वापस हो जाते . अगर ऐसा प्रबंध हो जाता तो लोग आराम से अपने घर पहुंच जाते और उनमें कोरोना बीमारी का कोई खतरा भी नहीं रहता .
केंद्र सरकार ने कोरोना संकट से निपटने के लिए जो बेहतर प्रबंध करनी चाहिए थे वह नहीं कर पाई . इसके साथ ही साथ विभिन्न प्रदेशों के साथ केंद्र सरकार का जो समन्वय होना चाहिए था वह भी नहीं हो पाया . देश में कुछ प्रदेशों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार नहीं है ऐसे में केंद्र सरकार को विपक्षी सरकारों के साथ बेहतर तालमेल करके कोरोना संकट से निपटने का प्रबंध करना चाहिए था यह केंद्र सरकार का असफलता है की विपक्षी सरकारों के साथ उसका बेहतर तालमेल नहीं हो सका ऐसे में हर सरकार अपने अपने तरीके से कोरोना संकट से निपटने के प्रयास कर रही थी.
विश्व गुरु बनने की चाहत
प्रचार तंत्र के सहारे अब इस बात को बताने का प्रयास किया जा रहा है कि पूरे विश्व में भारत की ऐसा देश है जो कोरोना से बेहतर अंदाज में लड़ाई लड़ रहा है. सच्चाई है कि भारत में अस्पतालों की बेहतर व्यवस्था नहीं है. यहां पर अस्पतालों में काम करने वाले डॉक्टरों और बाकी स्टाफ के पास किसी तरह की अच्छी व्यवस्था नहीं है. अस्पताल कर्मचारियों के पास कोरोना से दूर रहने के उपाय जैसे अच्छे किस्म के मास्क, ग्लब्स, सेनेटाइजर, और पीपी ड्रेस नहीं है जिसे पहनकर कोरोना का इलाज किया जा सके. इस संकट से निपटने के लिए लखनऊ मेडिकल कॉलेज ने अपने कर्मचारियों के वेतन कटौती करके यह सामान खरीदने का प्रस्ताव पास किया था. मामला सोशल मीडिया पर आने के बाद सरकार की चारो तरफ आलोचना होने लगी. इसके बाद उतर प्रदेश सरकार में यँहा के कर्मचारियों की मदद करने की बात कही और इलाज के लिए जरूरी सामान उपलब्ध कराया. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के एक और अस्पताल बलरामपुर अस्पताल में कर्मचारियों ने सही व्यवस्था ना होने के कारण आपत्ति जताई और अस्पताल मैनेजमैंट का घेराव करने की चेतावनी भी दी थी.
इस तरह की हालत केवल लखनऊ के अस्पतालों की नहीं है दूरदराज और दूसरे प्रदेशों के अस्पतालों की भी हालत इसी तरीके की है ऐसे में जो सरकार अपने अस्पताल और अस्पताल में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए बेहतर व्यवस्था नहीं कर पा रही है वहीं सरकार विदेशों में मदद करने के नाम पर अपनी इमेज बिल्डिंग कर रही है.
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“गोदी मीडिया” में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘मेडिकल डिप्लोमेसी’ को लेकर बहुत चर्चा की जा रही है. इसमें बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के दूसरे देशों में कोरोना से निपटने के लिए मलेरिया की दवा भिजवाने का प्रबंध किया है इस प्रबंध की वजह से नरेंद्र मोदी विश्व के सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे हैं और जिन देशों को कोरोना संकट से निपटने के लिए मलेरिया की दवा भेजी जा रही है वह देश आने वाले समय में भारत के सच्चे मित्र होंगे . मलेरिया की दवा को लेकर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बातचीत को भी देखने की जरूरत है. इस बात में भी विवाद है कि भारत ने अमेरिका को मलेरिया की जो दवा सप्लाई की है वह भारत को अमेरिका के दबाव में करना पड़ा है.
मुद्दों से ध्यान भटकाने का प्रयास
इस समय देश को सबसे बड़ी जरूरत है कि करोना संकट के साथ-साथ देश बेरोजगारी, बेकारी और भुखमरी के संकट से बाहर आ सके. लॉक डाउन में ऐसा प्रबंध होना चहिए की जनता के काम चलते रहे और लॉक डाउन इतिहातो का पालन भी किया जा सके. लॉक डाउन जिस तरह से बढ़ेगा दूसरी तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा. जिसकी शुरुआत लॉक डाउन में पुलिस और जनता के बीच आपसी तनाव के रूप में देखने को मिल रहा है. कोरोना संकट के नाम पर पुलिस की निरंकुश व्यवस्था सामने आ रही है.
केवल यही नही कोरोना से निपटने में लगे लोगो को सम्मान देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर पहले ताली और थाली बजाना और बाद में कैंडिल और दिए कि रोशनी करने की बातों को भी जनता ने कोरोना भगाने से जोड़ लिया. किसी भी देश के लिए यह सोच समझने वाली है कि देश ताली, थाली और कैंडल जला कर इस कोरोना जैसी महामारी का मुकाबला कर रहा है. लोगो को जरूरी सूचनाएं देने की जगह पर रामायण, महाभारत और चाणक्य जैसे टीवी सीरियल दिखाए जा रहे है जिससे लोग जीवन और मृत्यु के लिए व्यवस्था को नही अपने कर्मो को जिम्मेदार माने. राजा के हर आदेश को भगवान का आदेश मॉन कर स्वीकार करें. असल मे सरकार के इन फैसलों पर चर्चा करने की जगह पर इस बात पर चर्चा हो रही है कि जब पूरे विश्व के नेता कोरोना संकट में बेबस हो रहे थे तब भारत के प्रधानमंत्री उससे लड़ने के प्रबंध कर रहे थे बल्कि पूरे विश्व की मदद भी कर रहे थे.